बुधवार, 7 सितंबर 2016
एन डी देहाती की चार लाइन व्यंग्य रचना। काहे बिछ्वले ना खटिया काहे बिछ्वले ना। पीके मार दिहलसि तोर मतिया खटिया काहे बिछवेले ना। कुपित देवरिया के धरत्तिया लिहले हमरो इजतिया ना। खटिया लूटल पटिया टूटल नकिया कटवले ना। हंसे बिरोधी त फाटे छतिया खटिया काहे बिछ्वले ना। कहे गावे के फुलमतिया बरिजत रहे एन डी देहतिया पपुआ मनलसि नाही बतिया खटिया काहे बिछ्वले ना। देश दुनिया में भईल फाजिह्तिया खटिया काहे बिछ्वले ना।
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