देवरिया के देहाती
सूपा त बाजल, दलिद्दर भागल?
मनबोध मास्टर के बस एगो सीधा सवाल। घर घर सूपा त बाजल । का दलिद्दर भागल?कातिक के महीना। पर्व के दिन। घर-घर दीया बराइल। लक्ष्मी जी आ गइली। सूपा बाजल। दलिद्दर भागल। ईआ बड़की माई काकी भौजी बहुरिया और न जाने के के असो भी सूप बजावल। बस एगो इच्छा दलिद्दर भाग जा। मतलब साफ बा बगैर शोर के कुछ न भागी। सीमा पर दुश्मन। देश में गद्दार। गरीबी भ्र्ष्टाचार। सब भगावे खातिर सूप बजावे वाली परम्परा। शोर। आजादी से लेके अबतक खूब भोपू बाजल। हकीकत आप की सामने बा। केतना दलिद्दर भागल। भागे न भागे हमार काम भगावल ह। सबके जगावल ह। ई देश विविधता के देश ह। गोधन बाबा कूटालें। पीड़िया माई बन जाली। कलम-दावात के पूजा होला चित्रगुप्त महराज प्रसन्न हो जालें। छठ आ गइल। नयाह-खाय-खरना-अघ्र्य की तैयारी में लागल लोग। सालोंसाल गंदगी आ कचरा वाली जगह पर साफ-सफाई की साथे छठ के बेदी बने लागल। पर्व के सफर, त्योहार के सिलसिला, अइसे ही चलत रही। छठ माई के व्रत होई आ सूर्य भगवान अर्घ्य लिहे। मनबोध मास्टर सोचे लगलें- महंगाई पर रोज- रोज रोवे वाला मनई के हाथ भी त्योहार पर सकेस्त ना भइल। खूब खरीदारी भइल। इ भारतीय उत्सव ह। उत्सवधर्मिता में कहीं कवनों कंजूसी ना। धनतेरस की दिने से ही त्योहार के उत्साह शुरू बा। त्योहार हम्मन के संस्कृति ह। केतना सहेज के राखल बा। धनतेरस के एक ओर गहना-गुरिया, वर्तन- ओरतन, गाड़ी-घोड़ा किनला के होड़ त दूसरी ओर भगवान धन्वंतरि के अराधना- जीवेम शरदं शतम् के अपेक्षा। प्रकाश पर्व पर दीया बारि के घर के कोने-अंतरा से भी अंधकार भगा दिहल गइल। जग प्रकाशित भइल। मन के भीतर झांक के देखला के जरूरत बा, केतना अंजोर बा? ये अंजोर से पास- पड़ोस, गांव-जवार, देश-काल में केतना अंजोर बिखेरल गइल? दलिद्दर खेदला के परंपरा निभावल गइल। घर की कोना-कोना में सूपा बजाके दलिद्दर भगावल गइल लेकिन मन में बइठल दलिद्दर भागल? दुनिया की पाप-पुन्य के लेखा-जोखा राखे वाला चित्रगुप्त महराज पूजल गइलें। बहुत सहेज के रखल गइल दुर्लभ कलम-दावात के दर्शन से मन प्रसन्न हो गइल। अपनी कर्म के लेखा-जोखा जे ना राखल ओकरी पूजा से चित्रगुप्त महराज केतना प्रसन्न होइहन? छठ माई के घाट अगर साल के तीन सौ पैंसठों दिन एतने स्वच्छ रहित त केतना सुन्नर रहित। पर्व-त्योहार के जड़ हमरी संस्कृति में बहुत गहिर ले समाइल बा। ओके और मजबूत बनावला के जरूरत बा। संकल्प लिहला के जरूरत बा की फिजुलखर्ची में कटौती क के ओह धन से कवनो जरूरतमंद के सहयोग क दिहल जा। अइसन हो जाय त त्योहारन के सार्थकता और बढ़ जात। खूब खुशी मनावल जा, लेकिन केहू के दुख ना पहुंचे येह पर ध्यान दिहला के जरूरत बा। खूब सूप बाजो लेकिन सुते वाला के तकलीफ न होखे। सर्जिकल स्ट्राइक होखे चाहे जेल से भागे वालन के इनकाउंटर। सूपा बजावल करी। वफादार और गद्दार में पहिचान कठिन बा। येह कविता की साथे सबके प्रति शुभकामना।
दीया बराइल, लक्ष्मी अइली।
सूपा बाजल, दलिद्दर भागल।
भैयादूज के गोधन कूटइलें,
रड़ूहन के तिलकहरू अइलें।
छठ मइया के अघ्र्य दियाई,
सब्जी आ फल खूब किनाई।
पढ़ल करीं रफते रफते। फेरु मिलब अगिला हफ्ते।
रउरा सब के एन डी देहाती
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