गुरुवार, 17 नवंबर 2011

अइसन चलल सियासी छूरी, यूपी बांटे के मंजूरी...

आषाढ़ बरिसते धरती में लुकाइल मेघा घें-घां.ù कइल शुरू कù देलें। राजनीतिक मानसून 12 में आवे वाला बा, लेकिन 11 में ही लखनऊ-दिल्ली की एसी दरबा से नेता बहरिया के घें-घां कइल शुरू कù दिहलें। ‘महरानी जी’ बाभन-बिसुन लोग के नेवता देके ‘भाईचारा राग’ अलापे लगली। आई सभे-आई सभे, फेरु से शंख बजाई सभे ,हाथी के तिलक लगाई सभे। बाभन-बिसुन लोग के मान-सम्मान हमहीं न रखले बानी। इ बात सुनते मनबोध बाबा भड़क गइलें, कहलें- हे महरानी! तोहरा राज में सजो लाभ सतीश मिसिर, अंटू मिसिर, नकुल दुबे, रामवीर उपधिया, बृजेश पाठक के ही मिलल बा। हमरा त दहियो-चिउरा दुलुम बा। हम्मन की चक्कर में जनि पड़ीं, सामने देखीं। देखत ना हई, एक जने ‘राष्टवादी’ नेता स्व-अभिमान यात्रा निकारि के हम्मन के जगावत हवें। अइसने लोग की जगावला पर चोटी खोल, लंगोटी बांध के उनकी पार्टी के समर्थन दियाइल रहे ‘रामजी की नाम पर’। रामजी अजुओ प्लास्टिक की पन्नी तरे गुजर करत हवें। एगो दुसर पार्टी के नेताजी के ‘पुत्तुर’ क्रांति रथे से यूपी के मथे लगलें। नेताजी के राज-काज त ठीके रहे, लेकिन जबसे समाजवाद परिवारवाद में समाइल बा, आ अपने सरकार में ‘हल्लाबोल टाइप’ के कार्यक्रम होखे लागल, सत्ता में रहला पर ‘भाईजी लोग’ की लाठी में अंगारी बरसे लागल तबसे मन उचट गइल। रहल-सहल काम त पीस पार्टी वाला ठीक करत हवें। एगो ‘राजकुमार’ भी इडली-डोसा त्याग के झुग्गी-झोपड़ी में सुखल रोटी कूंचत-घोंटत घूमे लगलें। उनकर नौटंकी अलगे बा। इलाहाबाद की झूंसी में ‘बहक-बहक’ के बोल दिहलें- यूपी के नौजवान लोग कबले महाराष्ट्र में भीख मंगिहे, कबले पंजाब में मजूरी करिहन..। अब राजकुमार जी के कइसे समझावल जा, की महाराष्ट्र में धंधा कइल भिखमंगई ना ह। पंजाब में मजूरी कù के भी हम्मन संतुष्ट हई। मनबोध बाबा के बाति सुनते महरानी जी के माथा घुमल। तीन-तीन गो विपक्षी तैयार हवें, कहीं सिंहासनवा ना झटक लें। सिपहसलारन की राय से एक तीर से कई निशाना लगावते महरानी यूपी के ‘खा’गइली। चार टुकड़ा.. अवध, बुंदेलखंड, पश्चिम प्रदेश आ पूर्वाचल में बांटे के मंजूरी दे दिहली। सजो नेता लोग येह बंटवारा बयान पर ‘कच्चाइन’ करे लागल। यूपी के बदहाल व्यवस्था, भ्रष्टाचार में घेराइल मंत्री-मनिस्टर से लोग के ध्यान हट के पूर्वाचल पर अटक गइल। कुछ लोग बुझता, सहजे में सोहारी मिले जाता। अरे भइया लोग! इ राजनीति की गरम तावा पर पानी के छौंका ह, कवनो व्यंजन नाहीं बनत बा। भ्रष्टाचार से घेराइल सरकार से लोग के ध्यान हटावे खातिर छोड़ल शिगूफा ह। एके सियासी छूरी से सपा, कांग्रेस आ भाजपा के भोंके के प्रयास ह। आगे-आगे देंखी होख जाता का..
नेता रथी बेरथ के जनता, बाभन-बिसुन के दिहली नेवता।
स्व-अभिमान में आइल यतरा, जुटीं सभे ले पोथी पतरा।
क्रांति रथ लेके उ अइलें, शहर-शहर में सभा भी कइलें।
राजकुमार भी लगलें धावे, गली-मुहल्ला गांवें-गांवें।
अइसन चलल सियासी छूरी, यूपी बांटे के मंजूरी।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के १७ नवम्बर ११ के अंक में प्रकाशित है .

2 टिप्‍पणियां:

  1. मैं यूपी के विभाजन का समर्थन करता हूं। हालांकि कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं , उनका तर्क होता है कि बंटवारे से सेंट्रल पॉलिटिक्स में यूपी की अहमियत कम हो जाएगी। मेरा मानना है कि जब पंजाब से हिमाचल और हरियाणा अलग हुए तो दोनों प्रदेशों ने विकास की नई इबारत गढ़ी। इसी तरह बांबे स्टेट से गुजरात और महाराष्ट्र बने दोनों आज विकास की नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। यूपी में पहले भी अवध प्रदेश और यूनाइटेड प्रॉविंशल प्रदेश के अलग हिस्से थे। हां यह जरूर है कि यह प्रस्ताव चूंकि चुनावों से कुछ समय पहले आया है , इसलिए यह राजनैतिक मुद्दा है।

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  2. केहू के चेहरा ओतना खराब नाही होला जेतना ओकरे वोटर आईडी में लउकेला, बाकिर इहो बात सोरहो आना साच बा कि कवनो-कवनो चेहरा ओतना भी खूबसूरत नाही होला जेतना फेसबुक या चाहे कवनो सोशल नेटवर्किंग साइट के प्रोफाइल पर दिखेला।

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