दादा, दीदी आ नेताजी
मौसम करवट बदल दिहलसि। नेताजी रंग बदल दिहलन।
गिरगिट शरमाए लागल। मेघुचा टर्राए लागल। देश में राष्ट्रपति चुनाव के र्चचा
चालू बा। दादा वाला लोग अगराइल बा। दादा खातिर कुरसी नियराइल बा। दीदी
नधियाइल हई। नेताजी चरखा पढ़ा दिहलें। मिसाइल मैन मना क लिहले। राजग के
बेचैनी बढ़ गइल। मानसून के बदरी ओरिआनी तर आके अटकल बा। राजग के साझ वाली
सुई सेंघरा पर टंगाइल बा। सियासी दांव-पेंच से बेखबर मनई महंगाई की मार से
दुबकल बा। ओकरा का, प्रणब दादा होंखे चाहे कलाम काका। कवनो फरक ना पड़े
वाला बा। नेताजी के चाम कù जीभ लाम चलि गइल। पहिले बंगाल शेरनी ममता दीदी
की साथे रहलें। दुनो मिलके संप्रग के योजना पर पानी फेरला पर लागल रहलें।
राजग के लोग सोचले कि अबकी संप्रग के पानी-पानी क दिहल जाई, लेकिन अब अपने
पानी बचावल मुश्किल हो गइल बा। नाक बचावला में नाक पोंछा गइल। कलाम काका भी
स्थिति देख के मुकर गइले। दस जनपथ में जवन सियासी खिचड़ी पाकत रहे ममता
दीदी का पता ना रहे। दु वर्ष बाद लोकसभा के चुनाव होखे वाला बा। लोग के
रुझान राजग की ओर बढ़त रहल ह, लेकिन अब राजग के मुश्किल देख के लगत बा
भाजपा मुसीबत में बा। राष्ट्रपति की चुनाव में संप्रग के विरोध करे खातिर
एक अदद प्रत्याशी के भी इंतजाम ना क पावति बा। संगमा त मंगनी के टिकुली
हवें, उनकी भरोसे कवले लिलार चमकी। राजग के एगो टंगरी कहाए वाला शिवसेना त
प्रणब दादा की साथे ही खड़ा हो गइल। राजग के राजनीति बालू की भीति अइसन
भरभरात बा। अब त लगत बा कि सशक्त विपक्ष के भूमिका निभावला में भी उ अक्षम
हो गइल बा। संप्रग प्रणब दादा के निष्कलंक बतावति बा, लेकिन लोग जानत बा कि
2007 में चावल निर्यात की मामला में उनकी पर आरोप लगल रहे। पश्चिम अफ्रिका
के एगो देश घाना ओह समय प्रणब दादा की खिलाफ जांच के सिफारिश कइले रहे।
घाना के आरोप अपना महान भारत में अवते मुट्ठी भर चना अइसन हो गइल। देश की
राजनीतिक हालात पर चार लाइन के कविता देखीं केतना सधत बा-
‘दादा’ की हाथे
में देश के लगाम!
‘दीदी’ दहाड़ पर भी लागी विराम।।
‘नेताजी’ अइसन बदल दिहलन
रंग।
देख के ‘गिरगिटवा’ भी रहि गइल दंग।।
चलल ना राजग के साझ वाली नीति।
भहराइल जेइसे हो बालू के भीति।।
मारि लिहलसि
बाजी,बजावे लोग गाल।।
सफल ‘इटालियन’ के सियासी चाल।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 21 जून 2012 के अंक में प्रकाशित है .
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