सोमवार, 1 नवंबर 2021

1 नवम्बर21 के वायश ऑफ शताब्दी की अंक में

नगर-डगर की बात/ एन डी देहाती

गोधन बाबा कूटल जइहें, रडुहन के तिलहरू अइहें

इ हफ्ता, तिहुयार के बहार रही। कातिक की अमौसा के घर -घर दीया बराई। लक्ष्मी जी के गोहरावल जाई। ओल के चोखा खाईल जाई। दूसरा दिन दलिद्दर खेदाई। सूपा बाजी। अगिला दिने गोधन बाबा कूटल जइहैं। रडुहन के लगन खुल जाई। बियाह कटवन के भी बहार आ जाई। गोधन के कुटला की बाद उनकी खानल-कूटल गोबर से पीडिया लागी। दुनिया से विदा भईल कलम-दवात खोजाई, चित्रगुप्त महाराज पूजल जइहैं। छठ माई पूजइहें। सालों-साल जवना जगह पर गंदगी भरल रहे, ओहूजा माई-बहिन लोग के आस्था के अर्घ्य से,अगरबत्ती की धुंआ से वातावरण पवित्र हो जाई। 
मनबोध मास्टर कहलन-लोक परम्परा में छठ ही एगो अईसन पर्व ह जवना में साक्षात देवता सूर्य के डुबलो पर पूजा आ बिहाने उगलो पर पूजा। चौहत्तर साल से
घर -घर सूपा त बाजल । का मन के दलिद्दर भागल? ईआ, बड़की माई, काकी, भौजी, बहुरिया और न जाने के के असो भी सूप बजइहैं। सबकर बस एकही इच्छा,दलिद्दर भाग जा। मतलब साफ बा बगैर शोर के कुछ न भागी। सीमा से दुश्मन। देश से गद्दार। गरीबी, कदाचार। सब भगावे खातिर सूप बजावे वाली परम्परा। शोर। आजादी से लेके अबतक खूब भोपू बाजल। हकीकत आप की सामने बा। केतना दलिद्दर भागल। भागे न भागे हमार काम भगावल ह। सबके जगावल ह। 
 धनतेरस की दिने से ही त्योहार के उत्साह शुरू । त्योहार हम्मन के संस्कृति ह। केतना सहेज के राखल बा। धनतेरस के एक ओर गहना-गुरिया, बर्तन- ओरतन, गाड़ी-घोड़ा किनला के होड़ त दूसरी ओर भगवान धन्वंतरि के अराधना- जीवेम शरदं शतम् के अपेक्षा। प्रकाश पर्व पर दीया बारि के घर के कोने-अंतरा से भी अंधकार भगा दिहल गइल। जग प्रकाशित भइल। मन के भीतर झांक के देखला के जरूरत बा, केतना अंजोर बा? ये अंजोर से पास- पड़ोस, गांव-जवार, देश-काल में केतना अंजोर बिखेरल गइल? दलिद्दर खेदला के परंपरा निभावल गइल। घर की कोना-कोना में सूपा बजाके दलिद्दर भगावल गइल लेकिन मन में बइठल दलिद्दर भागल? दुनिया की पाप-पुन्य के लेखा-जोखा राखे वाला चित्रगुप्त महराज पूजल गइलें। बहुत सहेज के रखल गइल दुर्लभ कलम-दावात के दर्शन से मन प्रसन्न हो गइल। अपनी कर्म के लेखा-जोखा जे ना राखल ओकरी पूजा से चित्रगुप्त महराज केतना प्रसन्न होइहन?  छठ माई के घाट अगर साल के तीन सौ पैंसठों दिन एतने स्वच्छ रहित त केतना सुन्नर रहित। पर्व-त्योहार के जड़ हमरी संस्कृति में बहुत गहिर ले समाइल बा। ओके और मजबूत बनावला के जरूरत बा। संकल्प लिहला के जरूरत बा की फिजुलखर्ची में कटौती क के ओह धन से कवनो जरूरतमंद के सहयोग क दिहल जा। अइसन हो जाय त त्योहारन के सार्थकता और बढ़ जात। खूब खुशी मनावल जा, लेकिन केहू के दुख ना पहुंचे येह पर ध्यान दिहला के जरूरत बा। खूब सूप बाजो। अब मौसम आवत बा, साढ़े साल से लुकाईल जीव बाहर निकरल हवें। विकास के बाजा बजावत जब रउरी गाँव-नगर में लउके त जे बढ़िया काम कईलें होई ओकर स्वागत करीं। जे खराब कईलें उनकी कपार पर सूपा बजा दीं।
 
गोधन बाबा कूटल जइहें, रडुहन के तिलहरू अइहें।
केतनो महंगी मरले बाटे, फिर भी लक्ष्मी पूजल जइहें।।
तरह-तरह के फल किनाई, घाट-घाट प्रसाद बटाई।
भुजा मिलौनी के परम्परा से, ऊंच-नीच के खाई पटइहें।।

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