रविवार, 25 दिसंबर 2022

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 25 दिसम्बर 22

माँसु के कारोबारी
सोना-चांदी से भारी

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

     मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बड़ा बेहाल बा। पहिले लोग कहत रहे- विप्र टहलुआ, चीक धन और बेटी के बाढ़। एहू से धन ना घटे त कर बड़न से रार। समय बदलल। कहावत के अर्थ बदल गईल। एह कहावत की एक बात पर अबकी लेख देखल जा। चीक धन। लोग कहत रहे चीक के दिन भर के खरीद बिक्री, काट-पिट के बेचला की बाद बखरा में मुड़ी-गोड़ी ही बचेला। शाकाहारी इंसान भईला की नाते चीकधन पर बहुत ना अध्ययन बा न ज्ञान। बस एतना जानिला कि हमरा समाज में जे खाये वाला बा, उ रेतल आ झटका दूनो से अपनी पेट के कब्र भरेलें। भाई चारा बढवला की चक्कर में ईद-बकरीद पर कवना-कवना जीव के मांस घोटेलें ऊ जाने। लेकिन दूसरा पक्ष के लोग उ कट्टरवादी हवें, जे भूखे रहि जईहे लेकिन झटका के माल ना गटक सकेले। रउरा से बड़ा बनत होई त काली माई के खस्सी चढ़ा के खिया के देखा दीं। बकरी त बस आप बात कहे के बहाना बा। मूल बात मीट कारोबारिन पर बा।  शनिचर के आंख तब खुलल जब यूपी की मीट कारोबारिन पर लखनऊ, उन्नाव आ बरेली में इनकम टैक्स के छापा पड़ल। मुड़ा-गोड़ी के बात छोड़ीं ,1200 करोड़ के त काला धन मिलल। एक हजार करोड़ जईसन छोटवर रकम के हिसाब किताब भला के राखी? बीस मांसकट्ट पर खट्ट से कार्रवाई हो गईल। अब शुरू त शुरू। हर जगह होई। चाहे केतनो लोग रोई। कबीर बाबा पहिलही कहि गईल रहलें- ....ताको कवन हवाल। स्लाटर हाउसन में का-का कटेला। ई जनि पूछीं। जे मीट खात होई उ चिंहत होई। बाड़ जब खेत खाई, नाव जब नदी लीली त कवनो सरकार त जागी। खइहें हिंदुस्तान के गइहें पाकिस्तान के, ऊपर से टैक्स चोरी त अब ई सीनाजोरी ना चली। देश आज तक इहे गुत्थी सुलझावत रहल कि पर्यावरण की सुरक्षा खातिर हर साल नेता लोग जवन पेड़ लगावल उ अगिला साल काहें ना दिखल। लोग कहत रहलें, नेता जी पेड़ लगवले, बकरी चर गईल। सुबह बकरी ही नेताजी की पेट मे समा जात रहल। यह देश में ज्यादातर नेतन के पेट बड़हन, हाजमा दुरुस्त। देश के तमाम नेता तमाम दल में रहेलन लेकिन उनकर सलाटर हाऊस के कारोबार हमेशा साम्प्रदायिक सौहार्द के मिसाल खड़ा करेला। देश में अगर जांच-पड़ताल, छापा-छापी ना पड़ी त पाप से पर्दा ना उठी। मीट कारोबार के घटिया काम जे समझत होखे उ समझे। मांस बेच के सोना उगावत हवें। खाल बेच के माल बिटोरत हवें। हजार-लाख त उनकी पान की पिक की बरोबर बा। कहीं पिच्च से मार दीहें।  हिंसा के कारोबार ऊपर से कुर्त्ता झकासदार अब दुनों एक साथ ना चली। टैक्सचोरन पर भी बुलडोजर चले के चाहीं। केहू खात-खात मरी, केहू खइला बिन मरी? अब ई ना होई। सरकार खइला बिना ना मरे दी। लेई एक साल ले फिर चापी सभे मुफ्त के माल। ओने होखें दी हलाल करे वालन के हलाल।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

रविवार, 18 दिसंबर 2022

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 18 दिसम्बर 22

कार पर सवार बा
राशन के दरकार बा

हाल- बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बेहाल बा। कार पर सवार बा, तब्बो राशन के दरकार बा। सब जब आधार से जुड़ल बा। खाता से लेके खेत ले। बही से लेके लॉकर ले। त अंगूठा लगवला की खेल में सरकार काहें फेल बा। सीधा सवाल बा- जब नोकरी में आधार लागल बा, बैंक की खाता में आधार लागल बा, फार्च्यूनर ख़रीदलें तबो आधार लागल, त एही आधार से बनल पात्र गृहस्ती आ अंत्योदय कार्ड में धनवान लोग कईसे कंगाल हो गइल? सरकार केहू के रही, सिस्टम अइसहीं चली। प्रधान आ कोटेदार नामक संस्था की मेल से जवन खेल देश में चलत बा ओके सरकारों बुझत बा। वोट के मजबूरी त, आंख मुनल जरूरी बा। रउरा याद होई, देश में ढेर गैस कनेक्शन रहल। सरकार के गैस बनल त आधार से जोड़ दिहलसि। एजेंसी वालन के डकार निकर गईल। गैस कनेक्शन आधा हो गईल। वोट के लोभी सरकार एह डर से राशन कार्ड के जांच नईखे करावत कि सत्ता घिसक जाई। कुपात्र लोग के राशन दिहला से मुफ्तखोरी आ हरामखोरी बढ़त बा। अब त गावँन में लोग खेत बोवल कम क दिहल। खेती महंगी भईल त बटाईदार भी नईखन मिलत। महीना में कौड़ी के भाव से चावल गेंहू मिल जाई त काहें केहू पसीना बहाई। सरकार के जय जयकार कईल जा। कृषि योग्य भूमि परती-परास कईला से, खाद्यान्न उत्पादन कम कर के, देश के उन्नति की मार्ग  पर आगे बढावला में लागल लोग के कदम हरामखोरी आ मुफ्तखोरी की ओर बढ़त बा। अब त ज्यादातर घर में हाल उहे बा -मुफत के चंदन , घिस मोर नन्दन। पहिले बिना आदत के चंदन चरात रहे। अब बेशर्मी की गंगा में नहा के मुफ्तखोरी की चंदन से चेहरा दमकत बा। देश में कई प्रकार के वाद उतपन्न भईल। अब फोकटवाद के चलन जोर पर बा। देश के बड़का साहब खुद फोकटवाद के बढ़वा देके दूसरा दल की नेता लोग के ज्ञान के घुट्टी कई ढरका पीया दिहलें। जनता भी मगन बा। सब फोकट के मिल जा त बल्ले-बल्ले। बिना खेती-बारी-मजूरी कईले अगर रोटी मिल जा त केहू के जी हजूरी कईला में कवन हरज बा। सरकार के जेतना मुफ़्तवाली योजना बा, दुनो हाथे लुटला के काम बा। नेता लोग के कुर्सी में प्राण बसत बा, त हम्मन के फोकट में सब सुविधा देबे करीहें। जनमते लईकन के मुफ्त के टीका। स्कूल जाते किताब- कपड़ा, बस्ता-जूता मुफ्त। अस्पताल में दवाई,सरकारी ट्यूबवेल से सिंचाई, एम्बुलेंस सहित बहुत कुछ मुफ्त मिलला से अमीर भी मुफ्त में गरीब बन के सरकारी सुविधा के दुहत बाड़न। निमन आ मुंह चिक्कन बने खातिर सरकार बहुत कुछ लुटावत बा। यह लुटवला की प्रक्रिया से फोकटवाद के बढ़ावा मिलत बा। सबके दाता राम के प्रवृति मजबूत होत बा। जरूरत एह बात के बा कि अगर सच में आधार के कुछ आधार बा त कार-कोठी-कटरा वालन के मुफ्तखोरी पर विराम लगावल जा। वास्तव में जवन नागरिक जरूरतमंद हवें, सुविधा उनके दिहल जा। जईसे चार दिन की जीएसटी छापा की शोर में केतना चोर चिन्हा गईलें, ओइसे एक बेर आधार से अगर सब लिंक जुड़ल बा त एकर जांच होखे के चाहीं।

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रविवार, 11 दिसंबर 2022

एन डी देहाती : भोजपुरी व्यंग्य 11 दिसम्बर 22

चार टांग के कुर्सी
 छह दावेदार


हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त उ बा कि चुहवो खुश, बिलरियो खुश। बनरो खुश, बनरबझओ खुश। एह हफ्ता चारो ओर खुशी ही खुशी रहल। विश्व के सबसे बड़वर राजनीतिक दल गुजरात में इतिहास रच दिहलसि। सत्ता के सताइश बरिस के बत्तीस ले बढ़ावल आसान ना बा। देश के सबसे पुरान पार्टी हिमांचल में रिवाज कायम रखलसि। एक बार तू, त एक बेर हम। देश में दस साल पहिले जनमल नवका दल अब बड़का दल बन गईल। राष्ट्रीय स्तर पर छा गईल। राजधानी की नगर निकाय पर आपन झंडा गाड़ दिहलसि। सब कुछ ठीक बा, लेकिन पहाड़ के पहाड़ा समझ में नईखे आवत। एगो कुर्सी, चार को टांग, ऊपर बइठे खातिर लागल हवें छह दावेदार। केकर-केकर मनवा राखिहैं, अकेले जियरा। यूपी में चाचा खुश, भतीजा खुश। चाचा के पार्टी भतीजा की पार्टी एक में मिल गईल। डाढ़ी कटहर, ओठे तेल। बाईस की उपचुनाव में जीतते चौबीस खातिर छटपटाहट शुरू हो गइल बा। अरे भईया! कस्बाई, नगराई में पहिले फ़रिआई, फिर चौबीस के बात बतिआवल जाई। जईसे हिमांचल में घरकच के करकच लागल बा, दुनो बड़का दल डेरात बाड़न। उ बुझत हवें कहीं हमार न तोड़ लें। इहो इहे बुझत हवें। हालत खराब त बुढ़िया पार्टी के बा। देश में सिकुरत-सिकुरत कवनो ना एगो राज्य जितलसि त ओहू पर राहू-केतू के नजर लागल बा। अगर समय रहते हाईकमान कंट्रोल ना कइलसि त आईल रोहू जाल से निकल जाई। हिमांचल में जईसे कुर्सी के टंगखिंचउअल होता अपना यूपी में नगर निकाय में भी उहे हाल बा। एगो अनार पर सौ गो बेमार। एगो कुर्सी पर छह दावेदार। टिकट खातिर बिकट मारामारी बा। कर्मठ, सुयोग्य आ ईमानदार लोग के संख्या बढ़ गईल बा। कई जगह जे पांच साल में चाट- पोछ के चिक्कन क देले बा, उहो प्रबल दावेदार बा। बनही के चाहीं। बगैर कुर्सी के केइसन सेवा। कुर्सी मिली त सेवा होई आ मेवा मिली। सजो निष्ठा, ईमानदारी, त्याग, कर्तव्यनिष्ठा टिकट ले बा। ना मिली त बगावत। अपने ही लोग से अदावत। एही बीचे कई गो ठेकेदार पैदा हो गइल हवें। मोल-भाव लागत बा। ठगे-ठगे बदलईया होता। संतरा के रंग सबकर पहिला पसंद बनल बा। बहुरूपिया पाला बदल-बदल के टिकट खातिर लाइन लगावत हवें। बस एक बेर टिकट मिल जा। जीवन सफल हो जाई। टिकट बांटे वाला भी बड़ा बेईमान निकरेलें। मंच पर भाषण देलें की कार्यकर्ता के ही सम्मान मिली। आ पैसा पावते राग बदल के कहलें, कईसहुँ सीट चाहीं। विरोधी पार्टी के लोग भी खाँचा में फिट बईठी त सीट खातिर ओही के नाम पास होई। अपनी पार्टी लोग खाली झंडा ढोवे आ डंडा खा। सत्ता खातिर जिलेबी जईसन सीधा राजनीति आम कार्यकर्ता का ना बुझाई। 

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रविवार, 4 दिसंबर 2022

एन डी देहाती, भोजपुरी व्यंग्य: 4 दिसम्बर 22

ले टोपी,दे टोपी

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- बेदर्दी सर्दी में गर्मी के एहसास बा। अपना यूपी में नगर निकायन के चुनाव बा। नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम के महापौर के मौर केकरे माथे बंधाई, राम जी जाने। लेकिन किसिम-किसिम के टोपी बेचे वाला टप्पेबाज उतर गईल हवें। केहू इनके टिकट दियावत बा, केहू उनके। तरह-तरह के टोपी। इनकी कपार के कुलही उनकी कपार। लहि गईल त तीर ना त तुक्का। ऊपर से फजीहत-थुक्का। देश जब गुलाम रहे तबसे आज ले समाज में तरह-तरह के टोपी देखे के मिलल। आजादी की लड़ाई में गांधी बाबा की कपारे भले टोपी कम लउकल, लेकिन गांधीवादिन की कपार पर ज्यादा लउकल गांधीवादी टोपी। नेताजी के टोपी आजाद हिंद फौज के टोपी रहल। देश आजाद हो गइल लेकिन नेताजी की मौत से रहस्य के पर्दा आज ले ना उठा पवलें टोपीधारी लोग। भगत सिंह वाली टोपी पहिनले से केहू क्रांतिकारी ना हो सकेला। भगत सिंह त देश खातिर फांसी चढ़ गइलें।  रमजान की महीना में रंगिबरंगी टोपी लउकेली। रोजा न रहे लेकिन कपार पर जालीदार टोपी पहिन के कुछ हिंदूवादी लोग भी अफ्तार कइला से ना चुकेलन। टोपी मान ह, सम्मान ह, निशान ह, पहिचान ह। टोपी की प्रकार पर बात कइल जा त बहुत विस्तार हो जाई। मौसम की मिजाज से भी लोग टोपी के चयन करेलन। बरसात में बरसाती टोपी, गरमी में धूपी टोपी आ इ जवन जाड़ा चलत बा येहमा मंकी टोपी ही लउकत बा, जेके कुलही कहल जाला। कई लोग के मुंडी पर शौकिया हिमांचली टोपी, राजा मंडा वाली टोपी, क्रिकेटवाली टोपी आदि बहुत प्रकार के टोपी शोभा देली। आज कल एगो खास टोपी आम आदमी की कपार उग आइल बा। देश में टोपी उछलउअल के खेल होता। टोपी राजनीति में समइला के भी जरिया बा। आखिर हरज का बा?टोपी पहिन सत्ता में समाई फिर टोपी के उल्टा कर के पीटो -पीटो। धन पीटो। दौलत पीटो। मोटर-गाड़ी, बंगला-लॉकर पीटो। टोपी-टोपी, पीटो-पीटो करत एगो साम्राज्य खड़ा कर दीं। फिर वंशवाद के वेल बढ़ाई। लोकतंत्र की नाम पर राजतंत्र चलायीं। मेहरी की सीट पर मरद बईठाई। प्रतिनिधि बनके गटक-गटक करीं। फिर महिला आरक्षण खातिर लड़ाई लड़ीं।आंख उठाके देखीं, येही प्रतिनिधिवाद की चलते सत्ता कुछ परिवारन की हाथ के खिलौना बन के रहि गइल बा। सब बदलाव चाहत बा, लेकिन एगो नियम बनावला के बात केहू ना उठावत बा कि जे लोकतंत्र के राजा चुना जाई ओकर भाई-भतीजा-भांजा, चचिआउत, पितिआउत, मौसिआउत, फुफुआउत, ममिआउत चाहें कवनो आउत होखे राजनीति में समइला पर प्रतिबंध रही। अगर अइसन नियम बन जा त राजनीति पवित्र हो जाई। इ परिवर्तन रउरी एगो वोट से हो सकेला। वोट माने मत। मत माने बुद्धि। त आई संकल्प कइल जा अपनी बुद्धि के हरण ना होखे दिहल जाई। केहू के टोपी मत उछालीं, लेकिन जब चुने के बा, त बढ़िया चुनीं। दस रुपया के सब्जी भी सड़ल-गलल ना ख़रीदेलीं त अपनी नगर, कस्बा, महानगर के पांच साल खातिर राजा चुनत हईं त बढ़िया चुनीं, जवन विकास करें, बकवास ना।

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रविवार, 27 नवंबर 2022

एन डी देहाती : भोजपुरी व्यंग्य 27 नवम्बर 22

सरगही धान के चाउर, झकाझक चिउड़ा 


हाल- बेहाल बा / एन डी देहाती


मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल का कहीं, बड़ा बवाल बा।  पहिले लड़िका लोग सरस्वती माई, दुर्गा माई आ लक्ष्मी माई की विसर्जन में डीजे बजावत, नाचत-गावत नदी की घाटन पर जात रहलें। अब बेटा-बेटी एक समान। काल्ह पीड़िया विसर्जन रहे। लईकियो ट्रैक्टर- ट्राली पर डीजे बजावत, नाचत- गावत घाटन तक गईली। एक से बढ़कर एक भजन, लोकगीत, पारम्परिक गीत, फिल्मी-सिल्मी सब बाजत रहे। सामुहिकता के बहुत अदभुत रूप ह पीड़िया। एगो दीवाल पर गोबर से बनल सैकड़ों की संख्यां में लागल पीड़िया के लड़की लोग बड़ा आसानी से पहचान लेली। अंतर एतने रहेला कि बिअहल-दानल लड़की लोग के पीड़िया सेनुर से टिकाइल रहेली आ कुंआरि लड़किन के बिना सेनुर से टिकल।   पीड़िया के समापन ' भूजा मिलौनी' की साथे पूरा होला । 
 लोक संस्कृति में पीड़िया एगो अइसन पर्व ह जवन पूर्वाचल की गांवे- गांवें गोधन कूटला की बाद शुरू हो जाला। गोबर से बनल गोधन बाबा के पूजला आ कूटला की बाद पीड़िया माई के निर्माण होला। गोधन बाबा से पीड़िया माई बनला की यात्रा में बहुत कुछ होला। रेंगनी की कांट से बहिन लोग अपनी भाई के गोधना की दिने सरपले रहली। पीड़िया की दिने ओही भाई की नाम पर सरगही घोंट के आपन व्रत तोड़ेली आ भाई के सुखी जीवन के कामना करेली। कातिक में भैया दूज से लेके अगहन की एकम ले पीड़िया उपास ना करे, एकरा खातिर रोजे बिटोर होला। गृहस्थ आश्रम के सजो संस्कार के खेल (स्वांग) की माध्यम से एक पीढ़ी से होत दूसरे पीढ़ी तक चलत चलि आवत बा। नारी सत्ता के ही रहन- सहन। तुतुलाह बोले वाली बच्ची से लेके बीअहल-दानल युवती तक मायका में पीड़िया की माध्यम से जीवन के सच से रूबरू करावे खातिर एगो लोक स्वांग, एगो लोक खेल करेली। नाटक के पात्र डॉक्टर हो या धगरिन, पति हो या पिता, सास हो या ननद । सब पात्र नारी। जब स्वांग करत रात में दरोगा बन के कवनो लईकी रोबदार आवाज में गरजे त बड़े-बड़े के पेट पानी हो जा। जब बात साफ होखे कि दरोगा ना इ त फलनवां के बेटी पीड़िया के खेल करत रहल, सुन के लोग हंसत- हंसल लोट जा। पीड़िया में भुजा मिलौनी की दौरान लाई- गट्टा देत लेत में जवन प्रेम झलकेला उहो अनोखा ह। चाउर, चिउरा, फरुही, मकई, सांवा, कोदो, टांगुन, बाजरा, बजरी, मडुआ के भूजा। शहर में बसल कई परिवार के लड़की लोग एतना अनाज के नाम भी ना जानत होइहें, लेकिन गांवन में अनाज के ज्ञान सबका बा। पीड़िया की दिने सतअनजा लउक जाला। देसी मिठाइन के भी गजब के मेल। गट्टा, बतासा, लकठा, खुरमा, पेड़ा, पेठा से लेके गुरही जिलेबी तक । जब सतअनजा के भूजा आ देसी मिठाई के मेल मिल जाला त पीड़िया के परसादी के स्वाद गजबे हो जाला। पीड़िया के दिने पंडितपुरा के बिटिया दखिनटोली के बिटिया से भूजामिलौनी कर के सामाजिक समरता के मिसाल कायम करेली। 

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रविवार, 20 नवंबर 2022

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 20 नवम्बर 22

कोटेदार जस नहीं उपकारी

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पूछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बेहाल बा। कोटेदार के लोग चोर, बेईमान, घटतौलिया, झुठठा, फरेबी...। आदि तमाम अलंकरण से सुशोभित करेलें। जबकि कोटेदार की समान उपकारी कवनो दूसर लोग नईखन। अब देखीं न सितम्बर से स्कूल के राशन सरकार नईखे देले, लेकिन कोटेदार के उपकार देखीं, स्कूल की लईकन के रोज मिड डे मिल के राशन दे रहल बा। लईकन के खिआवे वाला मास्टर जी पढ़ल -पढावल पर कम ध्यान देत हवें। राशन- पानी पर ज्यादा। रजिस्टर मेंटेन रहे के चाहीं। मीनू-फ़िनू के बात छोड़ीं। दूध-फल अगर नईया नाव संयोग कबो बंटा जाई त फोटो से व्हाट्सप ग्रुप अंडस जाई। मास्टर साहब लईकन के खिआवत हवन त कवनो उपकार नईखन करत। उपकार त कोटेदार करत बा। केकरी पर कोटेदार के उपकार नईखे? बिना मानदेय के तुच्छ कमीशन पर काम करे वाला प्राणी पर केतना जिम्मेदारी बा। राशन उठावते जोड़- घटा के केतना कमीशन बनल, विभागीय साहब के पहुंचा देले। अधिकारी की लगे समय से कमीशन ना  पहुंची त छोटो शिकायत पर बड़वर कार्रवाई हो जाई। कमीशन समय से पा जइहैं त बड़-बड़ शिकायत उनकी बड़वर पेट में हजम हो जाई। अधिकारी के नगद नारायण के उपकार कईला की बाद जब राशन गांव ले पहुँचल त प्रधान जी पर उपकार शुरू। प्रधान जी की आदेश पर उनकी खास वोटरन के मुअनी-जियनी, छठी-छीला पर अलग से उपकार क के राशन देबे के परेला। गाँव में कुछ मुँहकढ़वा रहेलन। उ विरोध न करें, कबो एप्लिकेशन-पब्लिकेशन न करें एकरा खातिर रात के अन्हरिया में ओ टिपटिपवा की घरे ले मुफ्त राशन पहुंचा के ओकरा पर भी उपकार करे के पड़ेला। कोटेदार की उपकार से ही गाँव में कोठी-अमारी, गाड़ी-घोड़ा, नौकरी-चाकरी वाला धनाढ्य भी पात्र गृहस्ती के पात्र बनेलन। जवन कोटा की दुकान पर दिन में लाजन ना जाने लेकिन रात की बेरा फार्च्यूनर में लाद के राशन ले जालन। सच कहीं त कोटेदार सरकार के सबसे बड़वर मददगार ह। सरकार के प्राथमिकता राशन पर, लोग के वोट राशन पर, आ कोटेदार के रोजी-रोटी राशन पर। अगर कोटेदार किलो में सौ ग्राम अग्रासन जईसे निकार लेत बा त कवन अपराध करत बा। ओहु के त तौल के नईखे मिलत। सरकार कहलसि कोटेदार की घर ले राशन पहुँचावल जाई। अब भला ई बताईं कवना गावँ ले ट्रक के रास्ता बा? जेतना खर्चा में गोदाम से कोटेदार राशन ले आवत रहे ओतने खर्चा में सड़क से लादवा के ले आवत बा। एतना संझवात सहत, सबकर ताना सुनत, चोर-बेईमान बनत भी कोटेदार चुप्प रहेला। ओकरी सहनशीलता के कवनो जोड़ नईखे। मरल आदमी के स्वर्ग तक राशन पहुँचवावे वाला कोटेदार पर अंकुश लगावे खातिर सरकार अंगूठा लगावे वाली मशीन दे दिहलसि। अब ना मरल मनई सरग से अइहें ना अंगूठा लगईहें। कोटेदार के शत्रु भी होखें त उनहूँ के इज्जत की साथे राशन देबे के परेला। अईसन उपकारी जीव के चोर-बेईमान मत कहीं। के-के, केके नईखे पालत एगो कोटेदार।

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रविवार, 30 अक्तूबर 2022

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 30 अक्टूबर 22

छठ मईया के पूजा,
आ सूरजदेव के अरघा

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पूछलन-बाबा ! का हाल बा?
बाबा बतवलें- हाल का बताईं? पूरा महीना तिहुआर के ही बहार रहल। महंगी की मार से लाचार मनई, आ ऊपर से तिहुआर के भार। एह महीना में दुर्गा जी पूजईली। लक्ष्मी जी पूजईली। गोधन बाबा कुटइलें। पीड़िया लाग गईल। आज छठ माई पूजात हईं। आस्था के लोकपर्व एक पर एक चढ़ल चल आईल। गरीबी भगावे खातिर माई बहिनी लोग सूप बजा के दलिद्दर खेदल। घर से बहरा खेदा गईल। सूप त बाजल, का सचहुँ दलिद्दर भागल? ईआ, बड़की माई, काकी ,भौजी, बहुरिया और न जाने के- के असो भी सूप बजावल। बस एगो इच्छा दलिद्दर भाग जा। मतलब साफ बा बगैर शोर के कुछ न भागी। सीमा पर दुश्मन। देश में गद्दार। गरीबी आ भ्रष्टाचार। सब भगावे खातिर शोर वाली परम्परा। आजादी से लेके अबतक खूब भोपू बाजल। हकीकत आप की सामने बा। केतना दलिद्दर भागल? भागे न भागे हमार काम भगावल ह। सबके जगावल ह। ई देश विविधता के देश ह। गोधन बाबा कूटालें। पीड़िया माई बन जाली। कलम-दावात के पूजा होला चित्रगुप्त महराज प्रसन्न हो जालें। छठ आ गइल। नयाह-खाय-खरना-अर्घ की तैयारी में लागल लोग। सालोंसाल गंदगी आ कचरा वाली जगह पर साफ-सफाई की साथे छठ के बेदी बने लागल। पर्व के सफर, त्योहार के सिलसिला, अइसे ही चलत रही। छठ माई के व्रत होई आ सूर्य भगवान अर्घ्य लिहे। महंगाई पर रोज- रोज रोवे वाला मनई के हाथ भी त्योहार पर सकेस्त ना भइल। खूब खरीदारी भइल। इ भारतीय उत्सव ह। उत्सवधर्मिता में कहीं कवनों कंजूसी ना। धनतेरस की दिने से ही त्योहार के उत्साह शुरू बा। त्योहार हम्मन के संस्कृति ह। केतना सहेज के राखल बा। धनतेरस के एक ओर गहना-गुरिया, वर्तन- ओरतन, गाड़ी-घोड़ा किनला के होड़ त दूसरी ओर भगवान धन्वंतरि के अराधना- जीवेम शरदं शतम् के अपेक्षा। प्रकाश पर्व पर दीया बारि के घर के कोने-अंतरा से भी अंधकार भगा दिहल गइल। जग प्रकाशित भइल। मन के भीतर झांक के देखला के जरूरत बा, केतना अंजोर बा? ये अंजोर से पास- पड़ोस, गांव-जवार, देश-काल में केतना अंजोर बिखेरल गइल? दलिद्दर खेदला के परंपरा निभावल गइल। घर की कोना-कोना में सूपा बजाके दलिद्दर भगावल गइल लेकिन मन में बइठल दलिद्दर भागल? दुनिया की पाप-पुन्य के लेखा-जोखा राखे वाला चित्रगुप्त महराज पूजल गइलें। बहुत सहेज के रखल गइल दुर्लभ कलम-दावात के दर्शन से मन प्रसन्न हो गइल। अपनी कर्म के लेखा-जोखा जे ना राखल,ओकरी पूजा से चित्रगुप्त महराज केतना प्रसन्न होइहन? छठ माई के घाट अगर साल के तीन सौ पैंसठों दिन एतने स्वच्छ रहित त केतना सुन्नर रहित। पर्व-त्योहार के जड़ हमरी संस्कृति में बहुत गहिर ले समाइल बा। 

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 23 अक्टूबर 22

शास्त्र पड़ल पंसारी की बखरा

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा?बाबा बतवलें- हाल बड़ा बेहाल बा। केकर-केकर लेई नाव, धोती खोलले सगरो गांव। धोती से मतलब तन ढांके वाला पांच गज के कपड़ा से ही ना बा। धोती मर्यादा ह, इज्जत ह, प्रतिष्ठा ह, मान ह, सम्मान ह, पहिचान ह सभ्यता आ संस्कृति के। केतना लोग के धोती बांस की पुलई टंगा गइल। इ अनपढ़- गंवार के मटमैली धोती ना रहल। इ धोती बहुत झकास, चमकदार रहल। रूपांतर मे येके कहीं वर्दी, कहीं बाना कहल गइल। बाना में जे बंधि के ना रहलन, त संत, महंत, समाजसेवी, शासक, प्रशासक के बड़ा छिछालेदर भइल। बचपन में पढ़ल गइल-  महाजनो येन गत: स पंथा। मतलब, समाज के श्रेष्ठ लोग जवना राह चलें, ओकर अनुकरण करे के चाहीं। केकर अनुकरण कइल जा। धर्म गुरु, बड़ अफसर, जज, नेता, शासक, प्रशासक, पत्रकार...। दूसरा के नैतिकता के पाठ पढ़ावल बहुत आसान बा।  अपनी गिरेवान में झांकल बहुत विकट बा। बात पत्रकार बिरादरी (जाति ना पेशा) से ही करत हई। एगो समय रहे चारों ओर तहलका, तहलका। अब त- हलका हो गइल। तरुण की तरुणाई में एक से एक स्टिंग। भूचाल आ जात रहे। अब ईमानदार मीडिया ट्रायल पर कइसे लोग भरोसा करी जब अपने में छिहत्तर गो छेद बा। अवला जब अत्याचार के खिलाफ खड़ा होलिन त बला बन के पीछे पड़ेलिन। रउरा सभ की सामने उदाहरण बा कथावाचक आसाराम, स्वामी नित्यानंद, नारारण साई अइसन ऊंचा लोग भी मार्ग से भटकलें त ओछा लोग की श्रेणी में आ गइलन। हरियाणा बेहतर नस्ल की सांड खातिर विख्यात रहल। एगो डीजीपी तब कुख्यात हो गइल रहे। जब टेनिस खिलाड़ी रुचिका गिरहोत्रा छेड़छाड़ के आरोप लगवले रहली। सांड नथाइल, जेल भेजाइल। पंजाब के डीजी भी अइसने एगो मामला में जेल के हवा खइले रहलन। और भी बहुत उदाहरण बा। मोटा-मोटी कहे के बा कि मन के तरंग मारि लीं। जब मन बौराई त अइसने अनैतिक आ ओछा काम हो जाई जवना से धोती टंगा जाई। मन के तरंग ना मराई त बुरा विचार उठी। बुरा विचार की चलते ही कई जने साधु-संत, सांसद-विधायक, वकील-जज, पत्रकार-संपादक, शासक-प्रशासक पर भी संगीन आरोप लगल। धोती टंगल, जग हंसाई भइल। सभ्य, शिक्षित कहाये वाला समाज के अगुआ लोग जवन बहुत ज्ञानी हवें। बहुत शास्त्र पढ़लें, लेकिन एतना शास्त्र पढ़ला की बाद भी जेकर मन भटक गइल, अहंकार कपार पर चढ़ के बोले, त बुझी की कुछु ज्ञान हासिल ना भईल बा। कवनो शास्त्र अगर पंसारी की बखरा पड़ जाई त उ पढ़ी की फारि के मसाला बेची ओकरा ऊपर बा। 
पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य 7 अगस्त 22

घरे-घरे तिरंगा लहरे, राष्ट्रभक्ति के पताका फहरे

हाल- बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें-बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें-हाल त बेहाल बा, लेकिन एक बात के खुशी बा कि आजादी की पचहतर वर्ष बाद राष्ट्र आ राष्ट्रभक्ति के स्वरूप बदलल बा। राष्ट्र, विश्व गुरु बन गईल आ तिरंगा अब रतियो में राष्ट्रभक्ति के प्रतीक। घरे-घरे तिरंगा लहरत बा। राष्ट्रभक्ति के पताका फहरत बा। राष्ट्र उहे रहल लेकिन नेतृत्व बदलल त विश्व के बड़का देश भी हमार अहमियत समझले। मतलब केहू खोखें त हमसे पूछ के। तिरंगा पहिले दिन में ही लहरत रहल। सांझ होते अगर सम्मान सहित ना उतरत रहे त अपमान समझल जात रहे। पन्द्रह अगस्त आ छब्बीस जनवरी के मास्टर साहब लोगन का जेतना मिठाई के चिंता ना रहत रहे, ओतना चिंता एह बात के की सांझ के झंडा कईसे उतार के रखाई। घर से दुबारा स्कूल ना जाये के परे एकरा खातिर लोग गाँव में ही केहू के पटिया के, मिठाई के दोना तनी बढ़ा के दिहल जात रहे। गाँव के उ बन्दा झंडा के आदर-अनादर भले न समझत रहे लेकिन मास्टर साहब के बढ़ा के दिहल मिठाई के ही आपन सम्मान आ दायित्व बुझत रहे। असों, राष्ट्रभक्ति की भावना में झंडा के नियम बदल गईल। अब रातों-दिन फहरायीं। मंत्री- मनिस्टर की भांति रउरो अपनी वाहन पर लहराईं। लाल किला से कम अपनी घरवों में मत समझीं। घर ना होखें त झोपड़िये सही, झोपड़ी भी ना होखे त टाटी-प्लास्टिक कुछू जवन सर ढंके खातिर अपनी हैसियत से खड़ा कईले हईं ओके कवनो महल-अटारी से कम जनि समझीं। खूब जश्न मनाईं। असो अमृत महोत्सव मनत बा। रउरो मनाईं। सालों-साल महंगाई के रोवल-धोअल छोड़ी, समझीं की आसमान से सीधे अमृत रउरीये मुँह में गिरल बा। बाप-दादा, पुरखा-पुरनिया ढाई सौ बरस बेबसी आ गुलामी भोगले रहे। बड़ा कुर्बानी देले रहलें, तब ई सोने के चिरई आजाद भईल रहे। दुनिया के तमाम देश हमरे देश की संगही आजाद भइलें। एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका आ बाकी देश भी  जम्हूरियत के चिराग जरवलें। सब कर चिराग बुझ गईल। हिन्दुस्तान ही एगो अईसन अकेला देश बा जहां लोकशाही के चिराग आजुओ जरत बा। लोकशाही के चिराग कबो बुझे ना दिहल जाई। जरूरी एह बात के बा कि अपनी शास्त्रन से, अपनी संस्कृति से, अपनी सभ्यता से, अपनी सनातन पक्ष के कबो बिसरे ना दिहल जा। वास्तविक धरातल के सच भी देखावला के साहस राखल जा। अमृत के असल हकदार देव तुल्य जनता ही होले, लेकिन आज सत्ता के आवरण ओढ़ के कईसे राहु-केतु भी छक के अमृत पिअत बाड़न ओहुन पर नजर राखल जा। चुनल प्रतिनिधि जवन मंगनी की बाइक से चलत रहे, दु साल में फार्च्यूनर से कईसे चले लागल? जनता के घरेलू गैस पैसा की अभाव में ना भराई, आ नेताजी लोग की घरे एतना रुपया मिली कि मशीन भी गिने में गरमा जाई, ई ना होखे के चाहीं। लोकतंत्र की सहारे बादशाहीयत अर्जित करे वालन नेतन के भी लेखा-जोखा राखल जरूरी बा। नाहीं त सबके तिरंगा लहरवला में अझुरा के सजो अमृत इहे पी जइहैं। नेतन की सुख-सुविधा में कटौती कर के आम जनता खातिर योजना बनवला के काम बा। तब जाके आजादी अमृत महोत्सव के मजा आई। केहू खात-खात मरी- आ केहू खइला बिना कुहकी, ई ना चली। बगल में श्रीलंका के हाल देख लीं।
पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।

भोजपुरी व्यंग्य: 9 अक्टूबर 22

हालत विचित्र बा, रावन ही मित्र बा

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त बेहाल बा। पितरपख की बाद नवरातन ले मांसाहारी लोग के उदासी अब हुलासी में बदल गईल बा। आदमी के बस चले त जीया-जंतु का, आदमी के भी पका के खा जाई। श्रीराम के भक्त कम, आ रावणी प्रवृति वाला लोग धरती पर ज्यादा हो गइल बा। हालत विचित्र बा, रावण ही मित्र बा। लोग की मन में ही रावण समा गइल बा। विभीषण के चरित्र भी बदल गइल बा। अब उ रामजी के सही भेद ना बतावत हवें, की रावण की नाभि में अमृत बा। रावण अपनी चतुराई से अमृत के जगह बदल देले बा। अब रामजी एक बाण मारे चाहें इकतीस वाण, रावण के कुछु बिगड़े वाला ना बा। का जमाना आ गइल बा। नाभि खोल के देखावला के चलन बढ़ गइल बा। पूरा दशहरा माई के मूर्ति रख के भोजपुरी के ढोढ़ी वाला गन्दा गीत बाजल। मना कईला पर भक्त बाजि जइहैं। सत्य सकुचात बा। झूठ मोटात बा। नैतिकता के पर्व के रूप में, न्याय की स्थापना में, विजय पर्व की याद में दशहरा मनावला के परंपरा शुरू भइल। येही दिन त रावण के वध भइल रहे। युगन से रावण दहन होत आवता, लेकिन रावण जिंदा बा। चारों ओर रावण अट्टहास करत बा। देखला के दृष्टि चाहीं। दूसरे की दिल में ना, अपने मन में झांक के देखीं। मन में रावण बैठल बा। मन के रावण मरला बगैर कागज-पटाखा की रावण के पुतला फूंकले ना शांति मिली ना संतुष्टि। प्रवृति आसुरी हो गइल बा। एगो सीता मइया की हरण में रावण साधु वेष बनवलसि। मौजूदा समय में साधु वेशधारिन के संख्या असंख्य बा। जे साधु वेश में ना बा ओकरो मन में रावण के माया राज करति बा। रावण त सीता मइया के खाली हरण कइलसि, आज हरण की तुरंत बाद वरण आ ना मनला पर मरण तक पहुंचवला के स्थिति बा। रहल बात रामजी के, त उंहा के नाम बेचल जाता। रामजी की नाम पर कथा, प्रवचन, भजन बहाना बा, लक्ष्मी बिटोरला के धंधा तेज बा। ई धरती वास्तविक राम आ उनकी भक्तन की भक्ति से बचल बा। रावण के एगो रूप नवरात्र के आखिरी दिन देखे के मिलल, जब कन्या भोज खातिर मनबोध मास्टर घर-घर लड़की तलाशत रहलें। कई घर छनला की बाद बहुत मुश्किल से 21 कन्या मिलली। दरअसल रावण प्रवृति में एतना कन्या भ्रूण हत्या भइल की लड़की लोग के संख्या ही कम हो गइल। एकरा पीछे के कारण तलाशीं त साफ हो जाई की रावण के दुसरका रूप दहेज की आतंक से कन्या भ्रूण हत्या के संख्या बढ़त बा। फिर भी हम भक्ति में लीन होके गावत हईं- माई हो, तनी आ जईतू। हर साल विसर्जन की दिने दारू के ठेका बन्द रहत रहे। असो ओहू के खोलला के आदेश रहल ह। बगैर शीशी के जयकार के ध्वनि भला कहां सुनाई। रावन के प्रमुख आहार मांस आ मदिरा ही त रहल। आज मनई भी उहे अपनवले बा। सात्विक जीवन दुर्लभ बा। आडम्बर के बोलबाला बा। बड़वर सवाल ई बा कि शत्रु आ मित्र पहचानल मुश्किल हो गइल बा। अब रावन ही मित्र बा। ज्यादातर लोग के रावन के ही चरित्र बा।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब, अगिला हफ्ते।।

रविवार, 16 अक्तूबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य:16 अक्टूबर 22

रोज लताड़ेली, एक दिन निहारेली

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त बेहाल बा। सब माया के जाल बा। त्योहारन के बहार बा। मलिकाइन खुश, मालिक लाचार बा। सब की बावजूद सलीमा आ टीवी वालन की महिमा से घर-घर मनई जवन सालों-साल लताड़ल जात रहे, ओहू के एक दिन पूजाये के मौका मिल जाता। धन्य हो करवा चौथ। सालो-साल गाल फुलवले, मुंह ओरमवले वाली पंडिताइन आज बिहाने-बिहाने से ही चहकत रहली। उनकर रूपजाल देख के बाबा सम्मोहित रहलें, रोमांचित रहलें, आनंदित रहलें। झुराइल जिनगी की रेगिस्तान में कुछ-कुछ हरियर लउके लागल। उषाकाल से अपरान्ह काल तक पंडिताइन के एक ही रट-  ए जी! सुनत हई। संवकेरे घरे आ जाइब, आज करवा चौथ ह। चलनी में चांद निहारे के बा। राउर आरती उतारेके बा। बाबा सोचे लगलें- अगर इ व्रत ना रहित, त पंडिताइन सीधे मुंह बात भी ना करती। जेकरा पर पूरा जवानी कुर्बान क दिहल गइल, उ कब्बो हरियर मन से बात ना कईली । भला हो हमरी संस्कृति के, हमरी परंपरा के, पर्व-त्योहार के। इ प्रेम के उमंग बढ़ावत बा। जीवन में खुशबू महकावत बा। घरकच की करकच में रोज-रोज घटल नून-तेल-मरिचाई के चिंता से मुक्ति दिया के पूजा-पाठ-वंदन के उछाह बढ़ावत बा। इहे कुछ सोचते रहलें की पंडिताइन के फोन फेर आइल- ए जी! पौने आठ हो गइल। जल्दी आई , चनरमा उगहि वाला हवें। बाबा अत्रकारित-पत्रकारिता छोड़ के घर की ओर चल दिहलें। सुबह-शाम में एतना अंतर। जीवन में पहिला बेर कातिक में बाढ़ देखलीं। घाघरा घघा के अईसन बढ़त रहे की अट्ठानबे के इतिहास दोहरावे में लागल रहे। जवना सड़क आ बन्धा से सुखरखे गईल रहनी। गंगा बहत रहे। जूता-मोजा-पतलून भीग गइल। डुमरी की बन्धा पर सालों-साल साही के मानि ना भराईल रहे। अब बाढ़ विभाग बोरी में माटी से बिल मुनला में लागल रहे। देवरहा बाबा के आश्रम में पानी देखे आईल रहे अधिकारी लोग नरिआव से ही गोड़ लाग के लवटि गईलें। कसिली पुल से हरहरात सरयू मईया अडिला, ड्योढ़ी के नहवावत आगे बढ़त रहली। बैंक, स्कूल, अस्पताल सब पानी से घेराईल रहे। गोर्रा गुर्रात रहे। घाघरा घघात रहे। पानी बढियात रहे। सालों साल बाढ़ के इंतजाम करे वाला लोग ऊंघात रहे। साहब-शुब्बा-नेता आवत रहें। फोटो खिचावत रहें। चारों ओर दबाव के माहौल। बन्धा पर नदी के दबाव। घेराईल मनई के जान बचावला के दबाव। खबरीलाल लोग का खबर के दबाव। बाबा का अपनी चांद निहारला के चिंता रहे। हाफ़त- डाफत-पांकत कवनो ना घरे पहुंचले। पंडिताइन चलनी से चांद निहारला की बाद बाबा के चेहरा देख चवन्नी मुश्की मारत मुहें में मिठाई हूर दिहली। बाबा पगुरी करत करवा के पानी पंडिताइन के पीया के पुछलें-जुड़ईलू। मुहल्ला में जोर से शोर हो गइल। भगिहे रे! सरयू मईया के धार एनिये आवत बा।

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रविवार, 2 अक्तूबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 4 सितम्बर22

ले ल पोदीना, बुढौती में नगीना

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पूछलें- बाबा ! का हाल बा? बाबा कहलें- हाल उहे बा, खाल उहे बा। जबसे सरकार बुढ़ऊ पत्रकार लोग के पेंशन देबे के घोषणा कइलसि, जमीनी पर पैरे नईखे। सब बेमारी दूर। जवानी छलकत बा। नवहा खबर नबिश भी दईब के गोहरावत हवें, हमहुँ जल्दी बुढा जईतीं त हमरो मुट्ठा-खांड भेटा जाइत। असल, दरअसल, किंतु, परन्तु, बल्कि, लेकिन..सब भुला के सरकार के सौ-सौ धन्यवाद देता। आजादी की बाद पहली बेर कवनो सरकार आईल, जवन निरीह प्राणी, चौबीस घण्टा के सूचना खुरपेचिया, बिना तनख्वाह के नौकर के भी भरण-पोषण, गुजर-बसर के चिंता कइलसि। आखिर एगो पत्रकार के और का चाहीं? जिन्नगीभर समाज के व्याप्त बुराई आ भ्रष्टाचार की खिलाफ जंग लड़त समाज से दुश्मनी ही त कमईलें। सामने की सम्मान से बड़वर त पीठ पीछे के अपमान ही कमईलें। लोकतंत्र के चौथा खम्हा कहइलें लेकिन कवनो सरकार इनकी बारे में ना सोचलस। अब सरकार सोचलसि त मुसरन ढोल बजावत हवें। बजा ल भईया। अभिन पेड़ पर कटहल बा, मुंह में तेल लगा के बईठल रहीं। ना जाने कब कोआ खाएके मिली। घोषणा जेतना सुघ्घर लउकत बा ओतने टेढ़ बा। ना चलनी में पानी आई, ना आटा सनाई। नियमवे एतना टेढ़ बा कि पूरा जवानी अगर सच के, ईमानदारी के, साहस के पत्रकारिता करत बुढाईल हईं त ख्याली पुलाव अगर भेटा गईल त अपना के धन्य समझीं। सन 82 से हमहुँ एही लाइन में हईं। चालीस साल से लिखत-पढ़त, खुरपेच करत 62 वर्ष के हो गइलीं। जवना संस्थान खातिर काम कइलीं ना उ मान्यता दिहलसि ना कवनो सरकार। हमरे समनवे जनमल चिंटू, पिंटू, गोलू जईसन कई जने के जिला से लेके राज्य स्तर तक के मान्यता मिल गईल। काहें कि ऊ केहू न केहू के पोछि पकड़ के सरकार के कृपापात्र हो गइलन। उनकी लगे जवन जोगाड़ रहे, हमरे लगे ना बा, ना होई। का रउरी लगे पांच साल लगातार जिला चाहे राज्य के मान्यता बा? नईखे, त काहें कूदत हईं। एतने योग्य रहितीं त मान्यता ना मिल गईल रहित। मान्यता लिहला के एगो अलगे योग्यता होला, जवन सब पत्रकार की लगे होइए ना सकेला।
दुसरका बात बा, अगर पांच साल वाली लगातार के मान्यता नईखे त 10 वर्ष तक श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 के प्रावधान की तहत श्रमजीवी पत्रकारिता कईले होईं। इहो सरग के जोन्ही जईसन बा। जवना संस्थान में रउरा लिखीं लें,उहे लिख के ना दीहें कि रउरा उनकी इहा लिखीं लें। मतलब साफ साबित हो जाई कि रउरा श्रमजीवी ना परजीवी हईं। अब तिसरका शर्त पर आईं। अगर वृद्ध भईला की बाद कहीं कहीं एको-दु बेर खाता में वृद्धा पेंशन के पांच सौ रुपया भुला भटक के आइल होई त चाहे लाख शपथपत्र लिख के देई रउरा अयोग्य ही कहाइब। जवना वृद्ध लोग के पूर्वांचल बैंक में खाता रहे उ बैंक बड़ौदा हो गइल। आ वृद्धा पेंशन अबो लटकल बा। अब आईं, आय पर। लेखपाल अगर ईमानदारी से राउर इनकम आंक दिहलसि त मिल भईल पेंशन। एतना कुल कागज पत्तर साते दिन में जुटा के जमा कईला की बाद रउरा भाग्यशाली होखब त पेंशन मिली। ना नौ मन तेल होई, ना राधा नचिहें। सबकर निचोड़ ई बा कि जे पत्रकार सरकार से लाभ पवले बा, उहे लाभान्वित होई। जे हरियरी देख के हहरल बा उ अबो हहरी। गोसाईं बाबा पहिलही लिख देले रहलें- सकल पदारथ एहि जग माही...।

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भोजपुरी व्यंग्य: 18 सितम्बर 22 को जनादेश में प्रकाशित

चारों ओर बा घेरले पानी
उनकी आंख के मरल न पानी

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त बेहाल बा। जीव के जंजाल बा। दईं के लीला गजबे बा। सावन सुखार में बीत गईल। धान पानी बिन सूख गईल। कातिक नियराईल त इंद्र देवता का याद आईल की धरती पर पानियो बरसावे के बा। अईसन बरसा दिहलन की अब रबी के बुआई भी पिछुआई। ना खाल खेत निखरी न गेहूं बुआई। मतलब साफ बा, धान सूखा से गईल, त गेहूं पानी से। जमाना उल्टा हो गइल बा। प्रकृति कुपित बा। जवन जल जीवन रहे उहे जानलेवा हो गइल, अपनी राज में शुक के अईसन पानी गिरल की चौबीस जने के जान चलि गईल। चारों ओर पानी-पानी हो गइल, लेकिन उनकी नजर के पानी ना मरल। अईसन पानी भईल की शहर में पानी निकासी खातिर बनत नाला भी बह गईल। पानीदार प्रशासन के चेहरा कमीशनखोरी आ घटिया निर्माण से बेपानी हो गइल। ईमानदारी के ढोल पिटे वालन के पोल खुल गईल। विरोधी लोग चुल्लू भर पानी लेके खोजत हवें, आईं एहि में डूब मरीं। लोग पानी पी-पी गरिआवत बा। शरीफ मनई सुन-सुन के पानी-पानी हो जाता, लेकिन उनकी आंख के पानी नईखे मरत। जानत हईं काहें? ठेका-पट्टी के कमीशन देखते उनकी मुंह में पानी आ जाला। शहर से लेके नगर ले गन्दा पानी। गन्दा पानी निकासी पर लूट खसोट। रुकल-सड़ल पानी में भी अवसर तलासल गईल। कमाए वालन के नाला के सड़ल पानी, बजबजात गन्दा पानी, पाप से सराबोर पानी कवनो अमृत सरोवर चाहे गंगा जल से कम पवित्र ना लागेला। बीमारी से बचावे की नाम पर कागजे में छिड़काव कर के धन के प्यास बुझावल जाला। यत्र-तत्र पसरल पानी के बहुत कहानी बा। राजधानी से लेके घर की चुहानी ले पानी के कई रूप बा। मुफ्त के पानी अब पईसा वाला पानी बनके बोतलबंद पानी हो गइल। सरग में सालोसाल पियासल पुरखन खातिर पितृपक्ष में पानी नसीब होला। पूर्वजन के पानी पीया के तर्पण करीं। आपन पानी राखे के होखे त दुसरो के पानी के कदर कईल सीखीं। रहीम दास जी अनेरो नईखन कहलन- रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून...।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।

भोजपुरी व्यंग्य : 2 अक्टूबर 22

मीठा-मीठा गप्प गप्प !!

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें -बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें-हाल त बेहाल बा। झूठ के बाजत गाल बा। दू बेर टकसला की बाद तीसरी बेर मंत्री जी के कार्यक्रम आखिर लागि गईल। जनता खुश। लागल सब सवंर जाई। अब भला जनता के कईसे समझावल जा कि सरकार कवनो होखे, असल किरदार अधिकारी होलन। सकल नचावत हैं अधिकारी...। मंत्री जी के गोशाला देखावे के होई त और जगह ना, गौरीबाजार जरूर ले जइहें। काहें, कि उ पहिलही से चकाचक बा। आंगनबाड़ी देखे के होखें त लवकनी बड़ले बा। मलिन बस्ती देखावे के होई त भटवलिया बा। अस्पताल देखे के होई त, तब ले जईहैं जब पर्ची बनल बन्द, मरीज के लाइन खत्म। मेडिकल कालेज जइहें, त डॉक्टरी पढ़े वाला लइके जयकारा लगईहे। ई ना बतइहें कि केतना दिन से छत के गन्दा पानी टँकी की जरिये पी के फिर भी हम्मन स्वस्थ्य हईं। सब देखला की बाद मंत्री जी आपन प्रवचन चालू करीहें- बजट के कवनो कमी नईखे। सब दवा उपलब्ध बा। ठीक बा ,सब दवा उपलब्ध बा त गेट पर दवाई के दुकान के कवन जरूरत बा। सब संसाधन आ योग्य डाक्टर लोग बड़ले बा, त काहें कवनो नर्सिंग होम में भीड़ काहें लागत बा। दरअसल सरकार जनता की प्रति जवाबदेह होखें न होखे, सत्ता में पुनरागमन के व्यवस्था पहिलही से मजबूत रखे ले। ना त सरकार बनावल आसान काम ह, आ न मंत्री बनल। सब गुणा गणित ह। सबके खुश करे खातिर कबो-कबो एगो मुख्यमंत्री की संगे दुगो उपमुख्यमंत्री बना दिहल जाला। चलेला केकर? अधिकारिन के। जवन अधिकारी जेतने तेज कनभरवा विधा में माहिर रही उ ओतने बड़वर कुर्सी पाई। पानी निकासी खातिर बनत नाला पानी में बह जाई, लेकिन सरकारी ढोल बजावे वाला सूचना विभाग पगुरी करत रही। कहीं कवनो खबर ना। कमीशनखोरी के करिया काम पर सोनहुला गलईचा बिछा के सबकुछ चकाचक देखा दिहल जाई। नया सोच के एतना गाना बजी की लोग की पाँव की मोच के दर्द भुला जाई। सद्व्यवहार की नदी से कुछ पत्रकारन के नहवा दिहल जाई। उ लिखल-पढ़ल छोड़ के जयकार में लाग जइहें। हर जिला में सरकारी डमरू बजावे वाला एगो करिश्माई अधिकारी रहेलन, जवन एकदम मीठा-मीठा अईसन बोलिहैं की सब झूठ गप्प हो जाई। साँच के टहाटह अँजोरिया अमौसा की दिने भी उगत दिखी। महिमामंडन की सरगम में झूमत अगर कवनो खबर पढ़े, सुने, देखे में स्वाद कसैला लागी त फट से आधारहीन आ तथ्य विहीन कहि के  खंडन बहादुर आपन धुधुका बजा दीहें। पत्रकार वार्ता बोलावल जाई। चाह-बिस्कुट खिआके, ज्ञान दिहल जाई। सकारात्मक बात कहल जा। नकारात्मक से ब्लड प्रेशर, शुगर सहित कई बीमारी बढ़ जाले। फिर प्रशंसाबाज आपन असल गति छोड़ के अधिकारिन की मति में आके सावन की अंधा जस हरिहर-हरियर देखे लगिहे। देश में जवाबदेह तंत्र कमजोर चलत बा। खुशामदी के मंत्र तेज असर करत बा। सरकार दिल खोल के लुटावत बा। जनता मुफ्त के राशन खा के डकारत भी नईखे। सब अच्छा बा। सब अच्छा बा। कहत मंत्री जी चल जइहें। हंसी त तब आईल, जब एगो दूसरे मंत्री जी के आदेश देखल गईल। मुअल मनई सरग से आके प्रस्ताव देत हवें , आ मंत्रीजी सड़क बनावे के आदेश देत हवें। 

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते


 


रविवार, 25 सितंबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 25 सितम्बर 2022

पुरखन के पख बीतल, अब आईल नवतातन

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बोललें-हाल बेहाल बा। आज  पितरपख उतर गईल, नवरात्र चढ़ गईल। एक पखवारा पूर्वज लोग ले लिहल, अब नौ दिन दुर्गा माई लीहें। जेकर बाबूजी नईखन उ दुखित रहे। कुछ लोग स्वर्गवासी बाबूजी खातिर दुखित रहलें त कुछ लोग का ई तकलीफ रहल की वीर भोजन से लेके लहसुन-प्याज भी दुलम हो जाई। पन्द्रह दिन पितरपख नीरस बीतल तवले दुर्गा माई के नवरातन आ गईल, एहू में बरावे के बा। अरे भाई! काहें दुखित हवा? ई हमार सनातन संस्कृति ह। यहके जीवित रखला के जिम्मेदारी भी हम्मन के ही। गांव-देहात में एगो किस्सा कहल जाला- जियते बेटवा हाल न पूछे, मरते पीपर पानी। मौजूद माई-बाप के सेवा ईश्वर की भक्ति से कम ना ह। स्वर्गवासी भईल पुरखन के बस दु बेर ही ठीक से याद करे के मौका आवेला। एगो पितरपख में आ दूसरे जब घर में शादी विवाह होला त पितर नेवतल जालें। पितरपख आज से शुरू बा। पितरन के प्रसन्न राखब त परमात्मा के कृपा बरसत रही। सफलता के दुआर खुलत रही। पूर्वजन के परंपरा, गोत्र, संस्कार, धन-संपदा से जीवन आगे बढ़त रही। भादो की पूर्णवासी से कुआर की अमावस्या तक पितर लोग के पक्ष। यह कालखंड में अपनी वंशजन के आशीष देबे खातिर पितर दिव्य लोक से पृथ्वी पर आवेलन। जेकर माई जीवित हईं उ अपनी पुत्रन की कल्याण खातिर जिउतिया व्रत रखली, उहो स्वर्गवासी मातृ शक्तिन के आराधना कईली। पितृपक्ष के समय में सभी पितर पृथ्वी लोक में वास करेलें। उम्मीद करेलें कि उनकर वंशज उनकी खातिर श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करिहन। ए सब कार्य से पूर्वज तृप्त होके आशीर्वाद देकर अपनी लोक वापस चल जालें। जे अपनी पितरन के तृप्त ना कर पावेला उ अधम श्राप के भागी बनेला। जब जीवन में ओके कवनो सफलता ना मिलेला त लोग कहेला की पितरदोष लागत बा। जेकर बाबूजी नईखन उनके पिंडदान, पानी तर्पण, कौआ, गाय, कुक्कुर के भोजन करावें दीं। ब्राह्मण भोज करे दीं। जेकर माई-बाप जीवित हवें, उ बहुत भाग्यशाली बा। भईया हो! माई-बाप के जियते अगर रोआं डहकईबा, त मरला पर पिंडदान का, सजो सम्पति दान दे दईब तबो पितर लोग खुश ना होई। जे खुशहाल लउकत बा, सच कहीं त ओकर पूर्वज खुश बाड़न। पुरखन की प्रताप से ही उ फलत-फुलत-बढ़त बा। जेकरा श्रद्धा नईखे ओकरा श्राद्ध भी पुरखा लोग ना ग्रहण करेलन। मरला पर के देखे आवत बा?कुछ लोग एके लोकधन्धन कही। कहें वालन के कहें दीं। रउरा आपन कर्म करीं। माई-बाबूजी जियत होखें त खूब सेवा टहल करीं। स्वर्गवासी होखें त पितरपख भर पानी पियाई, पिंडदान करीं। जे एडवांस बन के मूछ-दाढ़ी-बाल मुड़ावला में संकोच करत हवें। उनकर काम उनके बाढ़ो। उ त कहिहै- सात अंडा भीतर, त खुश देवता पित्तर। अब कइसो दशहरा बीते दीं, जीभ के झुराईल लार फेरू रसदार होई। व्रत के पारन मांसाहार से, इहे न दानववृति ह। 
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रविवार, 28 अगस्त 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 26 अगस्त 2022

तीन मंत्री अवरी जनलें, हमरे जिला के हाल

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती


मनबोध मास्टर पुछलें-बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- सब चकाचक बा। चश्मवे के फेर बा। जे सरकार में बा ओकरा मिसिरी लउकत बा,  जे विपक्ष में बा ओकरा फिटकरी लउकत बा। दरअसल जवन बा तवन ना मिसिरी ह न फिटकरी ह। उ ह नमक के ढेला। जवन गला देले बा पूरा सिस्टम आ समाज के। जिला के जनता सूखा से परेशान बा। खेती-बारी वाला मंत्रीजी सूखाग्रस्त भी ना घोषित करा पावत हवें। नहर की अंतिम छोर तक पानी भले नईखे पहुँचत किसानन की आँखी में लोर जरूर पहुंच जाता। सरकारी खाता-बही में बिजली बीस-बाईस घण्टा मिलत बा। गावँन में त बिजुलियो बिला गईल बा। अइसने कुल माहौल में एके संगे तीन जने मंत्री जी लोग जिला में हाल-चाल देखे आईल रहलें। मंत्रीजी लोग की पहिलही नजर में असप्तलवे बेमार मिल गईल। मंत्री जी के बीपी बढ़ गईल। सफाई वाला ठेकेदार पर जुर्माना लग गईल। स्वास्थ्य विभाग के करिया काम मंत्रीजी लोग का ना लउकल। स्टेचर की अभाव में कांधे पर मरीज के लदले परिजन ना दिखलें? पत्रकार जब सवाल कइलें कि एगो कोटेदार की घरे तेरह अंत्योदय कार्ड पर कौन कार्रवाई भईल? जिला में चल रहल अवैध अल्ट्रासाउंड की दुकान पर कब कार्रवाई होई? अईसन दर्जन भर सवाल पर मंत्री लोगन के चुप्पी। अब शिक्षा विभाग के बारी आईल। इंदुपुर स्कूल के लड़िकन से कुछ पुछलें। अब भला लईकन के पढावल गईल रहित तब न जवाब बतईते। मंत्री जी! सरकारी स्कूलन में अगर पढईये होइत त खांची भर कान्वेंट काहें खुलित। पढ़ाई में ना, फर्जी मास्टरन की तैनाती में जिला अव्वल ह अव्वल। मंत्री जी अटैची की कारखाना पर खुश हो गईलन। तीन सौ नकदी देके एगो अटैची भी ख़रीदलन। सबका पता बा कि नेता लोग का कईसन अटैची पसन्द होला। जिला के हाल पर चाहें केहू मुंह फुलावे चाहे गाल बजावे। सच पूछीं त हाल ठीक नईखे। जगह-जगह दारू के फैक्ट्री आ गांजा की दुकान से युवा पीढ़ी बर्बाद होत बा। कानून व्यवस्था के हाल त और खराब बा। गरीब कमजोर आदमी अपनी ही जमीन पर मकान बनवावत बा त दबंगन की गुंडई से एके घण्टा में देवाल चिकन। कार्रवाई की नाम पर दफा सरपट। मतलब कोरम पूरा। सीना फूला के दरोगा बोलत बा, एक सौ एक्कावन कर दिहलीं।  जाति, धर्म, मजहब की हिसाब के न्याय दिआई? चोर के चोर कहे में मुंह में दही जाम जाई। पुलिस भी तब जागेले, जब पूरा कानून के कचूमर निकल जाला। अब देखीं न, फिरोजाबाद में एगो बनबढ दू साल से चार बहिनन से छींटाकशी करत रहे। कई बेर पुलिस में शिकायत की बाद भी जब पुलिस ना जागल त चारो बहिनिया लतखोरई करे वाला के कुत्ता के मौत मार डलली। गली में लाश मिलल त पुलिस के जांबाज बहादुर लोग जाग गईलें। जब हत्या हो गइल त कानून जाग गईल। चारों बहिनी के गिरफ्तार क के जेल भेज दिहलें। अरे भईया! जहिया अपनी इज्जत के गुहार लगावत रहली तहिया काहे ना जगला?
नेताजी कहत हवें-सरकार किसानन की साथ खड़ा बा। काहें मूरख बनावत हईं सरकार। खेत में खड़ा होखब त चौंहा आ जाई, नाचि के गिर जाईब। गोरकी देहिं झाँवर हो जाई। चुप मार के एसी में बईठल रहीं। दईब त सब सुखाई के सुख छीन ही लेले बाड़न। अब रउरा बहुबोली बोल के जरला पर फोरन जनि डारी।
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रविवार, 14 अगस्त 2022

भोजपुरी व्यंग्य 14 अगस्त 22

गिरगिट रोवत देखि के, राजनीति के रंग

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बोललें-हाल बेहाल बा। गिरगिट रोवत बा। राजनीति के रंग देख के गिरगिट के चेहरा बदरंग हो गइल बा। रंग बदलला के आरोप सदा गिरगिट पर लागत ह। ई केईसन इंसाफ ह। राजनीतिहा लोग रंग बदलला में गिरगिट के कबे पीछे छोड़ देले रहे। मुखिया जी की घर के सामने एगो पेड़ पर गिरगिट के बसेरा ह। ओकरा अपनी हुनर पर गर्व रहल। उ अपनी गर्व पर इतरात रहलीं। आज शर्मिदा बा, गिरगिटापन के कवनो और जिया-जंतु नकल कईले रहत त एतना दुख ना होत, जेतना इंसान के रंग बदलल देख के होत बा।
बात में दम बा। वास्तव में इंसान रंग बदलला में आगे,आ गिरगिट कम बा। अईसन मानल जाला कि सुरक्षा के हिसाब से गिरगिट आपन रंग बदलेलन। शिकारियन से बचे खातिर गिरगिट आपन रंग अईसन रंग में ढाल लेलन जवना रंग की डाल पर रहेलन।दूसर नजरिए से देखल जा त गिरगिट अपनी भावना के अनुसार रंग बदलेलन। आपन मिजाज बतावे खातिर भी गिरगिट आपन रंग बदलेलन। ई गिरगिट के सिद्धांत हवे। गिरगिट के भी कुछ ऊसूल होला। लेकिन वाह रे इंसान,आ इंसान में भी राजनीति के पहलवान। जहें सुतार, तहें लहान। देश में राजसत्ता आ सिंहासन की लिप्सा में सामाजिक ताना-बाना के तोड़ के जाति-धर्म में बांट के राज कईला के परम्परा कवनो नया ना ह। सत्ता के सरदार बनला खातिर कबो पन्द्रह से पचासी के लड़ा के राजा भी फकीर कहाये लागेलन। कबो तिलक, तराजू -तलवार के चार जूता मारके, दलित के वोट झार के अकूत सम्पत्ति आ राज के सिंहासन पवला में कामयाबी मिल जाला। कबो हल्लाबोल आ पोल खोल की नाम पर गुंडागर्दी की सहारे लोग सत्ता पर काबिज हो जालन। राजनीतिक रंग बदलत, सियासत के संग बदलत सबके साथ आ सबके विश्वास में लेके सुशासन चलत रहल। अईसन महत्वाकांक्षी कीड़ा पिछवाड़ा में कटलस कि चाचा भी रंग बदल दिहलन। चाचा के पैंतरा ई कवनो नया ना ह। कबो भाईजी , जवन भूरा बाल साफ करे वाला हवें उनकर लालटेन बुझावेलन त कबो भतीजवा की संगे - भतीजवा तोरो जिंदाबाद, भतीजवा मोरो जिंदाबाद गावेलन। बड़का साहेब विश्व गुरु बनत रहलें। चचवा अईसन चकमा दिहलसि की साहब चित्त। अईसन गुलाटी मरलसि की सोचे समझे के मौका न मिलल। भ्रष्ट-छली अब एक होके, जनादेश के जनाजा निकार के बाजा बजावत हवें-आज मेरे यार की शादी..। लवंडे नाचत हवें। मुरचायल तमंचा में तेल डाल के चमका दिहलें। अब फेरू शुरू हो गइल- चाचा हमार विधायक हवें, नाही डेराईब हो ...। जबसे सिपाही से भईले हवलदार हो, नथुनिये पर गोली मारे...। हमरा  भईया जी के झंडा, तोहरी छाती पर फहरी...। प्रधनवा की रहरी में...। बेरोगारी के मार झेलत नवहन के रोजगार शुरू। दस हजार में टपका दिहला के टेंडर। पांचे हजार में टांग के उठा ले गइला के ठेका। दुई हजार में गाड़ी छोर के पैदल क दिहला के कारनामा। और भी बहुत प्रकार के रोजगार। भईया जी के जय- जयकार। चाचा जी के जिंदाबाद।

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रविवार, 31 जुलाई 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 31 जुलाई 22

खण्ड-खण्ड बारिश, खण्ड-खण्ड समाज

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पूछलन-बाबा का हाल बा? बाबा बतवलन- हाल बेहाल बा। सूखा के कमाल बा। इंद्रदेव भी कहीं मेहरवान, त कहीं तिरछा नजर कईले हवें। बादर भी बहुरूपिया हो गइल बा। लगत दूसरा गाँव की कपारे पर आ बरसत बा दूसरा सिवान में। मेड़ बांध के बारिश होता, लगता देवता लोग भी आरक्षण के नियम लगा देले बा। सब खण्ड -खण्ड। सब टुकड़ा-टुकड़ा। दईब के कवन दोष दिहल जा। समाज बंट गईल बा, जाति-धरम में। परिवार बंट गईल बा, नरम-गरम में। पर्यावरण सुधरला के काम कागजे में। परिवार सुधरला के काम पाखण्ड में। हर साल एतना लाखन-करोड़न जवन पौधा सरकार लगावत बा, उ लउकत काहें नईखे? सच में उ पेड़वा लउकत, त ई बदरा ना रुठत। देवी-देवता लोग भी नाराज बा। महंगाई से परेशान जनता सरकार से नाराज बा। नाराजी की एह दौर में मेहरी, मरद से नाराज बा। मेहरी अब लकड़ी लवना पर खाना ना पकाई। आ मरद की लगे ना साढ़े ग्यारह सौ जल्दी जुटी, ना सिलिंडर भराई। कर फांकाकसी। कहल कर दईब मुँह देले बाड़न त आहारों दीहें। करम ना करब त खाना के प्रबंध कईसे होई। आषाढ़ रोअते बीत गईल, आंसू बरसल लेकिन दईब ना बरसलें। सावन सुखारे चलत बा। पानी त हर हर महादेव क के शंकर जी के खूब नहवावल जाता। लेकिन उहाँ के कृपा भी नईखे बरसत। अब त्योहार के सीजन शुरू होता। महंगी अब और बुझाई। सावन पंचमी से शुरू त्योहारन में पकवान खातिर तेल चाहीं। आ तेल के खेल देखते बानी। उ कबड्डी खलेत बा। आईं त्योहार मनावल जा। खुशी मनावल जा। नाग देवता के पूजा कईल जा। आस्तीन की साँपन के भी पूजल जा। सप्तमी के तुलसी बाबा के जयंती मनावल जा। घर-घर सत्तमी के पुआ पुलाव पकवान के लुत्फ उठावल जा।आजादी के अमृत महोत्सव मनावल जा। अब घर-घर तिरंगा लहरावल जा। अब त रात बेरा भी तिरंगा लहरवला के छूट हो गइल। खूब राष्ट्र प्रेम देखावल जा। पन्द्रह अगस्त मनावल जा। विश्वकर्मा जयंती आ मोदी जी के जन्मदिन भी आवते बा। एगो आदि शिल्पी देवता आ दुसरका राजनीतिक शिल्पी। दुनों के दण्डवत कईल जा। सावन बीती ओकरा बाद भादो के महीना, तीज से लेके कन्हैया जी के जन्म के बधाई गावल जा। अंजोरिया के रात, एकादशी के बरत। एकादशी के चार-चार गो नाम बा। कहीं जलझुलनी एकादशी, कहीं पदमा एकादशी, कहीं दोल ग्यारस आ कहीं परिवर्तनी एकादशी की नाम से मशहूर भादो अजोरी के एकादशी के महिमा महान बा। कहल जाला कि आजुवे की दिन शेष शैय्या पर सुतल विष्णु भगवान करवट लेले रहलें। आजुवे की दिन त्रेता में बावन रूप भगवान बलि राजा के छल से तीन डेग जमीन दान में मंगला की बहाने ओकर पीठ ले नाप के पाताल के राजा बना दिहलें। आजुये की दिन मईया यशोदा कन्हैया के पहिला बेर कपड़ा फिंचले रहली। ई त रहल पौराणिक प्रमाण। अब घनघोर कलयुग में सन 22 के जुलाई के सुखार भी याद कईल जा। भगवान भादो उतरत में खुश होइहें। घनघोर पानी होई। एतना पानी ठेल दीन्हें कि गावँन के नदी-नाला-पोखरा के बात छोड़ीं, बड़े -बड़े शहरियों में पंवरे भर के पानी मिली। जीया-जंतु, गोरु-बछरू क के कहे , मनई की जान पर आफत आई। सावन सुखरख में बीतल, धान सूख गईल। भादो बढियाई त गेहूं बोअला में दिक्कत आ जाई। गील खेत में कईसे गेहूं बोआई। प्रकृति से रउरा खेलत हईं त अब प्रकृति आपन बदला लेई।अबहिन समय बा, सोच बदल लीं। 

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रविवार, 17 जुलाई 2022

भोजपुरी व्यंग्य 17 जुलाई 22 के अंक में प्रकाशित

एन डी देहाती:काना के काना कहब, त काना जइहें रूठ

काना के काना कहब, त काना जइहैं रूठ

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर कहलें- बाबा! का हाल बा? बाबा कहलें- हाल त बे - हाल बा। बड़ी बवाल बा। शब्दन पर सेंसर लगावल जात बा। अइन्चा, कन्हेड़, कंडेबरा, काना.. केहू के कहब त उ रुठबे करी। सरकार भी शब्द गढ़े ले। आन्हर, लंगड़, गूंग के दिव्यांग्य कहल जाता। हमरा ना समझ में आवत बा, ई कवन दिव्य अंग ह? जवन अंग कामे न करे। बहरहाल समय की साथे नया शब्द पैदा होलन। शब्द के आपन अर्थ भी समय की अनुसार बदलत जात बा। देश की बड़की पंचाइत में शब्दन की वाण से एतना लोग घायल होलन, जवना के जवाब नईखे। येही से कई शब्दन के असंसदीय शब्द घोषित कईल गईल। अब अगर विपक्षी के बात सरकार ना सुने त ओके बहरी सरकार मत कहीं। शासक तानाशाही करे त ओके तानाशाह मत कहीं। निकम्मा जनप्रतिनिधि के निकम्मा ना, त का कहब? समाजसेवा के पाखण्ड फइला के आपन दुकानदारी चलावे वाला के पाखंडी कत्तई मत कहीं। अपने ही दल की साथे भितरघात करे वाला भितरघाती के अगर जयचंद कहलीं त सरग में बईठल जयचंद के आत्मा रो उठी। नेताजी केतनो कदाचारी होखें, भ्रष्ट कत्तई मत कहब। लगावे-बझावे वाला के अगर शकुनी कहब त फेरू महाभारत हो जाई। पंजाब की बंटवारा के प्रबल समर्थकन के खालिस्तानी आ पाक की हमदर्दन के पाकिस्तानी कहल गुनाह बा। हाल ई बा कि शब्द के अर्थ एतना गहिर होत जात बा कि बगैर लोग के नाम लिहले ही शब्द ओकरा ललाट पर चस्पा हो जाता। फेंकू, जुमलेबाज, तड़ीपार, चिलमबाज, टोटीचोर, चाराखोर, निन्दाबाज, पप्पू, खोखन, पाड़ा, लैला... जईसन कई शब्द जवन नेता लोग अपनी विरोधी खातिर गढलन, उ ब्रांड बन गईल। ई शब्द बरछी-भाला जईसन चुभेला। सच कहीं त शब्दन के जादूगरी बड़ा कमाल के होला। उहे शब्द केहू के दुआ अईसन त केहू के कटार जईसन लग जाला। केहू के करेजा छू जाला त केहू के छाती बेध जाला। केहू के दिल की आर पार हो जाला। अचूक अस्त्र ह शब्द। याद में बस जाला। चाहे भाला जेईसे लग जाला। मीठा भी होला, कड़वा भी। एहसास आपन-आपन। केहू का मिसिरी इतना मीठ त केहूका मरीचा अईसन तीत। शब्दन की जंजाल में फंसल मनई, कहीं नेता की जाल में , कहीं कथावाचक की पंडाल में जयकार लगावत रहेलन। कबीर बाबा बहुत पहले ही कह गईलन -अइसन बानी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय। आज लोग एतना आपा खो देत बा कि हाड जले लकड़ी जले, जले जलावन हार। कौतिकहारा भी जले, कासों करूं पुकार। जलन की भावना से गढ़ल शब्द जहर से भी खतरनाक बा। प्रेमरस के परित्याग कर के सब अहंकार में डूबल बा। सम्बन्ध टूटता। संस्कार बिगड़त बा। सोच खराब होत बा। गरमी बढ़त बा। चरबी चढ़त बा। आईं सच की साथे शीतलता के रस घोर के छल, दम्भ, पाखण्ड से दूर होके सुंदर सकरात्मक शब्द गढ़ल जा। राष्ट्र के विकास खातिर कुछ कईल जा। बकवास से कुछ हासिल ना होई।

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