रविवार, 17 जुलाई 2022

एन डी देहाती:काना के काना कहब, त काना जइहें रूठ

काना के काना कहब, त काना जइहैं रूठ

हाल-बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर कहलें- बाबा! का हाल बा? बाबा कहलें- हाल त बे - हाल बा। बड़ी बवाल बा। शब्दन पर सेंसर लगावल जात बा। अइन्चा, कन्हेड़, कंडेबरा, काना.. केहू के कहब त उ रुठबे करी। सरकार भी शब्द गढ़े ले। आन्हर, लंगड़, गूंग के दिव्यांग्य कहल जाता। हमरा ना समझ में आवत बा, ई कवन दिव्य अंग ह? जवन अंग कामे न करे। बहरहाल समय की साथे नया शब्द पैदा होलन। शब्द के आपन अर्थ भी समय की अनुसार बदलत जात बा। देश की बड़की पंचाइत में शब्दन की वाण से एतना लोग घायल होलन, जवना के जवाब नईखे। येही से कई शब्दन के असंसदीय शब्द घोषित कईल गईल। अब अगर विपक्षी के बात सरकार ना सुने त ओके बहरी सरकार मत कहीं। शासक तानाशाही करे त ओके तानाशाह मत कहीं। निकम्मा जनप्रतिनिधि के निकम्मा ना, त का कहब? समाजसेवा के पाखण्ड फइला के आपन दुकानदारी चलावे वाला के पाखंडी कत्तई मत कहीं। अपने ही दल की साथे भितरघात करे वाला भितरघाती के अगर जयचंद कहलीं त सरग में बईठल जयचंद के आत्मा रो उठी। नेताजी केतनो कदाचारी होखें, भ्रष्ट कत्तई मत कहब। लगावे-बझावे वाला के अगर शकुनी कहब त फेरू महाभारत हो जाई। पंजाब की बंटवारा के प्रबल समर्थकन के खालिस्तानी आ पाक की हमदर्दन के पाकिस्तानी कहल गुनाह बा। हाल ई बा कि शब्द के अर्थ एतना गहिर होत जात बा कि बगैर लोग के नाम लिहले ही शब्द ओकरा ललाट पर चस्पा हो जाता। फेंकू, जुमलेबाज, तड़ीपार, चिलमबाज, टोटीचोर, चाराखोर, निन्दाबाज, पप्पू, खोखन, पाड़ा, लैला... जईसन कई शब्द जवन नेता लोग अपनी विरोधी खातिर गढलन, उ ब्रांड बन गईल। ई शब्द बरछी-भाला जईसन चुभेला। सच कहीं त शब्दन के जादूगरी बड़ा कमाल के होला। उहे शब्द केहू के दुआ अईसन त केहू के कटार जईसन लग जाला। केहू के करेजा छू जाला त केहू के छाती बेध जाला। केहू के दिल की आर पार हो जाला। अचूक अस्त्र ह शब्द। याद में बस जाला। चाहे भाला जेईसे लग जाला। मीठा भी होला, कड़वा भी। एहसास आपन-आपन। केहू का मिसिरी इतना मीठ त केहूका मरीचा अईसन तीत। शब्दन की जंजाल में फंसल मनई, कहीं नेता की जाल में , कहीं कथावाचक की पंडाल में जयकार लगावत रहेलन। कबीर बाबा बहुत पहले ही कह गईलन -अइसन बानी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय। आज लोग एतना आपा खो देत बा कि हाड जले लकड़ी जले, जले जलावन हार। कौतिकहारा भी जले, कासों करूं पुकार। जलन की भावना से गढ़ल शब्द जहर से भी खतरनाक बा। प्रेमरस के परित्याग कर के सब अहंकार में डूबल बा। सम्बन्ध टूटता। संस्कार बिगड़त बा। सोच खराब होत बा। गरमी बढ़त बा। चरबी चढ़त बा। आईं सच की साथे शीतलता के रस घोर के छल, दम्भ, पाखण्ड से दूर होके सुंदर सकरात्मक शब्द गढ़ल जा। राष्ट्र के विकास खातिर कुछ कईल जा। बकवास से कुछ हासिल ना होई।

पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

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