गुरुवार, 14 मार्च 2013

जुआफर का आफर

मनबोध मास्टर आज कवित्तई पर प्रसन्न ना हवें। मौजूदा हालात पर बहुत कोफ्त बा मास्टर के दिल-दिमाग में। केतना उदास लउकल आज जुआफर। आज केहू ना आइल जुआफर में झूठ के आश्वासन देबे। गांव-देहात में एगो किस्सा कहल जाला-‘ चिरई के जान जा,लक्ष्का बझवना’। कुछ अइसने हालात जुआफर में रहल। बेचारा पुलिस अधिकारी शहीद हो गइल। माई-बाप-मेहरी खून के आंसू रोवलन। अधिकारी की बेवा के हिम्मत के भी दाद देबे के परी। आंसू आक्रोश की रूप में बहरिआइल। बेवा की आक्रोश की चलते सरकार से लेके दफादार तक हिल गइलन। जे गइल, उ लौट के ना आइल ना आई, लेकिन गइला के तौर-तरीका इतिहास की पन्ना में अमर हो गइल। आज से तेरह वर्ष पहिले 29 अगस्त 2000 के बात ह, पडरौना में भुल्लन नाम के सब्जी विक्रेता पुलिस की गोलीबारी में शहीद हो गइल रहलन। भुल्लन के बाप के आंसू भी ना रुकत रहे, ना सूखत रहे। पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा भी दौड़ल आ गइल रहलें। पडरौना के गन्ना आंदोलन में सब्जी बिक्रेता भुल्लन के शहादत इतिहास की पन्ना में अमर हो गइल। मनबोध मास्टर की जेहन में तेरह साल पहिले के दृश्य बेर-बेर नाचत बा। कइसे पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा दौड़त रहलें। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह अइलें। सोनिया गांधी भी आइल रहली। देश आ राज्य स्तर के बहुत नेता लोग गांव में आइल। ज्योंहि ललकी-निलकी बत्ती सिवान पर दिखे, भुल्लन के बाबुजी पुक्का फार के रोवल शुरू क दें। समय की साथे लोग भुल्लन के भुला गइलें। पडरौना के घटना एगो छोट सब्जी बेचेवाला से जुड़ल रहे। देवरिया के घटना बड़वर पुलिस अधिकारी से जुड़ल बा। दुनों घटना में जमीन-आसमान के अंतर बा, लेकिन एगो समानता मनबोध मास्टर का लउकत बा। घड़ियाली आंसू। इमाम साहब, मुख्यमंत्री जी,आजम साहब, नसीमुद्दीन साहब, मौर्य जी,राहुल जी.. और केतना जी के नाम गिनायी। बहुत लोग आइल। मुख्यमंत्री के छोड़ दिहल जा त के का दिहल? खाली झूठ के सांत्वना, देखावटी सिसकी आ कुछ घड़ियाली आंसू। मुख्यमंत्री जी दिहले तवन सरकारी खजाना के खोल के लुटवला के स्टाइल में दिहलन। ईमानदारी से देखीं त जुआफर ज्यादातर नेतन के ‘पिकनिक स्पाट’ बन गइल रहल। कुछ देखा-देखी में आ गइलन। कुछ एक दूसरा की काट में आ गइलन। जुआफर की जज्बा आ जोश, शराफत आ शहादत के सलाम करत मनबोध मास्टर एगो बात कहलन-जुआफर बहुत आफर दिहलसि। शहीद के परिजनन के पचीस- पचीस लाख के चेक के आफर। नौकरी के आफर। बीवी के सरकारी नौकरी के आफर। एगो वर्ग विशेष के एकजुटता के आफर। दूसरा वर्ग विशेष के तुष्टिकरण विरोध के आफर। डा. अयूब की पीस पार्टी से टिकट के आफर। राहुल जी पर्सनल नंबर देके शहीद की हत्यारन के फांसी झुलवला के आफर तक दे दिहलन। एकरा पहिले मुख्यमंत्री के मिलल भीड़ के वापस जाओ नारा वाला आफर, डीजीपी के मिलल चूड़ी के आफर। चर्चित हीरोइन जयाप्रदा पत्रकार भाई दे गइली लाफा के आफर और भी बहुत आफर के फेहरिस्त बा, केतना गिनाई। समय-काल की चक्र में सब कुछ दफन हो जाला। आज कविता ना एह शेर की साथे बात खत्म होई-
 â€˜ किसको रोता है, उम्र भर कोई। आदमी जल्द भूल जाता है’।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय  सहारा  के 14/3/13 के अंक में प्रकाशित है .

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