खण्ड-खण्ड बारिश, खण्ड-खण्ड समाज
हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती
मनबोध मास्टर पूछलन-बाबा का हाल बा? बाबा बतवलन- हाल बेहाल बा। सूखा के कमाल बा। इंद्रदेव भी कहीं मेहरवान, त कहीं तिरछा नजर कईले हवें। बादर भी बहुरूपिया हो गइल बा। लगत दूसरा गाँव की कपारे पर आ बरसत बा दूसरा सिवान में। मेड़ बांध के बारिश होता, लगता देवता लोग भी आरक्षण के नियम लगा देले बा। सब खण्ड -खण्ड। सब टुकड़ा-टुकड़ा। दईब के कवन दोष दिहल जा। समाज बंट गईल बा, जाति-धरम में। परिवार बंट गईल बा, नरम-गरम में। पर्यावरण सुधरला के काम कागजे में। परिवार सुधरला के काम पाखण्ड में। हर साल एतना लाखन-करोड़न जवन पौधा सरकार लगावत बा, उ लउकत काहें नईखे? सच में उ पेड़वा लउकत, त ई बदरा ना रुठत। देवी-देवता लोग भी नाराज बा। महंगाई से परेशान जनता सरकार से नाराज बा। नाराजी की एह दौर में मेहरी, मरद से नाराज बा। मेहरी अब लकड़ी लवना पर खाना ना पकाई। आ मरद की लगे ना साढ़े ग्यारह सौ जल्दी जुटी, ना सिलिंडर भराई। कर फांकाकसी। कहल कर दईब मुँह देले बाड़न त आहारों दीहें। करम ना करब त खाना के प्रबंध कईसे होई। आषाढ़ रोअते बीत गईल, आंसू बरसल लेकिन दईब ना बरसलें। सावन सुखारे चलत बा। पानी त हर हर महादेव क के शंकर जी के खूब नहवावल जाता। लेकिन उहाँ के कृपा भी नईखे बरसत। अब त्योहार के सीजन शुरू होता। महंगी अब और बुझाई। सावन पंचमी से शुरू त्योहारन में पकवान खातिर तेल चाहीं। आ तेल के खेल देखते बानी। उ कबड्डी खलेत बा। आईं त्योहार मनावल जा। खुशी मनावल जा। नाग देवता के पूजा कईल जा। आस्तीन की साँपन के भी पूजल जा। सप्तमी के तुलसी बाबा के जयंती मनावल जा। घर-घर सत्तमी के पुआ पुलाव पकवान के लुत्फ उठावल जा।आजादी के अमृत महोत्सव मनावल जा। अब घर-घर तिरंगा लहरावल जा। अब त रात बेरा भी तिरंगा लहरवला के छूट हो गइल। खूब राष्ट्र प्रेम देखावल जा। पन्द्रह अगस्त मनावल जा। विश्वकर्मा जयंती आ मोदी जी के जन्मदिन भी आवते बा। एगो आदि शिल्पी देवता आ दुसरका राजनीतिक शिल्पी। दुनों के दण्डवत कईल जा। सावन बीती ओकरा बाद भादो के महीना, तीज से लेके कन्हैया जी के जन्म के बधाई गावल जा। अंजोरिया के रात, एकादशी के बरत। एकादशी के चार-चार गो नाम बा। कहीं जलझुलनी एकादशी, कहीं पदमा एकादशी, कहीं दोल ग्यारस आ कहीं परिवर्तनी एकादशी की नाम से मशहूर भादो अजोरी के एकादशी के महिमा महान बा। कहल जाला कि आजुवे की दिन शेष शैय्या पर सुतल विष्णु भगवान करवट लेले रहलें। आजुवे की दिन त्रेता में बावन रूप भगवान बलि राजा के छल से तीन डेग जमीन दान में मंगला की बहाने ओकर पीठ ले नाप के पाताल के राजा बना दिहलें। आजुये की दिन मईया यशोदा कन्हैया के पहिला बेर कपड़ा फिंचले रहली। ई त रहल पौराणिक प्रमाण। अब घनघोर कलयुग में सन 22 के जुलाई के सुखार भी याद कईल जा। भगवान भादो उतरत में खुश होइहें। घनघोर पानी होई। एतना पानी ठेल दीन्हें कि गावँन के नदी-नाला-पोखरा के बात छोड़ीं, बड़े -बड़े शहरियों में पंवरे भर के पानी मिली। जीया-जंतु, गोरु-बछरू क के कहे , मनई की जान पर आफत आई। सावन सुखरख में बीतल, धान सूख गईल। भादो बढियाई त गेहूं बोअला में दिक्कत आ जाई। गील खेत में कईसे गेहूं बोआई। प्रकृति से रउरा खेलत हईं त अब प्रकृति आपन बदला लेई।अबहिन समय बा, सोच बदल लीं।