गुरुवार, 10 जून 2021

कोरोना पर मेरी कविता

कोरोना काल

इंसान एहर मरता, ईमान ओहर बिकता। 
यमराज ऐने हंसता,भगवान ओने रोअता। 
गाँव गॉव वीरान भईल, शहर सुनसान बा।
खौफनाक मंजर चहुँ, अजब दास्तान बा। ।
मृतकन की साथे उठत, इंसानियत के अर्थी।
साहब सुब्बा सरकार काटे, रोटी में भी जर्ती।।
देखीं राजनीति बईठ, बिहसे असोरा में।
जवान लईका के लाश, बूढ़ बाप की बा कोरा में।।
नेता जी का निक लागे, चुनाव मतगणना।
मन करे जब ही लगा दें, लाकडाउन ताड़ना।।
मिले ना दवाईं, छटपटात लोग मरता।
लकड़ी अभाव में, आधा लाश जरता।।
सांस वाली हवा दवा, मिले न अस्पताल में।
पेरात हवें मनई, भूसा भरे खाल में।।
अईसन महामारी बा, की सब केहू लाचार बा।
मुंह पे जाबा डाल, ना त दंड बेसुमार बा।।
पिछला साल खूब उहाँ का , दीया जरववलीं।
ताली बजववली, आ थाली पिटववलीं।।
असो दीया गुल होता, पीटे लोग छाती।
एक एक घर में बाप बेटा मरत हवें नाती।।
कहलें देहाती बाबा, लगल केकर श्राप बा।
रामनाम सत्य के, चारो ओर जाप बा।।

-पांडे एन डी देहाती
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