गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

केहू खातिर बारह बज गइल केहू के पौ-बारह

बारह-बारह के महासंयोग। बुध की दिने सब शुद्ध रूप से निपट गइल। जीवन में 12 के बहुत महत्व बा। बारह घंटा के रात, बारह घंटा के दिन, साल में बारह महीना, हिंदू धर्म में 12 ज्योर्तिलिंग, एक फुट में 12 इंच, जन्मांग में 12 राशि। केहू के परेशानी में बजल बारह। केहू के खुशी में पौबारह। जनता साल में रियायती दर के 12 गैस सिलेंडर खातिर लालायित। अइसने कुछ बारह बतासी के बीज मनबोध मास्टर के बौराइल करेक्टर। राजनेतन के दोहरा चरित्तर। खामखयाली पोलाव खा के झूठ डकारे के प्रयत्न। जवना धरती की कोख से आजाद, भगत, सुभाष अइसन क्रांतिकारी पैदा भइलन ओही कोख से राजनीतिक व्यापारी भी पैदा होत हवें। जनता की बीचे बात कुछ और आ सदन में साथे केहू और के। बारह यादगार रही। बाहर चक्रवाहिनीवाला आ हाथीवाला एफडीआई की खिलाफ में खूब चोंकरत रहलें। सदन में ना जाने कवना सौदा पर हौदा से उतर सरकार की साथे हो गइलन। बर्हिगमन त बहाना रहल। हे भगवान! बारह में लोग के रूप बदलत देख के गिरगिट भी सरमाए लागल। चरखा दांव के माहिर पहलवान भी हाथीचाल चलि दिहलन। उनकर सायकिल जवन गांव, गरीब, छात्र, मजदूर, किसान के प्रिय सवारी रहल उ राजधानी में जाते सठिया गइल। ओकरा कैरियर पर एफडीआई के बंडल ढोवल जाता। अब उ वालमार्ट वाली अंग्रेजी भी बुझे लागलि बा। एगो बाति के प्रसन्नता बा पहलवान साहब, परमोशन में रिजर्ववेशन की खिलाफ लंगोट बांध के खड़ा हवन। खड़ा रहिहन त बारह के इतिहास जब भी लिखाई उनकर र्चचा होई। हाथीवाली मैडम दलित भाई लोग के परमोसन में भी रिजर्ववेशन खातिर लड़त हई त एगो सवाल मिसिर बाबा से उठावल जरूरी हो गइल बा। मिसिर जी! अब रउरे बताई, काहें कवनों पंडी जी शंख बजइहें आ हाथी के दिल्ली पहुंचइहें। पंडी जी लोग का कवन फायदा बा? बौराह लोग बारह से भी सवक सीख लीतें त 2014 में सब साफ हो जाइत, लेकिन तुलसी दल बनि के सबके पवित्तर कइला में लागि के अपने टुकड़ा -टुकड़ा होत हवें। नौकरी में त लेइ लिहलन, परमोसनवो में आरक्षन ले लीहें त सबरन लोग की लक्ष्कन खातिर बारह बजत रही आ ओ लोग के पौबारह होत रही। बारह-बारह-बारह की महासंयोग पर इहे कवित्तई मजा देई-
भाव के सुगना टें-टें बोले, बुद्दि के कुक्कुर भोंके।
 प्रेम में धोखा दिहल जाता, केहू ना रोके टोके।।
 मुख में राम बगल में छूरी, इहे दरसन दिखलाता।।
 हाथी दांत देखावे खातिर, भीतरे-भीतरे खाता।। 
जवना रात चान ना लउकल, कहेंले पूरनमासी।
 देख दशा देश के अपनी, कटता बहुत उदासी।। 
समय काल चक्र की चलते, आईल बारह-बारह। 
केहू खातिर बारह बज गइल, केहू के पौबारह।।

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय देहाती जी, परनाम, बहुते सुनर व्यंग लेख लागल, राउर कविता गागर मे सागर बा, एह सामयिक लेख आ काव्य पर बधाई सविकार करी, अंतिम दू पक्ति बहुते पसन आइल |

    गणेश जी बागी

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