गुरुवार, 7 मार्च 2013

जान बची ना, लाखों पाये

मनबोध मास्टर मौजूदा हालात पर बहुत दुखित हवें, कुपित हवें। लोग कहत बा- गजब के सरकार बा। कहीं कुंडा जरत बा, कहीं टांडा जरत बा। विरोधी कहत हवें- सूबा में गुंडा राज चलत बा। एतना धैर्यवान, दयावान, उदार सरकार के आलोचना अब बर्दास्त से बाहर होत बा। एगो जमाना रहल जब कहावत कहल जात रहे- ‘जान बची तो लाखों पायें’। अब कहावत बदल गइल-‘ जान बची ना, लाखों पाये’। कुंडा की गुंडा राज से लेके, जुआफर में चूड़ी-चप्पल सहला तक। टांडा के कर्फ्यू से लेके बलीपुर में नन्हें प्रधान की परिजनन की अनशन तक बहुत बात बाड़िन। एक ही सरकार के कई स्वरूप के दर्शन कर के जीवन धन्य कइला के जरूरत बा। कुंडा में सरकार की एगो मुलाजिम के हत्या हो गइल। छींटा सरकार के वफादार मंत्री पर पड़ल। केतना सराफत से भइया इस्तीफा दे दिहलन। गुंडाराज रहित त केकरा में दम रहल कि इस्तीफा मांग लीत। सब नजर के दोष ह। कवनो सरकार आवेले त राजा के पोटा से पीट के जेल में ठेल देले आ दूसर सरकार आवेले त भइया के ओही जेल के मनिस्टर बना देले। कुंडा में मराइल सरकार के मुलाजिम देवरिया के रहलन। देवरिया की बारे में एगो कहावत मशहूर ह-‘ ले लउरिया चल देउरिया’। इ देवरिया के प्रतिरोध क्षमता ह। जुआफर गांव में प्रतिरोध के क्षमता जब प्रदर्शित भइल त दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम भी चल दिहलन। सरकार भी चल दिहलस। सरकार चलल त इमाम की काट खातिर एगो मंत्री के भी ले आइल, कहलसि तू भी आ-जम। सरकार के सहनशीलता देखे लायक रहल। भीड़ वापस जाओ के नारा लगावत रहल, सरकार पिछुआरे से गली की रास्ते निहुरल-निहुरल संवेदना जतावे पहुंच गइल। बउराइल भीड़ कहीं चूड़ी देखावत रहल, कहीं चप्पल देखावत रहल। कहीं कार पर मुक्का मारत रहे, कहीं लोग के धकियावत रहे। एतना विरोध की बादो सरकार की सहनशीलता के बांध ना टूटल। सरकार अपनी दानवीरता में कमी ना कइलसि। जेतना हो सकत रहल ओतना न्योछावर कइलसि। देखा देखी लाग गइल। बलीपुर में अनशन करत लोग भी सरकार के बोलावल चाहत रहे। अरे भाई! सरकार एतना सस्ता बा? जहां खोजब तुरंत पहुंच जाई। बलीपुर में दो दिन बाद सरकार पहुंचल। जफुआर में बुखारी की बोखार से समुदाय के ताप ना बढ़े, येह लिए सरकार दउरल चल आइल। अब टांडा में लोग सरकार के खोजत बा त सरकार डंडा-बंदूक लेके दउरावति बा। कर्फ्यू लगावति बा। हिंदूवादी लोग की भिनभिनइले का होई। सरकार खूब बुझति बा, कहां नरमाये के बा, कहां गरमायेके बा। सरकार ही अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता देले बा जवना की माध्यम से रउरा दहाड़ लेत हई, हमहूं कुछ भौंक लेत हई। सरकार चाही त इमरजेंसी लगाके मुंह पर ताला लगा दी। सरकार चाही त राष्ट्रपति शासन लगा दी। आई एगो कविता के निहितार्थ तलाशल जा-
                                  कितनी दया दिखावे आखिर, मेरी प्यारी ये सरकार।
चिचिंयाने पर नहीं सुने फिर, दौड़ी आवे ये सरकार।।
 जान बचा ना, लाखों पाये, आखिर करती क्या सरकार।
गली-गली में सभी दहाड़ें, मौका भी देती सरकार।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के ७/३/१३ के अंक में प्रकाशित है .

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