अरे भइया जी! इ पब्लिक ह, सब जानेले, लेकिन चुप्प मारि के बइठल रहेले। जब जनावे के समय आवेला त खंड-खंड में बंटि जाले। जब पब्लिक के सब्र के बांध टूटेला त कनपट्टी ले पहुंच जाला। एकै चांटा में देश-विदेश गूंज जाला। जेकरा पर गिरेला ओकर कान सुन्न हो जाला, लगेला भूकंप आ गइल। ‘रियेक्ट’ पैमाना पर खाली पंजा के निशान लउकेला। लोग गावेला- अइसन मरलसि चांटा , गलवा लाल हो गइल। महंगी के चलते इ बवाल हो गइल.। दिल्ली क ‘बाबू’ पडरोैना में नवहन के जगावत रहलें। प्रदेश के तकदीर बदले खातिर नवहन के उकसावत रहलें। इलाहाबादी पढ़वइया‘ हम भिखमंगा नहीं, शर्म करो.’ के नारा लगावत डी एरिया में वइसे पर्चा फेंकलें जइसे एसेंबली में भगत सिंह बम फेंक देले होखें। बाबू की पार्टी-पउवा वाला और कुछ वर्दीधारी वीर नवहन के चिउरा अस कूटि मरलें। सांच सहलो खातिर बड़वर करेजा चाहीं। एक पखवारा ले रजनीतिहा लोग पूर्वांचल के खूब धंगारल ह। केहू स्वाभिमान जगावल ह, त केहू क्रांति मचावल ह। केहू का जन सरोकार से कवनो मतलब ना बा। सब कर लक्ष्य सिंहासन बा। दिल्ली बाला बाबू गरीब की घर रोटी खात हवें। अरे भइया जी! द्वारिकाधीश ना हवें कि सुदामा जी के दू मुट्ठी चाउर चबा के दु लोक के राज थमा दीहें। इ राजनीतिक नौटंकी ह। रहल बात गरीबी मेटावे के, त इ नारा त बाबू के पुरखा-पुरनिया भी देते रहि गइलें। उ सब सरगे गइलें, हम्मन नरक भोगत हई। बाबू के पिताश्री, दादी श्री, दादी के पिता श्री(मतलब बुढऊ नाना श्री) की जमाना में भी गरीबी हटाओ के नारा खूब चलल। गरीबी ना मिटल, गरीब लोग के नाड़ा ढील हो गइल। अब बाबू कहत हवें-‘लखनऊवा हाथी पैसा खा रहा है’। अरे भइया जी! जेकरा पचावे के पावर रही उ न खाई। रहल बाति हाथी के त रउरा जानते हई हाथी के पेट जब्बर होला। पब्लिक का दू जून के रोटी-नमक आ रात के चैन के नींद चांहीं। सुने में आइल कि बाबू के सपना में भी हाथी डरावत बा। इ हम ना, लखनऊवा मैडम कहत हई। बाबू चिहुंकी- चिहाई जनि, कुछ ‘उपरवार’ देखवा लीं। अइसन गंजबांक लगाई कि हाथी होंयùùùù.. कहि के बइठ जा। दिल्ली क बाबू आ लखनऊवा मैडम की पोलिटिकल ‘रड़हो-पुतहो’ पर इ कवित्तई बहुत सधत बा-
बोली पर संयम नहीं, नहीं जुबां पर काबू।
बोली पर संयम नहीं, नहीं जुबां पर काबू।
जस लखनऊवा मैडम बोलें, तस दिल्ली क बाबू।।
अपने-अपने ढंग से, गरीबी रहे मिटाय।
सत्ता सुख आ सिंहासन , खातिर ही चिच्ंिायाय।।
बाबू ,उनकर बपसी, दादी, अउरी बुढ़ऊ नाना।
खूब मेटवलें गरीबी के, बीतल कई जमाना।।
चार पीढ़ी आ चार दशक, कइले सत्ता भोग।
लखनऊवा मैडम करें, पोलिटिक्स क योग।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के ०१ दिसंबर ११ के अंक में प्रकाशित है .
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