प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय.
14 फरवरी बीतल ह। ‘प्रेम दिवस’ के खूब चर्चा भइल ह। मनबोध मास्टर वेलेन्टाइन के चर्चा कइलें त मस्टराइन बेलन लेके तैयार हो गइली। कहली-बुढ़ारी में मटुकनाथ बनल चाहत हवù। बेलन से टाइट क देइब, एकदम राइट हो जइबा। पता ना कवन कुख्यात, लुच्चा, कुसंत के अइसन अंत भइल कि अपने त फांसी चढ़ि गइल आ दे गइल बेलेन्टाइन डे। हमरा देश में संत कबीर भइलन। केतना बढ़िया आ बड़वर ‘प्रेम’ के परिभाषा दिहलन। बगैर कागदे-कलम के एतना लिखलें आ कहि दिहलें- मसि कागद छुयों नहीं..। मनुष्य की अस्तित्व के रोमांचक अनुभूति देवे वाला शब्द ह ‘प्रेम’। प्रेम खूब पसरल। राधा-कृष्ण, शकुंतला-दुष्यंत, सावित्री-सत्यवान की प्रेम कथा से पुरान भरल बा। कुछ समय बाद हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, सलीम-अनारकली, लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद, रोमियो- जूलियट ‘प्रेम’ की चलते ही प्रसिद्ध हो गइलन। सृजन के मूल तत्ववाला प्रेम अब मस्ती आ फैशन, उपभोग आ बाजार के वस्तु बनि गइल बा। भावना की बहाव में नवहा लक्ष्के-लक्ष्की त बहते हवें, बुढ़ारी में तूहूं बहत हवù। कबीर बाबा सांचों कहले रहलें- ढाई आखर प्रेम का., प्रेम न बाड़ी उपजै., प्रेम गली अति सांकरी.., बरसा बादल प्रेम का, भिजि गया सब अंग.। लेकिन आज के प्रेम लिखो फेंको वाली कलम। हलो -हाय कहि के आवत बा, गुड -वाय कहि के विदा हो जात बा। अब कवनो सावित्री यमराज की लगे ले सत्यवान की जान खातिर ना पहुंची। जे ना जानत बा, उहो वेलेंटाइन- वेलेंटाइन गोहरावत बा। सही बात इ बा कि रोम में तीसरी शताब्दी में सम्राट क्लडिस क शासन रहे। ओकर कहनाम रहे कि विवाह कइला से पुरुष के शक्ति आ वुद्धि कम होला। उ फरमान जारी कहलें कि कवनो सैनिक आ अधिकारी विवाह ना करी। ओही देश में एगो संत वेलेंटाइन रहलें। उ एह क्रूर आदेश की खिलाफ में बगावत खड़ा क दिहलें। परिणाम भइल कि 14 फरवरी 498 के संत वेलेंटाइन के फांसी चढ़ा दिहल गइल। उनकी स्मृति में रोम देश में वेलेंटाइन डे मनावला के परंपरा शुरू भइल। पश्चिम के इ सभ्यता पुरूबिहन की करेजा पर ले चढ़ि गइल। अब शहर महानगर के बाति के करो गांवन में भी इलू-इलू होता। मस्टराइन के बाति सुनि के मनबोध कहलें-हमरा समझ में ना आवत बा, लोग गुड़ खाके काहें गुलगुल्ला से परहेज करत बा। एक ओर कहल जाला कि साधु-संत के शिक्षा जीवन में चरितार्थ करù। जब हम संत वेलेंटाइन की बतावल राहि पर चले जात हई त घर में मैडम के बेलन टाइट हो जाता। मास्टर-मस्टराइन के बाति सुनि के हमरो कवित्तई करे के मन कइलसि-
बढ़िया बीतल 14 फरवरी, कहल गइल प्यार के दिन। होटल- पार्क, कोने -अंतरा में , प्यार के इजहार के दिन।। संत वेलेंटाइन मरि गइलें, दे गइलन बाजार के दिन। रंग- विरंगा गुलाब खरीदलीं, रहल इ उपहार के दिन।। - नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के १६/२/१२ के अंक में प्रकाशित है . |
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