‘मुल्ला’ नमाज अता करे मस्जिद खातिर चलल
रहलें कि बीच राह में रीता बहुगुणा की भाषण में अझुरा गइलें। उ बोलत रहली,
शहर के समस्या खोलत रहली। बोलली- गोरखपुर में ‘तीन एम’ से परेशानी बा। एक
एम से मच्छर, दूसर से माफिया। तीसर की बेर मैडम के स्वर मंद हो गइल। कहली
रउरे सब तीसरका एम के अर्थ लगा लेइब। मुल्ला के माइंड एम पर मरडाये लागल।
शहर ही ना पूरा पूर्वाचल के बड़वर समस्या बा मस्तिष्क ज्वर। येह ‘एम’ पर
कवनो र्चचा ना भइल। गांव-देहात में एगो कहावत कहल जाला- मालगाड़ी, मकुना,
मेहर, महंत, येह चारो के मिले ना अंत। इ सब ‘एम’ से ही शुरू होला। मालगाड़ी
खुल जाई त अगर लाइनक्लियर मिले त बड़-बड़ जक्शन ले ना रूकी। आ खड़िहा जाई त
केतना घंटा तीन नंबर में लगल रही, केहू माई-बाप ना मिली। मकुना हाथी बिगड़
जाई त केहु की बश में ना आई। मेहर मतलब मेहरारू अगर खिशिया गइल त मरदे के
पानी आ जवानी बिगाड़ के राखि दी। महंत के अंत भला मूढ़ लोग कहां पाई। अगर
कवनो शाकाहारी मनई से पूछींतो हरा कवन समस्या बा? उ बोली- मुर्गा, मछरी,
मांस, मदिरा से परेशानी बा। इहो त ‘एम’ से ही शुरू होला। बहरहाल, मुल्ला के
माइंड फिर घूमल। एमपी, एमएलए,मेयर इहो तीनो त ‘एम’से ही शुरू होला। अबहिन
तीनों लोग एक ही राग में रहल। नगर के केतना विकास भइल? अब तीनों के राहि
जुदा-जुदा हो गइल बा। मतदाता सूची भी परेशानी के जड़ बा। विधायकी में कुछ
और मेयरी में कुछ और। चुनाव प्रचार में एक जने मेयर प्रत्याशी कहली-
निर्वतमान मेयर साहिबा के कुत्ता बहुत कटहा रहे। कटहा कुक्कुर की चलते लोग
आपन समस्या लेके ना जात रहलें। जनता बोल उठल- कुक्कुर त रउरो पोसले हई। उ
कहली- हमार कु्क्कुर कटहा ना ह, चटहा ह। मुल्ला कहलें-काटे चाटे स्वान के
दुनों भांति बिपरित। एम वाला मानसून मेहराइल बा, लोग एहू से परेशान बा।
हिंदूवादी नेता लोग मदरसा से परेशान हवें। कहत हवें, आतंवादिन के ट्रेनिंग
सेंटर हो गइल बा। मुसलिमवादी नेता बोलत हवें- मंदिरवाला लोग भावना भड़कावत
बा। भया मुल्ला की माइंड में बहुते ‘ एम’ बा जवना से परेशानी बा। लेकिन
मेयर की चुनाव में एतना जागरुकता की बादो मतदान के प्रतिशत ना बढ़ल इहो एगो
परेशानी बा। रहल बात रीता बहुगुणा के त उनका येह शहर के तासीर ना बुझाई।
तीन ‘एम’ की जगह अपनी कांग्रेस के कथनी आ करनी निहारीं। विधायकी की चुनाव
में येह शहर के लोग रउरी क्षमता के बता देले रहे। मेयरी में सात के खुलाशा
हो जाई। ‘ एम’ ही जिंदाबाद रही। - नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 28 जून 2012 के अंक में प्रकाशित है . |
गुरुवार, 28 जून 2012
तीन ‘एम’ ना, तीसों एम बा ..
गुरुवार, 21 जून 2012
दादा, दीदी आ नेताजी
‘दादा’ की हाथे
में देश के लगाम!
‘दीदी’ दहाड़ पर भी लागी विराम।।
‘नेताजी’ अइसन बदल दिहलन
रंग।
देख के ‘गिरगिटवा’ भी रहि गइल दंग।।
चलल ना राजग के साझ वाली नीति।
भहराइल जेइसे हो बालू के भीति।।
मारि लिहलसि
बाजी,बजावे लोग गाल।।
सफल ‘इटालियन’ के सियासी चाल।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 21 जून 2012 के अंक में प्रकाशित है .
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गुरुवार, 14 जून 2012
सेनुर, बिंदी आ चूड़ीबिहीन, साड़ी की आड़ में मर्द लड़ेंले
बाति कहब फरिछा, केहू का मीठ लागी केहू का मरिचा। हम जानत हई कि बाति बा
निरकेवल, केहु के भतार रुठिहें केहू के देवर। नगर निकाय की चुनाव में जवन
देखत हई उहे बकत हई। आरक्षन की तहत सीट भले मेहरारून खातिर रिजरब बा, असली
लड़ाई त मरदे लोग लड़त हवें। मादा की सीट पर मर्द लोग माद्दा देखावत हवें।
हाथ जोड़ले, दांत निपोरले सांझ -सबेरे धावत येह आरक्षन घोटू प्रतिनिधि के
देख के इहे कहल जा सकेला कि मेहरारून की हक पर डाका डालेवाला हवें। जवन
मेहरारू आपन हक लुटावत हई उ अपनी पद के गरिमा कहां ले बचा पइहन। संविधान की
अनुच्छेद 14 से लगायत 18 तक नर-नारी के समानता के अधिकार दिहल गइल।
संविधान की तिहत्तरवा आ चौहत्तरवा संशोधन अधिनियम 1993 में सरकार मेहरारू
लोग के आरक्षन देके पंचायत आ नगर निकाय की महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे के
रास्ता सरल बना दिहलसि। पहिले 33 प्रतिशत आरक्षन दियाइल। बाद में आरक्षन के
प्रतिशत 50 हो गइल। महिला सशक्तिकरन पर लंबा चौड़ा भाषन लोग भले झारि दे,
लेकिन महिला आरक्षन के लाभ पति, पुत्र, ससुर, देवर, भतीजा अइसन रिस्तेदार
ही उठावत हवें। दरअसल मेहरारू आ चना के हाल एक जेइसन बा। जेइसे मनई चभक के
चना के मुंह में डार लेंले। चना हरिअर होखे चाहे पाकल। खेत में होखे चाहे
खरिहान में। कच्चा होखे चाहे भुनल। कहल जाला कि भगवान की दरबार में न्याय
मांगे गइल चना पर भगवान जी के भी लार चुये लागल। ठीक उहे हाल महिला लोग के
बा। सीट सभासद के होखे चाहे अध्यक्ष के। फुफुती की आड़ से रिस्तेदार लोग ही
लड़त बा। नाम मादा के आ मलाई नर लोग चाभत बा। छोटकी पंचाइत में मेहरारू
लोग के कोटा मरद लोग पूरा कù देत बा। बड़की पंचाइत में इ सब संभव ना बा ।
येही से रजनेतिहा लोग लोकसभा, राज्यसभा आ विधानसभा में महिला आरक्षन ना
दिहल चाहत हवें। महिला आरक्षन तबे सार्थक होई जब मेहरारू लोग में संपूर्ण
नारीत्व जागी। लोहिया जी कहले रहलें- ‘शक्ति’ मौका अइला पर प्रकट होले। अब
मौका त आइल बा। शक्ति के शोषण करे वाला पुरुषवादी प्रभुत्व से बची तब न आपन
शक्ति देखाई। एगो कविता देखल जा, केतना सधत बा आजकल की चुनाव पर- लाज न बा
तनिको उनका, मेहरारू कù सीट आ मरद मरेंले।
आंखि पसारि के देखीं तनी, चारो
ही ओर अनेति करेंले।।
सरकार इ काहे आरक्षन देति, नाम बा मादा के नर ही
दिखेंले।
सेनुर, बिंदी आ चूड़ीबिहीन, साड़ी की आड़ में मरद लड़ेंले।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 14 जून 2012 के अंक में प्रकाशित है .
गुरुवार, 7 जून 2012
कहीं खाये के रोटी ना कहीं 35 लाख के शौचालय
भुखमरी से मौत रोक दीं, रोक दीं
सजो बेमारी।
रउरी हाथे सब कुछ बाटे, रउरा बड़वर अधिकारी।।
जेकरा घरे जरे ना
चूल्हा, ओकरो बदे कुछ कर दीं।
ना कुछ कर पाई यदि रउरा,कूड़ापात्र में
रिपोटिया धरि दीं।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रिय सहारा के 7 जून 2012 के अंक में प्रकाशित है .
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