सरगही धान के चाउर, झकाझक चिउड़ा
हाल- बेहाल बा / एन डी देहाती
मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल का कहीं, बड़ा बवाल बा। पहिले लड़िका लोग सरस्वती माई, दुर्गा माई आ लक्ष्मी माई की विसर्जन में डीजे बजावत, नाचत-गावत नदी की घाटन पर जात रहलें। अब बेटा-बेटी एक समान। काल्ह पीड़िया विसर्जन रहे। लईकियो ट्रैक्टर- ट्राली पर डीजे बजावत, नाचत- गावत घाटन तक गईली। एक से बढ़कर एक भजन, लोकगीत, पारम्परिक गीत, फिल्मी-सिल्मी सब बाजत रहे। सामुहिकता के बहुत अदभुत रूप ह पीड़िया। एगो दीवाल पर गोबर से बनल सैकड़ों की संख्यां में लागल पीड़िया के लड़की लोग बड़ा आसानी से पहचान लेली। अंतर एतने रहेला कि बिअहल-दानल लड़की लोग के पीड़िया सेनुर से टिकाइल रहेली आ कुंआरि लड़किन के बिना सेनुर से टिकल। पीड़िया के समापन ' भूजा मिलौनी' की साथे पूरा होला ।
लोक संस्कृति में पीड़िया एगो अइसन पर्व ह जवन पूर्वाचल की गांवे- गांवें गोधन कूटला की बाद शुरू हो जाला। गोबर से बनल गोधन बाबा के पूजला आ कूटला की बाद पीड़िया माई के निर्माण होला। गोधन बाबा से पीड़िया माई बनला की यात्रा में बहुत कुछ होला। रेंगनी की कांट से बहिन लोग अपनी भाई के गोधना की दिने सरपले रहली। पीड़िया की दिने ओही भाई की नाम पर सरगही घोंट के आपन व्रत तोड़ेली आ भाई के सुखी जीवन के कामना करेली। कातिक में भैया दूज से लेके अगहन की एकम ले पीड़िया उपास ना करे, एकरा खातिर रोजे बिटोर होला। गृहस्थ आश्रम के सजो संस्कार के खेल (स्वांग) की माध्यम से एक पीढ़ी से होत दूसरे पीढ़ी तक चलत चलि आवत बा। नारी सत्ता के ही रहन- सहन। तुतुलाह बोले वाली बच्ची से लेके बीअहल-दानल युवती तक मायका में पीड़िया की माध्यम से जीवन के सच से रूबरू करावे खातिर एगो लोक स्वांग, एगो लोक खेल करेली। नाटक के पात्र डॉक्टर हो या धगरिन, पति हो या पिता, सास हो या ननद । सब पात्र नारी। जब स्वांग करत रात में दरोगा बन के कवनो लईकी रोबदार आवाज में गरजे त बड़े-बड़े के पेट पानी हो जा। जब बात साफ होखे कि दरोगा ना इ त फलनवां के बेटी पीड़िया के खेल करत रहल, सुन के लोग हंसत- हंसल लोट जा। पीड़िया में भुजा मिलौनी की दौरान लाई- गट्टा देत लेत में जवन प्रेम झलकेला उहो अनोखा ह। चाउर, चिउरा, फरुही, मकई, सांवा, कोदो, टांगुन, बाजरा, बजरी, मडुआ के भूजा। शहर में बसल कई परिवार के लड़की लोग एतना अनाज के नाम भी ना जानत होइहें, लेकिन गांवन में अनाज के ज्ञान सबका बा। पीड़िया की दिने सतअनजा लउक जाला। देसी मिठाइन के भी गजब के मेल। गट्टा, बतासा, लकठा, खुरमा, पेड़ा, पेठा से लेके गुरही जिलेबी तक । जब सतअनजा के भूजा आ देसी मिठाई के मेल मिल जाला त पीड़िया के परसादी के स्वाद गजबे हो जाला। पीड़िया के दिने पंडितपुरा के बिटिया दखिनटोली के बिटिया से भूजामिलौनी कर के सामाजिक समरता के मिसाल कायम करेली।
पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते। फेरू मिलब, अगिला हफ्ते।।