मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

कुंभ में झरत अमृत : भोजपुरी व्यंग्य

कुंभ में अमृत झरत बा, त लोग काहें मरत बा 

पांडे एन डी देहाती/भोजपुरी व्यंग्य

मनबोध मास्टर पूछले, बाबा! का हाल बा? बाबा बोलले - हाल त बेहाल बा। झूठ के बाजत गाल बा। सत्ता दल आ विपक्ष के आपन आपन झाल बा ,आपन आपन करताल बा। कुंभ में अमृत झरत बा। फिर भी लोग मरत बा। कुंभ त कुंभ ह,समुद्र मंथन से निकले वाला कुंभ। क्षीरसागर के देव-दानव की साझा मंथन से निकरल कुंभ। धंवंतरीरूपधारी भगवान विष्णु की हाथ में शोभायमान कुंभ। बहुत महिमा ह कुंभ के। कुंभ की येही महिमा की बीच प्रयाग में  2025 के कुंभ बहुत कुछ छोड़ जाई, सोचे, विचारे आ बतकही खातिर। कुंभ में साधु, संन्यासी, नागा, संत, महंत, नेता, सरकार सब बा। भीड़ भी आ भगदड़ भी। धर्म भी आडंबर भी। अध्यात्म भी, आस्था भी। मन चंगा त कठवति में गंगा। तरह तरह के बाबा लोग बा। कुछ सरकारी मलाई  चाप के सरकार के गुणगान वाला बाबा, त कुछ सरकार के गरिया के टीआरपी बढ़ावे वाला बाबा। मीडिया भी दु प्रकार के बा। एगो सांच दिखावेवाला आ दूसर झूठ फ़ैलावे वाला। कुंभ की अमृत खातिर राहु आपन शीश कटा दिहले रहे, लोग अमृत में नहइला खातिर भीड़ आ भगदड़ में कचरा के मर गईल। अफसर लोग पाप छिपावला में लाग गईलन। लेकिन सोशल मीडिया के जमाना में सांच बहिरा के बाहर हो गइल। एगो बाबा बोलत जे संगम पर मर गइल ओके मोक्ष मिल गइल। दुसर बाबा बोलत  हवें, तूहूं आवा तोहके कचार के , मार के मोक्ष दे दिहल जा।  उम्मीद से अधिक आस्था में उमड़ल भीड़, कंट्रोल से बाहर रहल। सरकारी व्यवस्था वीआईवी की खातिरदारी में लागल रहे। आम आदमी साँसत में हाफ़त रहल। बाबा लोगन के चमत्कार असमय काल की गाल में समाइल श्रद्धालु के जान ना बचा पवलें। केहू के तंत्र, मंत्र, यंत्र काम कर देले रहत त उनकर जयकार जोर से करतीं। देश में अमृतकाल चलत बा। लोग के ध्यान हमेशा भटकावल गइल। करोना में लोग मरत रहे, लोग अकाल मौत का शिकार बनत रहे त हम्मन ताली आ थाली बजावत रहलीं। आज गाल बजावत हइन। जिम्मेदारी तय ना क पावत हइं । दोष के के दिहल जा।
बदतर बंदोबस्त के भी कुछ लोग राजनीतिक चश्मा से बेहतर देखत रहे। ज्यादातर पालतू आ फालतू दुनो मीडिया कुंभ में लोग के दुर्दशा देखवला की जगह अबकी कुंभ में आइल चार रत्न (मोनालिसा,आई आई टी एन बाबा, हर्षा छावरिया, ममता कुलकर्णी) पर ही आपन फोकस कईले। कुंभ में संगम की रेती पर सनातन के वैभव बिखेरत आस्था के जनसमुद्र के दर्शन से पुण्य बटोरत, मोक्ष पवले लोग की प्रति आपन श्रद्धा प्रस्तुत करत बस इहे कहब - 

कुंभ में अमृत झरत रहे, नहइला खातिर लोग मरत रहे।
जे मरल मोक्ष पा गइल, परिजन की आंख से आंसू ढरत रहे।। 
एतवत बड़वर भीड़ के संभालल, आसान ना रहल। व्यवस्था में लागल लोग इंसान रहल, भगवान ना रहल।।

 ॐ शांति

रविवार, 29 जनवरी 2023

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 29 जनवरी 22

गांधी टोपी कपारे धइला से 
महात्मा थोड़े हो जइहें

हाल बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें-हाल त बेहाल बा। असो 26 जनवरी आ सरस्वती पूजन एके दिन पड़ल। भारत के शान तिरंगा लहरल। भारत माता के जिंदाबाद भईल। कोर्ट कचहरी से लेके थाना पुलिस ले सब ओर जनगणमन गूँजल। गांव-गांव सरस्वती माई धरईली, पूजईली। सरस्वती माई के कुपुत्तर लोग डीजे पर अईसन -अईसन गाना बजावल लोग की हम लिख भी ना सकेलीं। देश आजादी के 74वॉ वर्षगांठ मनावल। देश के हाल का बा? यह पर विचार कईला के जरूरत बा। गैर बराबरी मिटावला में 75 वर्ष बीत गईल। तबो देश के चालीस फीसद धन-दौलत एक फीसद लोग की लगे ही बा। साठ फीसद धन में 99 फीसद के जीवन दिनचर्या चलत बा। कौन बराबरी भईल? खुद सोच लीं। गरीबी एतना मिटल की अबो सरकार के मुफ्त राशन पर लोग के पेट पलत बा। कमीशनखोर नेता, जवन ठेकेदारन से 40 फीसद कमीशन लेला उहो कपार पर गांधी टोपी पहिन के झण्डा  लहरावत बा। सत्य अहिंसा पर लम्बा चौड़ा हाँकत बा।ओहर बड़का अधिकारी अपराध पर अंकुश लगावला के संकल्प लेता। एहर दिन दहाड़े लूट होता। गाँव-गाँव चोरी होता। रिपोर्ट ना लिखे के कसम खाके कुर्सी पर बईठल थानेदार आ ओकरा दरबार में जयकार करत तेलबाज पत्रकार दुनों घटना छिपवला में लागल बाड़न। एगो बाप अपनी बेटी से छेड़खानी पर न्याय के गुहार करत बा, आ ईमानदार थानेदार आरोपी से उगाही करके सरपट दफा 151 में मामला रफा-दफा करत बा। सरकार चहुतरफ़ा विकास के गीत गावति बा। विकास की नाम पर सड़क के तारकोल उधिया गईल बा। गिट्टी छितिरायल बा। लोग ढहत बा। अस्पताल में बड़े-बड़े बिल्डिंग खड़ा बा। जिला में ले मेडिकल कालेज बन गईल बा। इलाज ना होई खाली रेफर खातिर डाक्टर बईठल हवें।नाली-नाबदान के दुर्गंध आ आसपास कूड़ा के ढेर से उठत बदबू में आम आदमी हाफ़त बा। छिड़काव की नाम पर पैसा भजावल जाता। प्रदेश से लेके देश तक बारी-बारी लूटे के तैयारी में लागल रंग-बिरंगा, बहुरंगा सियार हुंवा-हुवाँ करत हवें। सोने के चिरई कहाये वाला अपनी देश के जेतना गोरका अंगरेज ना लूटलें ओसे ज्यादा आजादी की बाद खद्दरधारी लूट मरलें। देश में बहुत जांच चलत बा। बहुत घोटाला भी होता। ई देश अइसही चली। दु प्रकार के कानून, अपना खातिर दूसर, दूसरा खातिर दूसर। सेवा के मौका मांग-मांग मेवा खात मोटात जनप्रतिनिधि नाम के जीव अपने पेंशन के त्याग ना करी लेकिन कवनो कर्मचारी के पेंशन छीने के कानून जरूर बना दी। देश से भ्रष्टाचार मेटावल जाता, बहुत हद तक मेटल भी बा। भ्रष्टाचार त लोग की आचार, व्यवहार, नेति, नियम, कानून में रचि-बसि गइल बा। साँच कहीं त कंकरी के चोर कटारी से मरात बा।बाहुबली के तुरन्ते जमानत आ गरीब के जेल में सड़त बहुत देखल गईल। देश खोंखड़ होता, घाव गहिर होता। अंग्रेजन की बनावल कानून पर अबो थाना, पुलिस, कोर्ट, कचहरी चलत बा। 

पढ़ल करीं रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

रविवार, 22 जनवरी 2023

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 22 जनवरी 23

बांस की पुलईं चढ़ल लंगोट

हाल बेहाल बा/ एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बेहाल बा। बड़ा बवाल बा। जेतना विश्वास बा, ओहसे दूना उपहास आ तिगुना अंध विश्वास बा। तरह-तरह के नहान बा। शनिचर के मौनी स्नान रहल। जाड़ा में पखे-पखे स्नान की ध्यान में लगल रहली, जाड़ा में नित्य नहानम-देहि  खियानम के प्रबल समर्थक हईं। दु दिन पहिलहीं दंगली लोग घमासान मचा दिहल। जे कबो अखाड़ा के मुंह ना देखले होई, अखाड़ा के माटी गर्दन पर ना रगरले होई उहो ज्ञान बाँटत बा। टीवी चैनलन पर चोकरधों मचल बा। डिबेट में अईसन- अईसन ज्ञानी लोग ज्ञान बांटत बा जे कुश्ती कला के एबीसीडी नईखे जानत, उहो मल्ल युद्ध के ललकार करत बा। हम गाँव के गवाँर मनई बहुत कुछ त ना जानीलें, लेकिन पोखरा की किनारे अखाड़ा पर पहलवानन की मुंह तरह-तरह के दांव सुनले हईं। लंगड़ी से लेके धोबियापाट तक। बहरा, चपरास, निकास, बाजा, ढांक, एकहरा पट्ट, दोहरा पट्ट, ईरानी, सखी, मुल्तानी, मुरेठी, गदहलत्त, चरखा, बाहुपुरी सहित तमाम प्रकार के दांव जवन अखड़ईत ना जानत होइहें उ पॉलिटिशन जानत हवें। कुश्ती कला की साख पर, इज्जत-पानी ताख पर रख के कीचड़ उछलत बा। हमाम में सब नंगा होके नंगई करे पर लागल बा। साँच कहीं त यह राजनीतिक दंगल से पहलवानन के लंगोट जवन मजबूत करेक्टर के पहिचान रहल ओके अपनी बिजनेश-व्यापार खातिर कुछ लोग बांस की पुलईं चढ़ा दिहल। साँच के आंच केइसन। समय लागी सब साफ हो जाई, दूध के दूध आ पानी के पानी। बस एगो सवाल मौनी आमवस्या के मौन तोड़ता। जब शोषण होत रहे तबे काहें ना मुंह खोलल गईल? आपन नेता जी भी कहत रहलें-मुंह खोलब त सुनामी आ जाई। सांझ ले उहो मुंह ना खोललें। अपन चोंगा-चोंगी लेके गईल मीडिया वाला लोग मुंह लटकवलें आ गईलें। मसाला ना मिलल त बकइति कईसे करीहें। छोड़ीं इ सब बात। इ सब राजनीतिक कुश्ती ह। दलवे के लोग दलवे की लोग के ढहावला में लागल बा। शीतऋतु समापन को ओर बा। बसन्त के आगाज होखे जाता। मौन रहीं, मौनी अमावस्या के 'सी-सी' करत नहान के भी मनाही ह। जाड़ा में देहि पर एक लोटा पानी पड़ते मुंह से हनुमान चालीसा स्वतः निकर जाला, पर ओहू के मनाही ह। रोज़ नहइला से सुनल जाला की स्फूर्ति आवेला, काम में मन लागेला, दिमाग तेज होला। मौनी अमावस्या पर मौन स्नान से पुण्य मिलेला। पुण्य कमाईं। पाप के बात बतिआवल छोड़ीं।

पढ़ल करीं रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।।

रविवार, 15 जनवरी 2023

एन डी देहाती: भोजपुरी व्यंग्य 15 जनवरी 23

खिचड़ी के चार यार...

हाल बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल बेहाल बा। पहली तारीख से लुकाईल सूर्य भगवान लुकाईले-लुकाईले दक्षिणायन से उतरारायन हो गईलें। मकर संक्रांति आ गईल। आजु की ही दिन बड़ी तपस्या कईला की बाद भगीरथी महराज गंगा जी के धरती पर ले आईल रहलें। अब ओही गंगा मईया में  बनारस से बंगाल तक क्रूज विलास ...। जवना देश में गरीबी की नाम पर मुफ्त राशन बॉटल जाता ओही देश में 51 दिन गंगा मईया की गोद में फाईफ स्टार के मजा 50 लाख में लेई सभे। घर में भूजल भांग ना, कोठा पर गज झुम्मर। विविधता भरल देश में खिचड़ी के बहार बा। रोज नया-नया खिचड़ी पकता। साधारण सी खिचड़ी पकत-पकत चैनल की कुकरझाऊ में भी मशहूर बा। एगो जमाना रहे, जब कवनो काम में बिलम्ब भईला पर लोग कहे- का बीरबल के खिचड़ी पकावत हवा। राजतंत्र से लोकतंत्र की यात्रा के बीच ई खिचड़ी, आपन खिचड़ी अलग पके लागल। वामपंथी दिमाग में अलग, दक्षिणपंथी में अलग। दिन भर केतनो खिचड़ी पका ल, अगर रात के सकूं के नींद नईखे त सब खिचड़ी बेकार बा। पहिले कहल जात रहे- खिचड़ी के चार यार, घी-पापड़, दही-अंचार। ई त खाये वाला खिचड़ी के यार रहलें। दिमाग में पकत खिचड़ी के भी चार यार बाड़न। नफरत, झूठ, प्रलोभन आ भ्रष्टाचार। साँच कहीं त सत्ता से लेके विपक्ष तक खिचड़ी के एहि चार यारन की सहारे लोकतंत्र की गंगा में डुबकी लगा तर जात हवें। चैनलन पर तरह-तरह के खिचड़ी पकत बा। सुप्रीम कोर्ट ले इहे बात कहत बा। राजनीति में भी खिचड़ी बहुत प्रिय बा। देश में खिचड़ी सरकार तक बन जाता। विपक्ष भी खिचड़ी बनत बा। आम जनता बेरोजगारी, महंगाई, दाल-चावल, आटा-सब्जी, नून-तेल, डीजल-पेट्रोल, रसोई गैस के सोचत बा, आ नेता लोग स्वार्थ की खिचड़ी में लागल बा। हंडा-बटुला, तसला से शुरू कुकरयुग तक पकत खिचड़ी अब दिमाग में भी पकत बा। अदा पर फिदा हो जाईं जब चांदी की चम्मच वाला लक्खू फार्च्यूनर से उतर के सहभोज में भिक्खू की बगल में बईठ के खिचड़ी खात हवें। समरसता के रस से सराबोर समर्थक जयकार लगावत हवन। खिचड़ी महज एगो व्यंजन ना, हम्मन के पर्व भी ह। आईं सभे एके मिलके मनावल जा। लाई-दही के नाश्ता आ खिचड़ी के भोज, अईसन त्योहार भला कहाँ आई रोज। 

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अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद