रविवार, 25 सितंबर 2022

भोजपुरी व्यंग्य: 25 सितम्बर 2022

पुरखन के पख बीतल, अब आईल नवतातन

हाल-बेहाल बा / एन डी देहाती

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बोललें-हाल बेहाल बा। आज  पितरपख उतर गईल, नवरात्र चढ़ गईल। एक पखवारा पूर्वज लोग ले लिहल, अब नौ दिन दुर्गा माई लीहें। जेकर बाबूजी नईखन उ दुखित रहे। कुछ लोग स्वर्गवासी बाबूजी खातिर दुखित रहलें त कुछ लोग का ई तकलीफ रहल की वीर भोजन से लेके लहसुन-प्याज भी दुलम हो जाई। पन्द्रह दिन पितरपख नीरस बीतल तवले दुर्गा माई के नवरातन आ गईल, एहू में बरावे के बा। अरे भाई! काहें दुखित हवा? ई हमार सनातन संस्कृति ह। यहके जीवित रखला के जिम्मेदारी भी हम्मन के ही। गांव-देहात में एगो किस्सा कहल जाला- जियते बेटवा हाल न पूछे, मरते पीपर पानी। मौजूद माई-बाप के सेवा ईश्वर की भक्ति से कम ना ह। स्वर्गवासी भईल पुरखन के बस दु बेर ही ठीक से याद करे के मौका आवेला। एगो पितरपख में आ दूसरे जब घर में शादी विवाह होला त पितर नेवतल जालें। पितरपख आज से शुरू बा। पितरन के प्रसन्न राखब त परमात्मा के कृपा बरसत रही। सफलता के दुआर खुलत रही। पूर्वजन के परंपरा, गोत्र, संस्कार, धन-संपदा से जीवन आगे बढ़त रही। भादो की पूर्णवासी से कुआर की अमावस्या तक पितर लोग के पक्ष। यह कालखंड में अपनी वंशजन के आशीष देबे खातिर पितर दिव्य लोक से पृथ्वी पर आवेलन। जेकर माई जीवित हईं उ अपनी पुत्रन की कल्याण खातिर जिउतिया व्रत रखली, उहो स्वर्गवासी मातृ शक्तिन के आराधना कईली। पितृपक्ष के समय में सभी पितर पृथ्वी लोक में वास करेलें। उम्मीद करेलें कि उनकर वंशज उनकी खातिर श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान करिहन। ए सब कार्य से पूर्वज तृप्त होके आशीर्वाद देकर अपनी लोक वापस चल जालें। जे अपनी पितरन के तृप्त ना कर पावेला उ अधम श्राप के भागी बनेला। जब जीवन में ओके कवनो सफलता ना मिलेला त लोग कहेला की पितरदोष लागत बा। जेकर बाबूजी नईखन उनके पिंडदान, पानी तर्पण, कौआ, गाय, कुक्कुर के भोजन करावें दीं। ब्राह्मण भोज करे दीं। जेकर माई-बाप जीवित हवें, उ बहुत भाग्यशाली बा। भईया हो! माई-बाप के जियते अगर रोआं डहकईबा, त मरला पर पिंडदान का, सजो सम्पति दान दे दईब तबो पितर लोग खुश ना होई। जे खुशहाल लउकत बा, सच कहीं त ओकर पूर्वज खुश बाड़न। पुरखन की प्रताप से ही उ फलत-फुलत-बढ़त बा। जेकरा श्रद्धा नईखे ओकरा श्राद्ध भी पुरखा लोग ना ग्रहण करेलन। मरला पर के देखे आवत बा?कुछ लोग एके लोकधन्धन कही। कहें वालन के कहें दीं। रउरा आपन कर्म करीं। माई-बाबूजी जियत होखें त खूब सेवा टहल करीं। स्वर्गवासी होखें त पितरपख भर पानी पियाई, पिंडदान करीं। जे एडवांस बन के मूछ-दाढ़ी-बाल मुड़ावला में संकोच करत हवें। उनकर काम उनके बाढ़ो। उ त कहिहै- सात अंडा भीतर, त खुश देवता पित्तर। अब कइसो दशहरा बीते दीं, जीभ के झुराईल लार फेरू रसदार होई। व्रत के पारन मांसाहार से, इहे न दानववृति ह। 
पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब अगिला हफ्ते।




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