रविवार, 31 जुलाई 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 31 जुलाई 22

खण्ड-खण्ड बारिश, खण्ड-खण्ड समाज

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पूछलन-बाबा का हाल बा? बाबा बतवलन- हाल बेहाल बा। सूखा के कमाल बा। इंद्रदेव भी कहीं मेहरवान, त कहीं तिरछा नजर कईले हवें। बादर भी बहुरूपिया हो गइल बा। लगत दूसरा गाँव की कपारे पर आ बरसत बा दूसरा सिवान में। मेड़ बांध के बारिश होता, लगता देवता लोग भी आरक्षण के नियम लगा देले बा। सब खण्ड -खण्ड। सब टुकड़ा-टुकड़ा। दईब के कवन दोष दिहल जा। समाज बंट गईल बा, जाति-धरम में। परिवार बंट गईल बा, नरम-गरम में। पर्यावरण सुधरला के काम कागजे में। परिवार सुधरला के काम पाखण्ड में। हर साल एतना लाखन-करोड़न जवन पौधा सरकार लगावत बा, उ लउकत काहें नईखे? सच में उ पेड़वा लउकत, त ई बदरा ना रुठत। देवी-देवता लोग भी नाराज बा। महंगाई से परेशान जनता सरकार से नाराज बा। नाराजी की एह दौर में मेहरी, मरद से नाराज बा। मेहरी अब लकड़ी लवना पर खाना ना पकाई। आ मरद की लगे ना साढ़े ग्यारह सौ जल्दी जुटी, ना सिलिंडर भराई। कर फांकाकसी। कहल कर दईब मुँह देले बाड़न त आहारों दीहें। करम ना करब त खाना के प्रबंध कईसे होई। आषाढ़ रोअते बीत गईल, आंसू बरसल लेकिन दईब ना बरसलें। सावन सुखारे चलत बा। पानी त हर हर महादेव क के शंकर जी के खूब नहवावल जाता। लेकिन उहाँ के कृपा भी नईखे बरसत। अब त्योहार के सीजन शुरू होता। महंगी अब और बुझाई। सावन पंचमी से शुरू त्योहारन में पकवान खातिर तेल चाहीं। आ तेल के खेल देखते बानी। उ कबड्डी खलेत बा। आईं त्योहार मनावल जा। खुशी मनावल जा। नाग देवता के पूजा कईल जा। आस्तीन की साँपन के भी पूजल जा। सप्तमी के तुलसी बाबा के जयंती मनावल जा। घर-घर सत्तमी के पुआ पुलाव पकवान के लुत्फ उठावल जा।आजादी के अमृत महोत्सव मनावल जा। अब घर-घर तिरंगा लहरावल जा। अब त रात बेरा भी तिरंगा लहरवला के छूट हो गइल। खूब राष्ट्र प्रेम देखावल जा। पन्द्रह अगस्त मनावल जा। विश्वकर्मा जयंती आ मोदी जी के जन्मदिन भी आवते बा। एगो आदि शिल्पी देवता आ दुसरका राजनीतिक शिल्पी। दुनों के दण्डवत कईल जा। सावन बीती ओकरा बाद भादो के महीना, तीज से लेके कन्हैया जी के जन्म के बधाई गावल जा। अंजोरिया के रात, एकादशी के बरत। एकादशी के चार-चार गो नाम बा। कहीं जलझुलनी एकादशी, कहीं पदमा एकादशी, कहीं दोल ग्यारस आ कहीं परिवर्तनी एकादशी की नाम से मशहूर भादो अजोरी के एकादशी के महिमा महान बा। कहल जाला कि आजुवे की दिन शेष शैय्या पर सुतल विष्णु भगवान करवट लेले रहलें। आजुवे की दिन त्रेता में बावन रूप भगवान बलि राजा के छल से तीन डेग जमीन दान में मंगला की बहाने ओकर पीठ ले नाप के पाताल के राजा बना दिहलें। आजुये की दिन मईया यशोदा कन्हैया के पहिला बेर कपड़ा फिंचले रहली। ई त रहल पौराणिक प्रमाण। अब घनघोर कलयुग में सन 22 के जुलाई के सुखार भी याद कईल जा। भगवान भादो उतरत में खुश होइहें। घनघोर पानी होई। एतना पानी ठेल दीन्हें कि गावँन के नदी-नाला-पोखरा के बात छोड़ीं, बड़े -बड़े शहरियों में पंवरे भर के पानी मिली। जीया-जंतु, गोरु-बछरू क के कहे , मनई की जान पर आफत आई। सावन सुखरख में बीतल, धान सूख गईल। भादो बढियाई त गेहूं बोअला में दिक्कत आ जाई। गील खेत में कईसे गेहूं बोआई। प्रकृति से रउरा खेलत हईं त अब प्रकृति आपन बदला लेई।अबहिन समय बा, सोच बदल लीं। 

पढ़ल करीं रफ़्ते रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।

रविवार, 17 जुलाई 2022

भोजपुरी व्यंग्य 17 जुलाई 22 के अंक में प्रकाशित

एन डी देहाती:काना के काना कहब, त काना जइहें रूठ

काना के काना कहब, त काना जइहैं रूठ

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर कहलें- बाबा! का हाल बा? बाबा कहलें- हाल त बे - हाल बा। बड़ी बवाल बा। शब्दन पर सेंसर लगावल जात बा। अइन्चा, कन्हेड़, कंडेबरा, काना.. केहू के कहब त उ रुठबे करी। सरकार भी शब्द गढ़े ले। आन्हर, लंगड़, गूंग के दिव्यांग्य कहल जाता। हमरा ना समझ में आवत बा, ई कवन दिव्य अंग ह? जवन अंग कामे न करे। बहरहाल समय की साथे नया शब्द पैदा होलन। शब्द के आपन अर्थ भी समय की अनुसार बदलत जात बा। देश की बड़की पंचाइत में शब्दन की वाण से एतना लोग घायल होलन, जवना के जवाब नईखे। येही से कई शब्दन के असंसदीय शब्द घोषित कईल गईल। अब अगर विपक्षी के बात सरकार ना सुने त ओके बहरी सरकार मत कहीं। शासक तानाशाही करे त ओके तानाशाह मत कहीं। निकम्मा जनप्रतिनिधि के निकम्मा ना, त का कहब? समाजसेवा के पाखण्ड फइला के आपन दुकानदारी चलावे वाला के पाखंडी कत्तई मत कहीं। अपने ही दल की साथे भितरघात करे वाला भितरघाती के अगर जयचंद कहलीं त सरग में बईठल जयचंद के आत्मा रो उठी। नेताजी केतनो कदाचारी होखें, भ्रष्ट कत्तई मत कहब। लगावे-बझावे वाला के अगर शकुनी कहब त फेरू महाभारत हो जाई। पंजाब की बंटवारा के प्रबल समर्थकन के खालिस्तानी आ पाक की हमदर्दन के पाकिस्तानी कहल गुनाह बा। हाल ई बा कि शब्द के अर्थ एतना गहिर होत जात बा कि बगैर लोग के नाम लिहले ही शब्द ओकरा ललाट पर चस्पा हो जाता। फेंकू, जुमलेबाज, तड़ीपार, चिलमबाज, टोटीचोर, चाराखोर, निन्दाबाज, पप्पू, खोखन, पाड़ा, लैला... जईसन कई शब्द जवन नेता लोग अपनी विरोधी खातिर गढलन, उ ब्रांड बन गईल। ई शब्द बरछी-भाला जईसन चुभेला। सच कहीं त शब्दन के जादूगरी बड़ा कमाल के होला। उहे शब्द केहू के दुआ अईसन त केहू के कटार जईसन लग जाला। केहू के करेजा छू जाला त केहू के छाती बेध जाला। केहू के दिल की आर पार हो जाला। अचूक अस्त्र ह शब्द। याद में बस जाला। चाहे भाला जेईसे लग जाला। मीठा भी होला, कड़वा भी। एहसास आपन-आपन। केहू का मिसिरी इतना मीठ त केहूका मरीचा अईसन तीत। शब्दन की जंजाल में फंसल मनई, कहीं नेता की जाल में , कहीं कथावाचक की पंडाल में जयकार लगावत रहेलन। कबीर बाबा बहुत पहले ही कह गईलन -अइसन बानी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय। आज लोग एतना आपा खो देत बा कि हाड जले लकड़ी जले, जले जलावन हार। कौतिकहारा भी जले, कासों करूं पुकार। जलन की भावना से गढ़ल शब्द जहर से भी खतरनाक बा। प्रेमरस के परित्याग कर के सब अहंकार में डूबल बा। सम्बन्ध टूटता। संस्कार बिगड़त बा। सोच खराब होत बा। गरमी बढ़त बा। चरबी चढ़त बा। आईं सच की साथे शीतलता के रस घोर के छल, दम्भ, पाखण्ड से दूर होके सुंदर सकरात्मक शब्द गढ़ल जा। राष्ट्र के विकास खातिर कुछ कईल जा। बकवास से कुछ हासिल ना होई।

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