यादव जी के झंडा, तोहरी लहंगा पर लहरी
मनबोध मास्टर के मन फगुआइल बा। जीव बौराइल बा।
कहलें-‘ बुढ़ापा में जवानी से अधिका जोश होला। भभके ला उहे चिराग जवन
जल्दिये खामोश होला’। गनीमत रहल न्यूनतम उम्र तय होत रहल। अधिकतम उम्र तय
होइत त बवाल जरूर होइत। लोक सभा में शादी व सहमति से शारीरिक संबंध के
उम्र एक समान करे वाला दुष्कर्मरोधी बिल पास होत रहे। देश की बड़की पंचायत
में एतना बड़वर मुद्दा पर विधेयक पास होत रहे आ 540 पंचन में 300 से ऊपर
लापता रहलें। खरवास में येह पंच लोग के ना जाने कवन लगन लागल रहे, कहां
दावत काटे चलि गइल रहलें। जवन पंच लोग पंचायत में रहलें ओहमे बहुत लोग
उंघात रहलें। जागत रहलें त तीन यादव। तीनों के बुढ़ौती में जवानी के जोश
याद दियावत रहलें। येही से कहीला- हमरी यादव जी के झंडा तोहरी लहंगा पर
लहरी। लोक सभा में ‘ बैठ जाइए..। शांत हो जाइए..। आप भी शांत हो
जाइए..’ की मधुरबानी आज ना सुनाइल। आज अध्यक्षता करत रहली गिरिजा
व्यास। तीन दल के मुखिया लोग आज खुल के एक साथे येह बिल पर विरोध जतावत
रहलें। जनता दल यू के चीफ शरद यादव बसंती मन से विरोध दर्ज करावत रहलें-˜ जब लड़की के पीछा कवनो लड़िका ना करी त प्यार कहां से होई? शरद जी,
का आपन पवित्र छात्र जीवन याद आ गइल। बहुत सीटियाबाजी कइलीं। बहुते लड़िकिन
के पीछा कइले होइहन तब जाके मन में अइसन विचार जागल होई। शरद जी, रउरा येह
मुद्दा पर संघर्ष करीं हम रउरे साथे बानी। आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव के
टोन त हमार आदर्श हù। ताकल, झांकल की मामिला पर लालू के एतराज सहिये रहल।
अब मसखरी में कहीं राबड़ी की ओर घूरलें, आ राबड़ी कहीं विरोध दर्ज करा
दिहली त बुढ़ौती में कानून की फंदा में फंसही के परी। सपा चीफ मुलायम सिंह
यादव भी येह बिल के विरोध में रहलन। रहही के चाहीं। हल्लाबोल वाली पार्टी
हù। मायावती पर भी हल्ला बोल देले रहलन। तीनों महान नेतन के महान विचार
सुनके मनबोध मास्टर बोल पड़लन- घूरल बाउर रहित त फुलवारी में माता जानकी के
रामजी कइसे दर्शन देले रहितन। ताकल-झांकल बाउर रहित त कृष्ण भगवान गोपिन
के चीर चुरा के कदंब की डाल पर चढ़ि के चैन के बंसी ना बजवले रहितन, जेल
में चक्की पिसत रहितन। गांव-देहात में एगो कहावत कहल जाला- ‘ सट-सूट के
सुतù ना त मठ में से उठù’
सहमति आ सहमति के व्याख्या बतावे खातिर
काफी बा। सांड-भंइसा भइल मनइन के कानून के फंसरी जरूरी बा लेकिन कानून के
केतना दुरुपयोग होला दहेज उत्पीड़न में देखल जा सकेला। दहेज लेबेवाला
देबेवाला दुनो की सहमति से दहेज आजुओ फरत-फुलात बा। मामला कुछ और होला आ
येह कानून में लोग नाहक हुलात बा। कानून बने ना बने, सबके संस्कार सिखावल
जरूरी बा। एगो कवित्तई-
लालू शरद मुलायम कहलें, तीनों एकै बात।
कानून की
दुरुपयोग से , होई घात-आघात।।
हम कहलीं कि संस्कार पर , काहें ना देलीं
जोर।
चरित्र एगो अईसन हीरा ह ,चहुओर करे अजोर।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा में २ १ /३/१ ३/को प्रकाशित है .
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