मंदिर में मंथन भइल, मिली जाम मुक्ति?
जाम-झाम की नाम पर, आपन-आपन युक्ति।।
नगर निगम में धांधली, गेट में ताला बंद।
लाठी चार्ज में बहल लहू,ऊपर से शांतिभंग।।
महानगर में रोज मिलें, मरल-परल नवजात।
निर्ममता आ निर्लज्जता, कù अइसन सौगात।।
उड़न परी जब उड़ चली, रेल का नियम तोड़।
मवाना मैराथन जितली, आइल अइसन मोड़।।
किताबुल्लाह प्रकरन में, पुलिस करेले खेल।
आखिर कवले इ चली, खादी-खाकी मेल।।
बरहजवाले नेताजी, बसपा के जायसवाल।
दिल्ली में सीबीआई, पूछलसि बड़ा सवाल।।
व्यवसायी से रंगदारी, मांगत हौं रंगदार।
माल्हनपार की घटना से, सहमें दुकानदार।।
सभ्य हुए सुविधा बढ़ी, पर उखड़ रही है मूंछ।
व्यवस्था भुरकुस भइल, दिये एटीएम कूंच।।
ग्रामीण अंचल में देखीं, भइल व्यवस्था फेल।
आटा चक्की बंद पढ़ाई, दुर्लभ किरासन तेल।।
गैस के किल्लत भयो, रोटी भई मुहाल।
वितरण व्यवस्था सुधर गई, झूठ बजावें गाल।।
एही गैस की कारने, पीपीगंज दबंग।
कट्टा तानि के भग गये, देखी ऐसी जंग।।
भ्रष्टाचार के दीमक, चट्ट करत बा मुल्क।
यूनिवर्सिटी में हजम, 21 लाख कù शुल्क।।
सक्रिय भये शिक्षा माफिया, बोर्ड कर रहा भूल।
परीक्षा केंद्र बन रहे, ब्लैकलिस्टेड स्कूल।।
मनरेगा में का कहीं, भ्रष्टाचार के भेंट।
सौ दिन फावड़ा चलल , जा में रहल ना बेंट।।
भ्रष्टतंत्र के लूट के, अइसन बिछल बा जाल।
गरीबन के निवाला देखीं, पहुंचत बा नेपाल।।
महानगर और जिलन के, का बतलाई हाल।
ताबड़तोड़ चोरी डकैती, ‘देहाती’ बड़ा बवाल।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती की यह व्यंग्य रचना राष्ट्रीय सहारा के २३ फरवरी १२ के अंक में प्रकाशित है .