सोमवार, 16 जनवरी 2012

गाव गाव तिलकहरू घुमे , खूब करे जलपान / जाये की बेरी कान में कहले हेपर करियो मतदान

  चुनाव आयोग बहुत कडाई कईले बा . प्रत्यासी भी बहुत चालाकी देखावत हवे . गाव गाव लक्जरी गाडी  घूमत हई. कवनो साहब शुब्बा राही में  चेकिंग - ओकिंग करत में मिळत  हवे त इहे जवाब देत हवे - हम बरदेखुआ हईं . फलाने की घरे जात हई . अब फलाने की दुआरी तिल्कहरून  के भीड़ देख के अटिदार- पटीदार, पास -पड़ोस के लोग बटुरा जाता . फलाने भी तिल्कहरून के खूब आव -भगत करत हवे . मर -मिठाई , नर -नमकीन , अकौड़ी- पकौड़ी चापि के ऊपर से चाह-चुह पी- पा के जब राहि धरे जात हवे त घर की मुखिया की हाथ में हज़ार - दू हज़ार थमा के कान में धीरे से कहत हवे . अरे भईया ! हम साचो के तिलकहरू न हई, हम फलाने के समर्थक हई आ वोट मांगे घूमत हई . यह चिन्ह पर बटन दबा दिहा . दरअसल बात इ बा की यह  बार जैसन  चनाव आयोग के  खौफ पहले कभी न देखे के मिलल रहे । अधिकारी हों, अथवा कर्मचारी या प्रत्याशी सजो  लोग  चुनाव आयोग की डंडे के खौफ से सहम गईल बा । चुनाव में  जनता के बीच जा के   अपनी प्रत्याशिता क प्रचार कईल  उनकी मजबूरी बा , सो तरह -तरह के हथ कंडा अपनावल जता ,चुनाव आयोग क फरमान बा  कि तीन गाडी से अधिका वाहन न चली , सो लोग तिलकहरू बनी के घूमत हवे , अपन  प्रचार करत हवे । इ सब आयोग के छकावे के जोगार ह।  हमरी देवरिया जिला की बरहज में त अयिसन तिल्कहरून के बाढ़ आ गईल बा , बिना बिआहे तय कईले खूब गोड़ लगायी , राह धराई मिळत बा . एगो प्रत्यासी त साठ गो  बेलोरो आ इस्कर्पियो उतार देले हवे , कही बरछा , त कही बर देखाई . कही बर छेकाई . सब फर्जी चलता ये भाई . अब यह हालत पर एगो कविता सुन ली -
गाव गाव तिलकहरू घुमे  , खूब करे जलपान / 
जाये की बेरी कान में कहले, एह पर करियो मतदान/
हाथ जोड़ के नगद थम्हावे, बार बार प्रणाम /
अबकी रउरा न बिसरायिब,इहे  ह मोर निशान/
आफत कईले बा आयोगवा, बहुत बा घामासान / 
येही बहाने प्रचार चलत बा, हमरो साझ -बिहान / 
बरहज में मतदाता मगन बा, खूब मिळत बा दाम /
खीच के सेवा तिल्कहरून के, अपनों मान-सम्मान /








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