गुरुवार, 4 नवंबर 2010

सरग में रोवत होइहन मालवीय बाबा


 

 

दोहाई बाबा गोरखनाथ के! आंख खोलीं...

         मालवीय बाबा कहिन तो पंडित मदन मोहन मालवीय। मालवीय बाबा सरग में रोवत होइहन। शेवला के कारण अभाव, महंगाई गिरत कानून व्यवस्था ना, उनकी नाम पर बनल गोरखपुर की इंजीनियरिंग कालेज में 31 अक्टूबर 2010 के भइल एगो प्रतियोगिता। प्रतियोगिता के नाम रहल- ‘लव लीप लिपिस्टिक प्रतियोगिता’। कालेज के वार्षिक समारोह टेक सृजन 2010 में जवन कुल भईल, येह षिक्षा मंदिर के शर्मसार करे खातिर भईल। घरघूमन लाल घर से घूमत निकरलें त मालवीय बाबा की येह षिक्षा मंदिर के येह शिक्षा मंदिर में घुस गइले। लइका-लइकी (जवन इन्जीनियर बनि के आज बाहर निकलिहन) कवन लीला करत रहलें इ देखी के दीमाग चक्करघिन्नी नाचि गइल। जब शिक्षामंदिर के इ हाल बा त अवर जगह का होत होई। आईं, कुछ दृश्य बतावत हई जवन जेहन में अबो हथौड़ा अइसन बजत बा। एगो लइका (भावी इंजीनियर) अपनी दांत में लिपिस्टिक दबा के सामनेवाली लइकी (भावी इंजीनियर) के होंठ रंगत रहे। अइसन सीन खुल्लम खुल्ला, सबकी नजर के सामने, एगो समारोह में। एगो लइकी हाथ में बिन्दी लेके आंख बन्द क सामनेवाला लइका की लीलार पर सटला के प्रयास करत रहे। एगो दूसर लइकी आंख पर पट्टी बन्हले सामने वाला लइका की कपार पर रखल घड़ा में पानी डलला के प्रयास करत रहे। अइसन-अइसन प्रतियोगिता देखि के सोचली मालवीय बाबा जरूर सरग में रोवत होइहन। भारतीय समाज से संस्कार आ संस्कृति के जनाजा उठत जाता। बेशर्मी भरल अइसन प्रतियोगिता में हिस्सा लेबे वाला लइका-लइकी से इ समाज का पाई।
जे कालेज के जिम्मेदार लोग रहे, उ इ प्रतियोगिता रोकला की जगह बइठ के लुफ्त उठावत रहे जइसे कवनो सिनेमाहाल में ‘ए’ टाइप के पिक्चर देखत होंखे। दोहाई बाबा गोरखनाथ के। नाथ संप्रदाय के देवता! रउरी धरती पर इ सब का होता? अइसन पढ़ाई कब तक चलीं जवना में लव, लीप आ लिपिस्टिक के बोलबाला रही। बाबा! तकनीक की शिक्षा मंदिर में सृजनात्मक क्षमता के प्रदर्शन होखल चाहत रहे, लेकिन एइजा त ‘भडु़अई’ होता। आंख खोलीं आ अपनी मूल सूत्र ‘जाग मच्छन्दर गोरख आया’ में तनि सा परिवर्तन क के एक बेर उद्घोश करी- ‘भाग रे भड़ुए! गोरख आया’। रउरी येह उद्घोश से सरग में रोवत मालवीय बाबा के आंसू रुक सकेला। गोरखपुर की संस्कृति आ समाज के बचा लीं बाबा गोरखनाथ।

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