नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती
जवन जिनगी रहल, उ खामोश हो गइल...
मनबोध मास्टर बेहद गमगीन हवें। हुतात्मा के श्रद्धांजलि देत,आज आपन बतकही शुरू कईलें-आपन गोरखपुर केतना निमन हो गइल रहे। सरकार मच्छर-माफिया से छुटकारा दिला देले रहे। ठोकिया गिरोह के एगो सिपाही लोग के ठोकला की बल पर इंस्पेक्टर हो गइल। जेकरा हाथे जोर, उहे न करी बटोर। लोग के मारत-मुआवत, पईसा बटोरत,ऊपर ले बाँटत राजकाज चलावत रहे। लोग के सुरक्षा के जिम्मेदारी रहल। तनख्वाह की पईसा के हाथ लगवले के कसम खइले रहे। ऊपरवार खातिर बड़ी मेहनत करे। अपनी हल्का की होटल की आरी पासी आपन मुखबिर लगवले रहे। मालदार आदमी होटल में ठहरे त रात की बेरा छापा डाल दे। डेरवा- धमका के, छीन - झपट के खात-खिआवत काम चलत रहे। येही बीचे एगो बड़वर नगर के मालदार व्यापारी अपनी मेहरी- बच्चा की साथे गोरखपुर के विकास देखे अइलें। ओकर दुगो दोस्त भी दूसरा प्रदेश से अइलें। सपना रहल, बाबा गोरखनाथ के दर्शन, रामगढ़ के विकास देखला के। मुखबिर की कहले पर इंस्पेक्टर अपन पंच प्यारन की साथे होटल में छापा मार दिहलें। इंस्पेक्टर बुझत रहलें, सोझ अंगूरी घीव ना निकली। त तनी सा टेढ़ कईलें। जानते रहलें, गागल- नीबू-बानिया, गर दबले कुछ दे। व्यापारी ईमानदार रहलें, अकड़ गईलें। बात बिगड़ गईल। पुलिस टीम की सेवा की चलते गोरखपुर के विकास देखला की पहिलहीं बेचारे गोलोक चल गईलें। जनमरवा इंस्पेक्टर के बड़का अफसर लोग व्यापारी की विधवा के समझावते रह गईलें। उ केस लिखा दिहलीं। देश मे बाजा बाजि गईल। लीपापोती काम ना आइल। जे कहत रहे, पुलिस के देखते गिर गईले से चोट आ गईल, ओकरा मुँहे डाक्टर के पोस्टमार्टम रिपोर्ट करीखा पोत दिहलसि। एगो इंस्पेक्टर की करनी से साढ़े चार साल के चमकत आपन शहर दागदार हो गइल। जवन छवो जने होटल में छरकत रहलें, अब भूमिगत बाड़न। अखबार से लगायत टीवी तक आ फेसबुक से लेके व्हाट्सप ग्रुप तक जांबाज जनमरवा पुलिस के चर्चा चलत बा। पब्लिक सड़क पर खोजति बा, वकील लोग कचहरी में खोजत बा। मृत व्यापारी के आत्मा एनकाउंटर के राह देखत बा। सोचति बा, यह गैंगेस्टरन के गाड़ी कब पलटी? इनहन की घर पर बुलडोजर कब गरजी? देहाती बाबा के कविता बस चारे लाइन में बा-
जवन जिनगी रहल, उ खामोश हो गइल।
का गोरखपुर आइल, ही दोष हो गइल?
पईसा के लोभी, आदमखोर हो गइल।
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