कुंभ में अमृत झरत बा, त लोग काहें मरत बा
पांडे एन डी देहाती/भोजपुरी व्यंग्य
मनबोध मास्टर पूछले, बाबा! का हाल बा? बाबा बोलले - हाल त बेहाल बा। झूठ के बाजत गाल बा। सत्ता दल आ विपक्ष के आपन आपन झाल बा ,आपन आपन करताल बा। कुंभ में अमृत झरत बा। फिर भी लोग मरत बा। कुंभ त कुंभ ह,समुद्र मंथन से निकले वाला कुंभ। क्षीरसागर के देव-दानव की साझा मंथन से निकरल कुंभ। धंवंतरीरूपधारी भगवान विष्णु की हाथ में शोभायमान कुंभ। बहुत महिमा ह कुंभ के। कुंभ की येही महिमा की बीच प्रयाग में 2025 के कुंभ बहुत कुछ छोड़ जाई, सोचे, विचारे आ बतकही खातिर। कुंभ में साधु, संन्यासी, नागा, संत, महंत, नेता, सरकार सब बा। भीड़ भी आ भगदड़ भी। धर्म भी आडंबर भी। अध्यात्म भी, आस्था भी। मन चंगा त कठवति में गंगा। तरह तरह के बाबा लोग बा। कुछ सरकारी मलाई चाप के सरकार के गुणगान वाला बाबा, त कुछ सरकार के गरिया के टीआरपी बढ़ावे वाला बाबा। मीडिया भी दु प्रकार के बा। एगो सांच दिखावेवाला आ दूसर झूठ फ़ैलावे वाला। कुंभ की अमृत खातिर राहु आपन शीश कटा दिहले रहे, लोग अमृत में नहइला खातिर भीड़ आ भगदड़ में कचरा के मर गईल। अफसर लोग पाप छिपावला में लाग गईलन। लेकिन सोशल मीडिया के जमाना में सांच बहिरा के बाहर हो गइल। एगो बाबा बोलत जे संगम पर मर गइल ओके मोक्ष मिल गइल। दुसर बाबा बोलत हवें, तूहूं आवा तोहके कचार के , मार के मोक्ष दे दिहल जा। उम्मीद से अधिक आस्था में उमड़ल भीड़, कंट्रोल से बाहर रहल। सरकारी व्यवस्था वीआईवी की खातिरदारी में लागल रहे। आम आदमी साँसत में हाफ़त रहल। बाबा लोगन के चमत्कार असमय काल की गाल में समाइल श्रद्धालु के जान ना बचा पवलें। केहू के तंत्र, मंत्र, यंत्र काम कर देले रहत त उनकर जयकार जोर से करतीं। देश में अमृतकाल चलत बा। लोग के ध्यान हमेशा भटकावल गइल। करोना में लोग मरत रहे, लोग अकाल मौत का शिकार बनत रहे त हम्मन ताली आ थाली बजावत रहलीं। आज गाल बजावत हइन। जिम्मेदारी तय ना क पावत हइं । दोष के के दिहल जा।
बदतर बंदोबस्त के भी कुछ लोग राजनीतिक चश्मा से बेहतर देखत रहे। ज्यादातर पालतू आ फालतू दुनो मीडिया कुंभ में लोग के दुर्दशा देखवला की जगह अबकी कुंभ में आइल चार रत्न (मोनालिसा,आई आई टी एन बाबा, हर्षा छावरिया, ममता कुलकर्णी) पर ही आपन फोकस कईले। कुंभ में संगम की रेती पर सनातन के वैभव बिखेरत आस्था के जनसमुद्र के दर्शन से पुण्य बटोरत, मोक्ष पवले लोग की प्रति आपन श्रद्धा प्रस्तुत करत बस इहे कहब -
कुंभ में अमृत झरत रहे, नहइला खातिर लोग मरत रहे।
जे मरल मोक्ष पा गइल, परिजन की आंख से आंसू ढरत रहे।।
एतवत बड़वर भीड़ के संभालल, आसान ना रहल। व्यवस्था में लागल लोग इंसान रहल, भगवान ना रहल।।
ॐ शांति