गुरुवार, 7 नवंबर 2013

सूपा बाजल, दलिद्दर भागल

कातिक के महीना। पर्व के दिन। घर-घर दीया बराइल। लक्ष्मी जी आ गइली। सूपा बाजल। दलिद्दर भागल। गोधन कूटाइल। पीड़िया लागल। कलम-दावात के पूजा भइल। चित्रगुप्त महराज प्रसन्न हो गइलें। चांद लउकल। मोहर्रम शुरू हो गइल। इमामबाड़ा में शहनाई बाजल। इमाम चौकन पर ताजिया सजाये लगली। छठ आ गइल। नयाह-खाय-खरना-अघ्र्य की तैयारी में लागल लोग। सालोंसाल गंदगी आ कचरा वाली जगह पर साफ-सफाई की साथे छठ के बेदी बने लागल। पर्व के सफर, त्योहार के सिलसिला, अइसे ही चलत रही। मनबोध मास्टर सोचे लगलें- महंगाई पर रोज- रोज रोवे वाला मनई के हाथ भी त्योहार पर सकेस्त ना भइल। खूब खरीदारी भइल। इ भारतीय उत्सव ह। उत्सवधर्मिता में कहीं कवनों कंजूसी ना। धनतेरस की दिने से ही त्योहार के उत्साह शुरू बा। त्योहार हम्मन के संस्कृति ह। केतना सहेज के राखल बा। धनतेरस के एक ओर गहना-गुरिया, वर्तन- ओरतन, गाड़ी-घोड़ा किनला के होड़ त दूसरी ओर भगवान धन्वंतरि के अराधना- जीवेम शरदं शतम् के अपेक्षा। प्रकाश पर्व पर दीया बारि के घर के कोने-अंतरा से भी अंधकार भगा दिहल गइल। जग प्रकाशित भइल। मन के भीतर झांक के देखला के जरूरत बा, केतना अंजोर बा? ये अंजोर से पास- पड़ोस, गांव-जवार, देश-काल में केतना अंजोर बिखेरल गइल? दलिद्दर खेदला के परंपरा निभावल गइल। घर की कोना-कोना में सूपा बजाके दलिद्दर भगावल गइल लेकिन मन में बइठल दलिद्दर भागल? दुनिया की पाप-पुन्य के लेखा-जोखा राखे वाला चित्रगुप्त महराज पूजल गइलें। बहुत सहेज के रखल गइल दुर्लभ कलम-दावात के दर्शन से मन प्रसन्न हो गइल। अपनी कर्म के लेखा-जोखा जे ना राखल ओकरी पूजा से चित्रगुप्त महराज केतना प्रसन्न होइहन? मोहर्रम पर तलवार, बल्लम, बंदूक, लाठी-डंडा जुलूस में हर साल देखल गइल। इ जुलूस के शोभा ह। इ हथियार केहू की रक्षा खातिर केतना बार निकरल? येहू पर विचार करे के चाहीं। छठ माई के घाट अगर साल के तीन सौ पैंसठों दिन एतने स्वच्छ रहित त केतना सुन्नर रहित। पर्व-त्योहार के जड़ हमरी संस्कृति में बहुत गहिर ले समाइल बा। ओके और मजबूत बनावला के जरूरत बा। संकल्प लिहला के जरूरत बा की फिजुलखर्ची में कटौती क के ओह धन से कवनो जरूरतमंद के सहयोग क दिहल जा। अइसन हो जाय त त्योहारन के सार्थकता और बढ़ जात। खूब खुशी मनावल जा, लेकिन केहू के दुख ना पहुंचे येह पर ध्यान दिहला के जरूरत बा। येह कविता की साथे सबके प्रति शुभकामना, सबको मुबारक।
 दीया बराइल, लक्ष्मी अइली।
 सूपा बाजल, दलिद्दर भागल।
 भैयादूज के गोधन कूटइलें, 
 रड़ूहन के तिलकहरू अइलें।
 मोहर्रम के तासा बाजी ,
 इमाम चौक पर मेला लागी।
 छठ मइया के अघ्र्य दियाई, 
सब्जी आ फल खूब किनाई।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यन्ग्य राष्‍ट्रीय सहारा के 7/11/13 के अंक मे प्रकाशित है .

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