गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

नारद बाबा झूम उठे,बजा-बजा करताल का सांचो में पूरा होई, पाल के उठल सवाल


गैस से बहुत परेशानी बा। जबसे सरकार रियायती सिलेंडर में कटौती कइले बा और गैस चढ़ि गइल बा। गैस की चढ़ला से घर- घर में घरकच, करकच बढ़ल बा। मरद- मेहरारू में रार, सासु-बहू में तकरार, जेठानी-देवरानी में दरार। इ गैस के सिलेंडर का-का ना करा दिहलसि। अच्छा-अच्छा शांतिप्रिय घरन में कलह चालू बा। केवाईसी की चलते सासु-बहू में बंटवारा, बाप -बेटवा में निबटारा, भाई-भाई में ललकारा होत बा। गैस की हाल पर बहुत बवाल बा। सबकर हाल बेहाल बा। अइसने माहौल में संसद में पाल साहब शून्यकाल में सवाल उठा के अपने सरकार के असहज क दिहलन। सवाल में दम बा। रियायती सिलेंडर बहुते कम बा। साल में कम से कम बारह गो सिलेंडर त चहबे करी। पाल साहब की सवाल पर लोग का राहत लउकत बा, लेकिन नारद बाबा के जीव चिहुकत बा। कहीं इ सवाल पाल साहब की सियासी शास्त्र की विधि से सेंकल राजनीति के रोटी गरम तावा पर सेंके खातिर ना न उठावल गइल। मामला कुछ भी होखे लेकिन पाल साहब खातिर घर की चुहानी से बड़की भौजी, काकी, चाची, दादी के दुआ बरसत बा। सब इहे कहत बा- जुग -जुग जीं ए पाल साहब! रउरा साल में बारह गो रियायती सिलेंडर दिया देतीं त लोगन के पौबारह हो जाइत। सिलेंडर की महंगी से जवना घर में दाल,भात, रोटी, सब्जी एक साथ चारो व्यंजन ना बनला के उम्मीद रहे, लगत बा ओहू घर में छप्पनो भोग लागी। लेकिन एगो सवाल त नारद बाबा की दिमाग में भी बवाल उठा दिहलसि। सवाल इ बा कि जवना कांग्रेस के पाल साहब नेता हउअन उहे कांग्रेस गुजरात की चुनाव में अपनी घोषणापत्र में दावा कइले बा कि जब सरकार में आई त रियायती दर के साल में बारह को सिलेंडर देई। का इ रियायत यूपी के लोग पवला के हकदार ना बा? आकी एइजा के लोग तब रियायती सिलेंडर पाई, जब एहुजा सपा-बसपा के बारी-बारी पारी दिहला की जगह पर भाजपा के शासन होई। भाजपा के बेदखल कइला खातिर ही कांग्रेस रियायती सिलेंडर देत बा। गैस की बवाल पर, आज की हाल पर, पाल की सवाल पर इहे कवित्तई मजा देई-
  नारद बाबा झूम उठे, बजा-बजा करताल।
 शून्यकाल में सवाल?, जुग-जुग जीयù पाल।।
 गैस की कारण होत बा, घर-घर में बहुत बवाल।
 कम से कम बारह गो सिलेंडर, चहबे करी हर साल।।
 महंगी की मरले से वइसे, लोग के हाल बेहाल।
रियायत पर मिली सिलेंडर, राहत कुछ तत्काल।।
 का सांचों पूरा हो जाई? पाल के उठल सवाल।
याकी खाली बाजत रही, राजनीति के झाल।।

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