गुरुवार, 15 जून 2017

एगो कविता देखल जा

एगो कविता देखल जा, केतना सधत बा आजकल की चुनाव पर-
लाज न बा तनिको उनका, मेहरारू कù सीट आ मरद मरेंले।
आंखि पसारि के देखीं तनी, चारो ही ओर अनेति करेंले।।
सरकार इ काहे आरक्षन देति, नाम बा मादा के नर ही दिखेंले।
सेनुर, बिंदी आ चूड़ीबिहीन, साड़ी की आड़ में मरद लड़ेंले।।
बाति कहब फरिछा, केहू का मीठ लागी केहू का मरिचा। हम जानत हई कि बाति बा निरकेवल, केहु के भतार रुठिहें केहू के देवर। नगर निकाय की चुनाव में जवन देखत हई उहे बकत हई। आरक्षन की तहत सीट भले मेहरारून खातिर रिजरब बा, असली लड़ाई त मरदे लोग लड़त हवें। मादा की सीट पर मर्द लोग माद्दा देखावत हवें। हाथ जोड़ले, दांत निपोरले सांझ -सबेरे धावत येह आरक्षन घोटू प्रतिनिधि के देख के इहे कहल जा सकेला कि मेहरारून की हक पर डाका डालेवाला हवें। जवन मेहरारू आपन हक लुटावत हई उ अपनी पद के गरिमा कहां ले बचा पइहन। संविधान की अनुच्छेद 14 से लगायत 18 तक नर-नारी के समानता के अधिकार दिहल गइल। संविधान की तिहत्तरवा आ चौहत्तरवा संशोधन अधिनियम 1993 में सरकार मेहरारू लोग के आरक्षन देके पंचायत आ नगर निकाय की महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे के रास्ता सरल बना दिहलसि। पहिले 33 प्रतिशत आरक्षन दियाइल। बाद में आरक्षन के प्रतिशत 50 हो गइल। महिला सशक्तिकरन पर लंबा चौड़ा भाषन लोग भले झारि दे, लेकिन महिला आरक्षन के लाभ पति, पुत्र, ससुर, देवर, भतीजा अइसन रिस्तेदार ही उठावत हवें। दरअसल मेहरारू आ चना के हाल एक जेइसन बा। जेइसे मनई चभक के चना के मुंह में डार लेंले। चना हरिअर होखे चाहे पाकल। खेत में होखे चाहे खरिहान में। कच्चा होखे चाहे भुनल। कहल जाला कि भगवान की दरबार में न्याय मांगे गइल चना पर भगवान जी के भी लार चुये लागल। ठीक उहे हाल महिला लोग के बा। सीट सभासद के होखे चाहे अध्यक्ष के। फुफुती की आड़ से रिस्तेदार लोग ही लड़त बा। नाम मादा के आ मलाई नर लोग चाभत बा। छोटकी पंचाइत में मेहरारू लोग के कोटा मरद लोग पूरा कù देत बा। बड़की पंचाइत में इ सब संभव ना बा । येही से रजनेतिहा लोग लोकसभा, राज्यसभा आ विधानसभा में महिला आरक्षन ना दिहल चाहत हवें। महिला आरक्षन तबे सार्थक होई जब मेहरारू लोग में संपूर्ण नारीत्व जागी। लोहिया जी कहले रहलें- ‘शक्ति’ मौका अइला पर प्रकट होले। अब मौका त आइल बा। शक्ति के शोषण करे वाला पुरुषवादी प्रभुत्व से बची तब न आपन शक्ति देखाई।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 14 जून 2012 के अंक में प्रकाशित है

रविवार, 9 अप्रैल 2017

सतुआन

भोजपुरी व्यंग्य -एन डी देहाती

14 अप्रेल 17 के सतुआन ह। अब लखनऊआ , दिल्लिहिया कहि दिहे सतुआन का होला। पुरबिहन से पूछ ल। सतुआन के पुरवर परिभाषा बता दीहें। सतुआ भी एगो संस्कृति ह, सादगी के, समानता के, सहजता के। पुरनिया लोग बहुत पहिले से सतुआन मनावेलन। हमहुँ मनाईलन। लोग जौ बोअल छोड़ दिहल जेकरा चलते सतुआ पर संकट आ गईल बा।
हिन्दू पतरा परम्परा में सौर मास के हिसाब से सुरूज देवता जहिआ कर्क रेखा से दखिन के ओर जाले तहिये मेष संक्राति लागेला। ओहि के सतुआन कहल जाला। एहि दिन से खरमास के भी समाप्ति हो जाला आ रडूहन के शादी विवाह होखल शुरू हो जाला।
जवन असकतिहा सालों साल ना नहात होइहैं उहो सतूआन के दिन जरूर नहा लेलन। एही से कहल गईल- असकतिहन के तीन नहान।
खिचड़ी, फगुआ औ सतुआन।।
सतुआन के बहुत तरह से बनावल जाला, सामान्य रूप से आज के दिन जौ के सत्तू गरीब असहाय के दान करे के प्रचलन बा। आज के दिन लोग स्नान पावन नदी गंगा में करे ला, पूजा आदि के बाद जौ के सत्तू, गुर, कच्चा आम के टिकोरा आदि गरीब असहाय के दान कइल जाला आ इष्ट देवता, ब्रह्मबाबा आदि के चढ़ा के प्रसाद के रूप में ग्रहण कइल जाला। ई काल बोधक पर्व संस्कृति के सचेतना, मानव जीवन के उल्लास आ सामाजिक प्रेम प्रदान करेला। पूर्वांचल में चाहे केहू केतनो अमीर होखे आज के दिन सादगी में मनावे खातिर सतुआ के ही भोग लगायी। गावँ से उजड़त गोनसार( भूजा भुजने का चूल्हा , जो गोंड जाति का परम्परागत पेशा रहा), समहुत में जौ के बुआई, नेवान में जौ के भुनल बालि के परसादी अब दुलम होत बा। भाई हो जौ ना बोआई त सतुआ कहा से आयी। सतुआन के पर्व हमे याद दिलावेला। सतुआ के। सतुआ खातित जौ जरूरी बा। जौ के जय जय कार कईल जा। डॉक्टर की कहला पर ना, अपनों विचार से थोड़ा बहुत जौ बोअल जा।
फेरू कबो भेंट होई त दूसरे टॉपिक पर बतकुचन होई। जय राम जी के।

हम अपनी ब्लॉग पर राउर स्वागत करतानी | अगर रउरो की मन में अइसन कुछ बा जवन दुनिया के सामने लावल चाहतानी तअ आपन लेख और फोटो हमें nddehati@gmail.com पर मेल करी| धन्वाद! एन. डी. देहाती

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