ब्राह्मणों के प्रति हमदर्दी महज चुनाव तक
यूपी में चुनाव सामने है। सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की जुगत में हैं। प्रदेश के 12 फीसदी ब्राह्मण तख्त ताज बदलने का मादा तो रखते हैं। बस कमी है कि संगठित नहीं रहते। यही कारण है कि कांग्रेस सरकारों के पतन के बाद केवल ब्राह्मण जाति का इस्तेमाल हुआ। उन्हें उनका उचित हक नहीं मिला। राज सिंहासन पर दूसरे ही लोग विराजमान हुए। ब्राह्मण ईर्ष्या नहीं करते,संतुष्टि ही उनकी खुशी का मंत्र है। वक्त के साथ ब्राहम्ण भी बदले। कभी कांग्रेस का मेरूदण्ड ब्राह्मण था। आज भाजपा की भक्ति में ब्राह्मण लीन है। अन्य दलों के लोग इसी से परेशान हैं, वे ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की होड़ में हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती अयोध्या से सतीश मिश्र के नेतृत्व में ब्राह्मण सम्मेलनों की शृंखला का श्रीगणेश कर चुकी हैं। प्रदेश के हर मंडल में सतीश मिश्र ब्राह्मण सम्मेलन करेंगे। सवाल यह है कि सतीश मिश्र को कितने फीसदी ब्राह्मण अपना नेता मानते हैं। सतीश मिश्र जिस बसपा में हैं उस पार्टी का चरित्र है कि वह कब किसे राखी बांध दे और कब किसे छोड़ दे। जिस ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने गेस्ट हाउस कांड में सपा के हमले से मायावती को बचाया, उन्हीं के बेटे सुनील दत्त को बसपा ने अपमानित कर दल से बाहर इस लिए कर दिया था क्योंकि उन्होंने बसपा से सपा के गठबंधन का विरोध किया था।सुनील दत्त द्विवेदी ने तब कहा था कि मायावती ने उस पार्टी से गठबंधन किया है जिसके नेताओं ने उन्हें 1995 में जान से मारने की कोशिश और अपमानित किया था। उन्होंने कहा कि साल 1995 में जिस दौरान यह घटना हुई उस समय मेरे पिता ने ही उनकी जान बचाई थी। इस घटना के बाद उन्होंने मेरे पिता को अपना भाई और मुझे भतीजा बताया था लेकिन कभी भी हमारे परिवार की तरफ मुड़ कर नहीं देखा। सुनील ने कहा कि इस घटना के 23 साल बाद अब उन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लिया है और उन्हें अखिलेश यादव के रूप में एक नया भतीजा भी मिल गया है। भले ही उन्होंने यह गठबंधन कर अपनी राजनीति को बचाने का प्रयास किया हो लेकिन यह साबित करता है कि मायावती रिश्तों के महत्व को नहीं समझती।
प्रदेश में आज की राजनीति की बात करें तो नेता भले चुनावों में जीत का आशीर्वाद लेने ब्राह्मण के पास आते हों लेकिन सत्ता में भागीदारी के मामले में ब्राह्मणों को उनका असल हक नहीं दिया जाता। लेकिन ब्राह्मणों का इतिहास है कि उन्होंने कभी विद्रोह नहीं किया ना ही अपने हक के लिए कोई बड़ी लड़ाई लड़ी है। ब्राह्मण का प्रयास रहता है कि समाज में शांति और समृद्धि बनी रही जिससे उसका भी काम चलता रहे। आमतौर पर ब्राह्मण को काम पड़ने पर ही याद किया जाता है और अब चूँकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आ गये हैं तो प्रदेश में वोटों के लिहाज से बड़ा महत्व रखने वाले इस समुदाय को लुभाने की कवायद भी तेज हो गयी है।
सपा हो या बसपा क्या यूपी में किसी ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री बना सकते है ? भाजपा को हिंदूवादी कहा जाता है। भाजपा भारतीय संस्कृति, सनातन संस्कृति की प्रबल समर्थक है। जानना यह भी आवश्यक है कि सनातन धर्म की ध्वजा सबसे अधिक ब्राह्मण ही ऊंचा किये हैं। समाज उन्हें पाखण्डी भी कहता है, कारण कि पूजा पाठ, नियम, व्रत, तीज, त्योहार पर ब्राह्मण समुदाय अन्य वर्ग से दो कदम आगे बढ़कर भारतीय संस्कृति को बचाये रखने के उपक्रम में लगा रहता है। समाज और राष्ट्र में संस्कार का सृजन जितना ब्राह्मण कर लेता है ,अन्य वर्ग बहुत पीछे रहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी मंत्रिपरिषद का जो विस्तार और फेरबदल किया है उसमें उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरणों को देखते हुए ब्राह्मण नेता को भी जगह दी है। मोदी सरकार में देखें तो कुल मिलाकर 11 ब्राह्मण मंत्री हैं। इस तरह की भी चर्चाएं हैं कि योगी सरकार के संभावित विस्तार में कांग्रेस से भाजपा में आये ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद को जगह दी जा सकती है। योगी सरकार में इसके अलावा पहले से ब्रजेश पाठक कैबिनेट मंत्री हैं ही।सवाल यह है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा चलती ही किसकी है। जिस जितिन प्रसाद को मंत्री बनाये जाने की चर्चाएं तेज हैं उन्हें कौन ब्राह्मण अपना नेता ही मानता है।योगी सरकार के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी ब्राह्मणों में अपनी पैठ नहीं बना सके। दूसरे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने जिस प्रकार से पिछड़े वर्ग को अपने से और पार्टी से जोड़ने में जो महारथ हासिल की है वह न तो दिनेश शर्मा ही हासिल कर सके न ब्रजेश पाठक।
उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ, उसके कई और साथी भी मारे गये तो मीडिया के एक वर्ग ने खबरें चला दीं कि ब्राह्मण योगी सरकार से नाराज हो गया है । यह पूरी तरह गलत है। अगर नाराज भी होगा ब्राहम्ण तो घर छोड़ कर जाने वाला नहीं है। क्योंकि उसे पता है सपा और बसपा के शासनकाल में ब्राह्मणों की कितनी दुर्दशा हुई थी। पूर्व मंत्री ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या सहित एटा, फरुखाबाद, इटावा, मैनपुरी सहित कितने जिलों में ब्राह्मणों की जो नृशंस हत्याएं हुईं उन्हें ब्राह्मण समाज भूला नहीं। इन दिनों मायावती विकास दुबे की केस लड़ने की बात कर रही। विकास दुबे अपराधी था, उसके प्रति आप की हमदर्दी केवल दिखावा है।
ब्राह्मण यदि सरकार से नाराज है तो अपने साथ होने वाले भेदभाव से नाराज है, अपने बच्चों के शिक्षा और नौकरियों के खोते अवसरों से नाराज है। ब्राह्मण नाराज इस लिए भी है कि जिस प्रकार सपा में एक जाति विशेष का, बसपा में दूसरी जाति विशेष का और अब भाजपा में तीसरी जाति विशेष का दबदबा बढ़ा है। स्थानीय स्तरों पर कुछ लोग केवल अपने को ही भाजपा का मुखपत्र समझ रहे। बस ब्राह्मण को इसी बात की कोफ्त है। कारण कि ब्राह्मण का योगदान भी भाजपा को आगे बढ़ाने में कम नहीं है।
मायावती को 14 साल बाद यदि ब्राह्मणों की याद आई है । मायावती 50 से ज्यादा टिकट ब्राह्मणों को दे सकती हैं। भाजपा भी अधिक से अधिक टिकट ब्राह्मण को देकर उनकी नाराजगी दूर कर सकती है।
ब्राह्मण समुदाय को लुभाने की कोशिश में समाजवादी पार्टी प्रदेश में भगवान परशुराम की मूर्तियाँ लगवाने का ऐलान कर चुकी है। लखनऊ में तो 108 फुट ऊंची भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाई भी जा रही है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने पार्टी के तीन ब्राह्मण नेताओं- अभिषेक मिश्र, माता प्रसाद पांडे और मनोज पांडे को जिम्मेदारी सौंपी है कि ब्राह्मणों को सपा के पक्ष में एकजुट किया जाये। अब ब्राह्मण सवाल कर रहे कि सपा के ये त्रिदेव अपने शासनकाल में ब्राह्मणों की कितनी मदद किये हैं। सपा के शासनकाल में उनके लोगों ने गवईं स्तर पर जो जुल्म ढाए उन्हीं भुलाया नहीं जा सकता। कांग्रेस के पास प्रमोद तिवारी, राजीव शुक्ला और ललितेशपति त्रिपाठी जैसे बड़े ब्राह्मण नेता है। कांग्रेस का यह भी कहना है कि वही एकमात्र पार्टी है जिसने प्रदेश को ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिये। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से 1989 तक उत्तर प्रदेश में छह बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। प्रदेश के अंतिम ब्राह्मण मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी थे जिन्होंने तीन बार प्रदेश की कमान सँभाली थी। कांग्रेस की इस बात में दम तो है लेकिन क्या कांग्रेस अब दमदार पार्टी रह गयी है? प्रदेश में लोकप्रियता के आधार पर देखें तो क्रमशः भाजपा, सपा और बसपा के बाद कांग्रेस का नम्बर है। अंततः हम कह सकते हैं कि ब्राह्मण भाजपा से नाराज भले हो, भाजपा को छोड़ेगा नहीं। अपवाद स्वरूप तो हर जातियों के नेता हर दल में हैं लेकिन ब्राह्मण समाज की निष्ठा अभी भी भाजपा में ही है। ढोल बज रहे। ढोल बजेंगे। चुनाव बाद सब अपनी असलियत पर आ जाएंगे। भाजपा नेतृत्व को यह दृष्टि रखनी होगी कि वह पूर्ववर्ती सरकारों जैसे एक जाति विशेष पर मेहरवान न हो। तभी पूरा होगा-सबका साथ, सबका विकास का नारा।
- पांडे एन डी देहाती, स्वतंत्र पत्रकार
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