चुनाव आयोग बहुत कडाई कईले बा . प्रत्यासी भी बहुत चालाकी देखावत हवे . गाव गाव लक्जरी गाडी घूमत हई. कवनो साहब शुब्बा राही में चेकिंग - ओकिंग करत में मिळत हवे त इहे जवाब देत हवे - हम बरदेखुआ हईं . फलाने की घरे जात हई . अब फलाने की दुआरी तिल्कहरून के भीड़ देख के अटिदार- पटीदार, पास -पड़ोस के लोग बटुरा जाता . फलाने भी तिल्कहरून के खूब आव -भगत करत हवे . मर -मिठाई , नर -नमकीन , अकौड़ी- पकौड़ी चापि के ऊपर से चाह-चुह पी- पा के जब राहि धरे जात हवे त घर की मुखिया की हाथ में हज़ार - दू हज़ार थमा के कान में धीरे से कहत हवे . अरे भईया ! हम साचो के तिलकहरू न हई, हम फलाने के समर्थक हई आ वोट मांगे घूमत हई . यह चिन्ह पर बटन दबा दिहा . दरअसल बात इ बा की यह बार जैसन चनाव आयोग के खौफ पहले कभी न देखे के मिलल रहे । अधिकारी हों, अथवा कर्मचारी या प्रत्याशी सजो लोग चुनाव आयोग की डंडे के खौफ से सहम गईल बा । चुनाव में जनता के बीच जा के अपनी प्रत्याशिता क प्रचार कईल उनकी मजबूरी बा , सो तरह -तरह के हथ कंडा अपनावल जता ,चुनाव आयोग क फरमान बा कि तीन गाडी से अधिका वाहन न चली , सो लोग तिलकहरू बनी के घूमत हवे , अपन प्रचार करत हवे । इ सब आयोग के छकावे के जोगार ह। हमरी देवरिया जिला की बरहज में त अयिसन तिल्कहरून के बाढ़ आ गईल बा , बिना बिआहे तय कईले खूब गोड़ लगायी , राह धराई मिळत बा . एगो प्रत्यासी त साठ गो बेलोरो आ इस्कर्पियो उतार देले हवे , कही बरछा , त कही बर देखाई . कही बर छेकाई . सब फर्जी चलता ये भाई . अब यह हालत पर एगो कविता सुन ली -
गाव गाव तिलकहरू घुमे , खूब करे जलपान /
जाये की बेरी कान में कहले, एह पर करियो मतदान/
हाथ जोड़ के नगद थम्हावे, बार बार प्रणाम /
अबकी रउरा न बिसरायिब,इहे ह मोर निशान/
आफत कईले बा आयोगवा, बहुत बा घामासान /
येही बहाने प्रचार चलत बा, हमरो साझ -बिहान /
बरहज में मतदाता मगन बा, खूब मिळत बा दाम /
खीच के सेवा तिल्कहरून के, अपनों मान-सम्मान /
Bahut hi sahi aur satic...
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