मंगलवार, 26 जनवरी 2021

नोहर के धनिया, भुईंया रहिहै कनिया?

नोहरे कै धनिया,भुइयां रहिहें कनिया?

सोचहरण जब कलकत्ता से कमा के घरे लौटलें त रेलगाड़ी में बुक कराके एगो साईकिल भी ले चललें। समूचा जवानी चटकल में काट के, घर के खर्चा। हित-नात के नेवता।बाप-माई-मेहर के दवा दारू। लईकन के नरखा, नून-रोटी में हर महीना के पगार ओरा जात रहे। कलकत्ता से विदाई की बेरा एक जोड़ी धोती, एक जोड़ा कलकतिहा गमछा, एगो छाता आ बाटा वाला जूता खरीद के बक्सा में भर लिहलें। इहे जिनगी के कमाई रहल। तीन दिन में रेलगाड़ी उनकी गॉव की नियरा वाला टीशन घसीपुरवा पहुंचा दिहलसि। गॉट बाबू के बिल्टी थम्हा के पार्सल वाला बोगी से साईकिल उतार के माथ पर बक्सा आ कान्हे में साईकिल लटकवले घसीपुरवा से पैदल जमुनियाडीह चल दिहले। दरअसल में साईकिल बड़ा पसेवा से किनाइल रहे। गतर-गतर कपड़ा से बन्हाइल रहे। डर रहे कहीं रगरा के पेंट न छोड़ दे। धूर-माटी ना लाग जा। सोचहरन के गॉव में पहुंचते हल्ला मच गईल। गॉव में पहिला साईकिल जे आईल रहे, जवना के लोग 'पाँव -गाड़ी' कहे। देखवईन के भीड़ दुआर पर लाग गईल। सोचहरन के मेहरारू लोटा के पानी लेके काली माई के छाक देबे चल दिहलीं। बाबूजी डीह बाबा के गोहरावे लगलें। बुढ़िया माई बरम बाबा के दूधे नहवावे लगली। बक्शा में से कलकतिहा मिठाई निकार के दुआरे पर बांटत अपना हेली-मेली से बतियावत, साईकिल के गुन गावत साँझ हो गईल। दूसरा दिने गतर-गतर बान्हल साइकिल खोलाईल। विश्वकर्मा महराज के पूजा पाठ भईल। तिजहरिया की बेरा सोचहरन साईकिल लेके बाजारे चल दिहलें। गॉव से लेके रास्ता में मिले वाला लोगन से साईकिल के बखान करत जब बाजारे से लौटलें त अचके में आन्ही-पानी आ गईल। पतरा में पड़ल मनई, आस पास कवनो गॉव न ठेकान। सोचहरन का अपनी साईकिल के चिंता। धोती खोलके हाली-हाली साईकिल के लपेट के जंघिया पहिरले कान्हे पर साईकिल टँगले घरे पहुंचले। सोचहरन के दशा देख सब हंसे लगले। मेहरारू कहलिन -  नोहरे कै धनिया, भुइयां रहिहें कनिया? राउर सईकिलिया हमरा से कम नोहर नईखे।
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