रविवार, 12 अक्टूबर 2025

12 अक्टूबर 2025 भोजपुरी व्यंग्य


इ कवन खेला बा , समझीं बड़ा झमेला बा 

मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त बेहाल बा। सब माया के कमाल बा। लखनऊ में रैली भईल। रैली की रेला में राजनीति के खेला भईल। भीम बाबा की जयकार की साथे साथ बाबा के भी जयकार भइल। जयकारा बेहतर व्यवस्था खातिर रहल। रउरा जानते हईं यूपी में जीरो टालरेंस की नीति पर काम चलत बा। जेकरा पर भ्रष्टाचार के ममिला होखे ओकरा दुआरी कब बुलडोजर घमक जाई, इहो बात बा। तानिसा जयकारा क दिहले जान बचल रहे त का लागत बा। साँच बात इ बा की जे माया के बा उ माया के ही रही। केतनो अनुदान, राशन, भासन, अगराशन दिआइल लेकिन भीम बाबा के माने वाला ना लुभइले, एक ही पानी पर रहि गईलन। 
राजनीति के खेला रजनीतिहा लोग जानी, एईजा
 आम आदमी की झुराइल जिनगी की रेगिस्तान में कब हरियर लउकी। उषाकाल से अपरान्ह काल तक पंडिताइन के एक ही रट-  ए जी! सुनत हई। संवकेरे घरे आ जाइब, आज करवा चौथ ह। चलनी में चांद निहारे के बा। राउर आरती उतारेके बा। बाबा सोचे लगलें- अगर इ व्रत ना रहित, त पंडिताइन सीधे मुंह बात भी ना करती। घरकच की करकच में रोज-रोज घटल नून-तेल-मरिचाई के चिंता से से परेशान मनई ऊपर से मिलावट के बाजार। जब जब कवनो त्योहार आवेला त खाद्य विभाग वाला जागेलन। गरीब आदमी का भला ये महंगी में पनीर कहां भेटाई, लेकिन देवरिया में तीन कुंतल पनीर खंता खोनि के माटी में मेरा दिहल गईल। पता चलल चालानी रहल। चालानी माने मिलावटी, अब बुझाईल। सरकार कहत बा, स्वदेशी अपनाई। त गाय भैस पालीं, खांटी दूध के पनीर खाईं।
 फेरु मिलब अगिला हफ्ते, पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते...
✍️ एन डी देहाती 
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