कहीं खाये के रोटी ना कहीं 35 लाख के शौचालय
आपन देश गजब ह। कहीं लोग के खाये के रोटी ना
मिलेला त कहीं लोग 35 लाख की शौचालय में हल्लुक होलें। योजना आयोग के
उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया कार्यालय में बैठ के प्रति व्यक्ति आय 28
रुपया निर्धारित कù के गरीब मनई के गरीबी रेखा से उपर उठा दिहलें त ओतना
कष्ट ना भइल जेतना अधिकारियन की इस्तेमाल खातिर तीन गो बाथरूम बनववलें जवना
के कीमत लगभग 1 करोड़ 05 लाख रुपये बा। मतलब एगो शौचालय पर 35 लाख खर्च।
अट्ठाइस रुपया रोज कमाये वाला मनई आटा, दाल, चावल की जोगाड़ में ही रह जाई।
ओकरा शौचालय के जरुरत कवन बा। उ त इ हे कहीं - ‘मुंदहु आंख कते कुछ
नाहीं.’। झाड़ के आड़ मिली त मिली ना मिली त कहीं मुड़ी निहुरा के हलुक हो
जइहन। गांवन में स्वच्छता अभियान की नाम पर शौचालय की निर्माण खातिर एपीएल
कार्डधारक के 1100 और बीपीएल कार्डधारक के 1400 रुपया सरकार देले। अब सवाल इ
बा की येह महंगी में एतनी पइसा में शौचालय कइसे बनी। अगर बनि भी गइल त
केइसन रही। हद के बेहयागिरी तब देखे के मिलल जब योजना आयोग कहलसि की इ
सामान्य रखरखाव के प्रक्रिया रहल। ऐके फिजुल खर्ची कहल दुर्भाग्यपूर्ण बा।
बाति सही बा। अहलूवालिया साहेब की विदेश यात्रा पर रोज दु लाख से ऊपर रुपया
खर्च भइल। अइसन लोग खातिर 35 लाख के शौचालय कवन बड़वर बाति बा। अब मनबोध
मास्टर येह मुद्दा के लेके कई लोगन से बाति कइलन कि अगर रउरा के 35 लाख के
शौचालय मिल जाय त का करब? एक जने कहलें हम ओकर प्रयोग शौच खातिर करबे ना
करब। अइसन बाथरूम में ढुकते शौच सुटक जाई। सरकार में बइठल योजनाकार लोग
गरीबी नापे वाला पैमाना तोड़ के फेंक देव। पंच सितारा - सत सितारा सुविधा
से लैस कमरा में बइठ के देश के गरीबी के पैमाना ना बनावल जा सकेला। जेकरी
पांव ना फटल बेवाई, उ का जानी पीर पराई। देश में भुखमरी आ गरीबी के हालत
बिकराल बा। पिछला छह दशक से देश से गरीबी मिटावल जाता, लेकिन वाह रे गरीबी,
मिटे के नामे ना लेत बा। अहलूवालिया साहब ! रउरी अइसन लोग 35 लाख ना 35
करोड़ की बाथरूम में पाखाना करी, काहें कि रउरा नियंता हई। गरीबन के भाग्य
विधाता हई। लेकिन हमरो दु लाइन सुन लीं-
भुखमरी से मौत रोक दीं, रोक दीं
सजो बेमारी।
रउरी हाथे सब कुछ बाटे, रउरा बड़वर अधिकारी।।
जेकरा घरे जरे ना
चूल्हा, ओकरो बदे कुछ कर दीं।
ना कुछ कर पाई यदि रउरा,कूड़ापात्र में
रिपोटिया धरि दीं।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रिय सहारा के 7 जून 2012 के अंक में प्रकाशित है .
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आदरणीय देहाती जी, राउर लेख आँख खोले वाला बा, आम आदमी खातिर योजना खास आदमी लक्जरी कमरा में बईठ के बनावत बा, ओकरा नजर में अमीर आ गरीब के परिभाषा ही अलग बा, गेहूं महंगा भईला पर ब्रेड खाए के सलाह देला, रउआ ठीके कहनी कि उ का जाने पीर पराई, जाके पाँव ना फटे बिवाई | कुछ टूटल फूटल शब्दन में हमू आम आदमी के परिभाषित करे के परयास कईले बानी ....एक नजर एहरों ....
जवाब देंहटाएंजलहरण घनाक्षरी : आम आदमी (भोजपुरी )
चकरी में जोरू संग, दराला आम आदमी,
रोज-रोज चउक प, बिकेला आम आदमी |
खाली बस चुनाव में, आवेला उ धियान में,
जनता जनारदन, कहाला आम आदमी |
करिया कमाई करे, उजर पहिर देख,
सुलुग-सुलुग अब, जरेला आम आदमी |
होला सियासत खाली, धरम के नाम पर,
मसजिद में राम के, देखेला आम आदमी ||