रविवार, 23 नवंबर 2025
23 नवंबर 25 के अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य
लोकतंत्र में नाम आधारा बंजर भईल जवन रहे मजारा मनबोध मास्टर पूछलें - बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें-हाल त बेहाल बा। बड़ा बवाल बा। हर जगह आधार! आधार!! आधार!!! पैन कार्ड से आधार जोड़ल गईल। राशन कार्ड से आधार जोड़ल गईल। बैंक अकाउंट से आधार, स्कूल की परीक्षा से आधार, गैस सिलेंडर से आधार, मोबाइल नंबर से आधार, गाड़ी घोड़ा खरीदला पर आधार। जमीन जायदाय की खरीद बिक्री पर आधार। हर योजना में आधार। अब वोटर लिस्ट में आधार। आधार ही अब लोकतंत्र के आधार बनी। कवना आधार पर कहल जा कि सब सही हो जाई। एगो सवाल बा-जब सब कुछ आधार से जुड़ल बा त कईसे आयकर दाता लोग भी कोटा से मुफ्त के राशन लेता? नौकरी, कोठी, कार वाला लोग भी अपनी देश में मुफ्त राशन योजना के लाभ उठावत बा। इ सब देखते भी सरकार मौनी बाबा बनल बा। सब कुछ आधार से जोड़ला की बाद भी अपनी प्रदेश में लगभग दस लाख घुसपैठिया बाड़न। इ घुसपैठिया सरकारी राशन उठावत बाड़न, वोट भी देत बाड़न। जायज नाजायज काम कर के सामाजिक संरचना पर भी समय समय पर वार करत हवें। यूपी में सात साल से सरकार घुसपैठियन के हटावत बा, लेकिन घुसपैठिया हटते ना बाड़न। कारण इ बा कि उनके केहू न केहू स्थानीय नेता लोग संरक्षण देले बाड़न। हमरी येह बात के पक्का आधार इ बा कि सरकार के ही जाँच में लखनऊ राजधानी में ही एक लाख बंगला देशीन के रहला के प्रमाण मिलल। फिर पता न कवन गुल खिलल की मामिला ठंडा बस्ता में धरा गईल। अब सरकार फिर जागलि बा। अब हर जिला में अस्थायी डिटेन्शन सेंटर बनी। घुसपैठिया धरल जईहें। वोही सेंटर में रखल जइहन। ओकरा बाद जे जवना देश से आईल बाड़न ओही देश की सीमा पर छोड़ल जइहन। सरकार से एगो सवाल बा- जवन फर्जी आधार बनवा लेले हवें, ओही आधार की नाम पर जमीन लिखवा लेले बाड़न। मकान बनवा लेले बाड़न। बिजली कनेक्शन लगवा लेले बाड़न। छोट मोट मारपीट क के ओही पता पर थाना में केस दर्ज बा। ओही पता पर कोर्ट कचहरी में मुकदमा चलत बा। उनहन के भी ओईसे घेरला के जरूरत बा जईसे देवरिया ओवर ब्रिज की नीचे बनल मजार के जमीन अब अपनी मूल स्वरूप बंजर में दर्ज हो गईल। फेरू मिलब अगिला हफ्ते, पढ़ल करीं रफ्ते रफ्ते...
रविवार, 16 नवंबर 2025
16 नवंबर 25 के अंक में प्रकाशित
जनता गोबर- ढेला फेकलसि, उहो जितल चुनाव
मनबोध मास्टर पूछलें - बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- खेला भईल, खेला अबे आगे भी होई। हजार -पंद्रह सौ में आदमी बदल जाला, पैसा की बल पर प्रधानी के चुनाव बदल जाला। बिहार में चुनाव की येन समय पर माई -बोहिन लोग की खाता में दस दस हजार आ गईल। विचार बदल गईल, बिहार जीत गईल। पहिले अस्सी लाख वोट कटा गईल। चुनाव प्रक्रिया में ही तीन लाख वोट बढ़ गईल। इ जनता ह, कब गोबर ढेला-फ़ेंकी, कब जिता देई इ लीला दईब भी ना जनलें। बिहार चुनाव की प्रचार में विजय सिन्हा चहेटल गइलें, गोबर-ढेला फेंकाईल लेकिन जब वोट गिनाईल त जय जयकार। जवन प्रशांत किशोर दूसरा के जितवला के ठेका ले ले के रणनीति बनावत रहलें, अपने रणनीति में फेल हो गईलें। पी के की हरला से पियक्कड़ दुखित हवें काहें की उ दारू पर रोक हटवावे के कहले रहलें। पीके की हरला पर सबसे ज्यादा खुश शराब तस्करी की व्यवसाय में लागल लोग बा। धंधा अब मंदा ना रही।
राघोपुर आ रघुनाथपुर पर रामभक्तन के दाल ना गलल। राघव आ रघु के नाम भी काम ना आईल। दुनों सीट हरावे खातिर बड़े-बड़े लोग के भाषण भईल, पवित्र नाम की जगह पर अपबीत्तर लोग ना जीत पावें एकरा खातिर एड़ी चोटी के दम लागल। लेकिन दुनों प्रत्याशी दमदार निकललन। कई बड़े लोगन की असर के बेअसर कर के दुनों जगह "लड़ाकू लड़िका" जीत गईलें। अलीनगर में बजे लागल - राम आएंगे आएंगे राम आएंगे...। भजन भाव भक्ति में कच्ची उम्र के बच्ची के जीत हो गईल। मैथिली ठाकुर नाम के दूबर -पातर गायिका के विधायक बनल देख के नेहा का बुझा गईल होई कि बिहार में का बा? छपरा में "लौंडा नाच" ना चलल। सिलवट पर लोढ़ा से जवानी कूँचत खेसारी लाल राजनीति की मच्छरदानी में मजा ना ले पवलें।
नितीश जी के गठबंधन जीत गईल। सवाल इ बा कि का दसवीं बार चचा मुख्यमंत्री पद के शपथ लीहें कि अबकी गच्चा खा जइहन। अब येही बात पर माथा पच्ची चलत बा।
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रविवार, 2 नवंबर 2025
2 नवंबर 2025 के स्वाभिमान जागरण के अंक में प्रकाशित भोजपुरी व्यंग्य
पकड़उवा बिआह कनपटिया ले सेनुर
मनबोध मास्टर पूछलें-बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल का बताईं, बड़ा सुनत रहलीं - आईये हमरी बिहार मा। बात बहुत पुरान ह,चल गईलीं बिहार में । बिहार की पटना, नवादा, बेगूसराय, मोकामा, पंडारख, बाढ़ जेइसन इलाका में। इ सब क्षेत्र पकड़उवा बिआह खातिर चर्चित रहे। पकड़उवा बिआह मने, अपहरण क के बगैर दान दहेज के जबरिया विवाह। जे सुघर- साघर, कमात-खात, नौकरी-पेशा वाला नवहा मिलत रहे उनके जबरिया रोक के विवाह करावल जात रहे। विरोध पर पिटाई। ऊपर से दलील-पीठ पूजत हईं, पाँव बाद में पूजा जाई। सचमुच जंगल राज रहे।
राज बदलल, ताज़ बदलल, कुछ -कुछ काज बदल गईल। सुशासन आईल। शराब बंद भईल। सरकार के इनकम भले कम भईल। लोग के रोजगार मिलल, तस्करी के कार मिलल। सौ रुपया के पउवा तीन सौ मिले लागल। सुशासन में कहीं सरकारी देसी विदेशी शराब के दुकान ना रहे लेकिन होम डिलेवरी जारी रहे। बस एक फोन पर मॉल हाजिर। जंगलराज की बाद सुशासन में कुछ विकास भइल। लेकिन अपराध कम ना भइल। बिहार विधान सभा चुनाव चलत बा। तरह तरह के बोल के ढ़ोल पिटल जाता। चुनाव आयोग की समनवे सब होता, ओकरा हिम्मत ना बा कुछ शेषन जैइसन क दे। शेषन माने टी एन शेषन। चुनावे की दौरान मेहरारू लोग की खाता में दस-दस हजार आ गईल। प्रत्याशी लोग बगैर परमिशन के चालीस -पचास गो गाड़ी लेके प्रचार करत बा। केहू के नचनिया बोलल जाता,आ ओकरा के दबावे खातिर चार चार गो नचनिया दूसरा प्रांत से बोलवावल जाता। बिहार विधान सभा चुनाव में बहुत अपराधी लोग भी उतरल हवें, जिनकी समाजसेवा आ सेवा भाव से प्रसन्न होके मीडिया बाहुबली नाम से महिमा मंडित करता। तरह तरह के ज्ञानी प्रत्याशी। एक जने पत्रकार एगो प्रत्याशी से पूछलें कि राउर पार्टी केतना सीट पर जितत बा। उ बोलले 250 सीट पर। पत्रकार आपन माईक वाईक लेके भागल, दादा हो बिहार में 243 गो सीट बा इ ढ़ाई सौ पर जितता।
जेईसे मौसम देख के धुकधुकी बढ़ल बा। गर्मी जाते नईखे आ जाड़ा आवते नईखे, बीचे में बरखा ढुकल बा। ओइसे बिहार की चुनाव में जंगल राज आ सुशासन की बीच में जन सुराज कूदल बा।
जवन आदमी बारी-बारी से कबो मोदी, कबो केजरीवाल , कबो नीतीश कबो ममता कबो चंद्रबाबू खातिर पैसा पर काम करत रहे आज पूरा बिहार अपना खातिर धांगत बा। सबसे ज्यादा यूट्यूबरन के चोंगा उनही की मुंह की आगे रहत बा। आगे देखल जाई, कुछ बदलाव होई की फेरु बैतलवा ओही डाल जा के बैठ जाई।
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रविवार, 19 अक्टूबर 2025
19 अक्टूबर 25 के अंक में प्रकाशित
मनबोध मास्टर पूछलें-बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- बिहार में चुनाव चलत बा। सब व्यस्त बा। नायक हो, खलनायक हो,गायक चाहे अभिनेता। सब बनल चाहत नेता। समाज सेवा तब्बे बढ़िया होई ज़ब विधायकी के कुर्सी मिल जाई। सज्जो दलवा में कुर्सी खोर बाड़न। येह बेर बिहार के बदल दिहला में लोग लागल बा। चोर लड़ीहन, छिछोर लड़ीहन। बिहार के लंदन बनाके मनीहें। जुटान जारी बा। लगता नेतन के महाकुम्भ लागल बा। <br>चुनाव प्रत्याशी के का करे के बा, असली परीक्षा त वोटर भाई लोग के बा। उनका साबित करे के चाहीं कि एक बिहारी सब पर भारी। लेकिन उ त अझुराईल बाड़न लोकप्रियता की जाल में। सजो राजनीतक दल भी लोकप्रिय प्रत्याशी खोजत बा। एगो प्रत्याशी अपनी लोकप्रियता बढ़वला की चक्कर में भैस पर बैठ के नामांकन करे गईलन। अब उ जमाना लद गईल की कार्यकर्ता के टिकट मिल जाई, इ समस्या कवनो एक दल में ना, सजो में समाईल बा। <br>कइसन- कइसन प्रत्याशी उतरत हहवें, आज जेल होई, काल्ह बेल होई परसो से उहे खेल होई, इहो गाना गावे वाला लड़ीहन। नरसंहार के आरोपी, बालू-शराब माफिया? फैसला बिहार की जनता के करे के बा। <br>दाँव लगा के नेता टुकर टुकर ताकत बाड़े, धयलसी कीकोरा, पाकी कहिओ आम, मिली त मिली ना त जय श्रीराम। टिकट चाहीं त कवनो पार्टी के झंडा ढोवला के कवन जरूरत बा। राजनीति में आवेके बा त बढ़िया गायक बनअ, बढ़िया खलनायक बनअ, बढ़िया नचनिया बनअ, बढ़िया जोकर बनअ, बढ़िया पलटीमार बनअ , बढ़िया रंग बाज बनअ और भी सब कुछ बढ़िया बढ़िया...। पार्टी बोला के टिकट दे दिहे। चुनावी मंच से सुन आपन मन पसंद तराना - "मन करे सिलवट पर लोढ़ा से कुंच दी जवानी रजऊ..."। बिहार में येह चुनाव में कलाकारन के बहार बा। <br>यूपी में कलाकार से "सरकार" बनल कई माननीय लोग भी बिहार में प्रचार में गईल बा। केहू, लहंगा उठा देईब रिमोट से..। केहू, बगल वाली जान मारेली..। केहू, सटल रहे...। जेईसन गाना गाके लोकप्रिय होके सांसद हो गईल त बिहार काहे पीछे रही। बिहारी लोग भी ओठलाली से रोटी बोर के खाई.., लवनडिया लंदन से लाई...। रात भर डीजे बजाई। चुनाव मुद्दाविहीन बा।भाड़ में जा गरीबी, स्वाशथ्य, शिक्षा, बेरोजगारी, पलायन आ विकास के मसला। बस लोकप्रियता के जलवा, चाहे कवनो क्षेत्र में होखे। <br>फेरु मिलब अगिला हफ्ते, पढल करिन रफ्ते रफ्ते...<br>✍️एन डी देहाती
रविवार, 12 अक्टूबर 2025
12 अक्टूबर 2025 भोजपुरी व्यंग्य
इ कवन खेला बा , समझीं बड़ा झमेला बा
मनबोध मास्टर पुछलें- बाबा! का हाल बा? बाबा बतवलें- हाल त बेहाल बा। सब माया के कमाल बा। लखनऊ में रैली भईल। रैली की रेला में राजनीति के खेला भईल। भीम बाबा की जयकार की साथे साथ बाबा के भी जयकार भइल। जयकारा बेहतर व्यवस्था खातिर रहल। रउरा जानते हईं यूपी में जीरो टालरेंस की नीति पर काम चलत बा। जेकरा पर भ्रष्टाचार के ममिला होखे ओकरा दुआरी कब बुलडोजर घमक जाई, इहो बात बा। तानिसा जयकारा क दिहले जान बचल रहे त का लागत बा। साँच बात इ बा की जे माया के बा उ माया के ही रही। केतनो अनुदान, राशन, भासन, अगराशन दिआइल लेकिन भीम बाबा के माने वाला ना लुभइले, एक ही पानी पर रहि गईलन।
राजनीति के खेला रजनीतिहा लोग जानी, एईजा
आम आदमी की झुराइल जिनगी की रेगिस्तान में कब हरियर लउकी। उषाकाल से अपरान्ह काल तक पंडिताइन के एक ही रट- ए जी! सुनत हई। संवकेरे घरे आ जाइब, आज करवा चौथ ह। चलनी में चांद निहारे के बा। राउर आरती उतारेके बा। बाबा सोचे लगलें- अगर इ व्रत ना रहित, त पंडिताइन सीधे मुंह बात भी ना करती। घरकच की करकच में रोज-रोज घटल नून-तेल-मरिचाई के चिंता से से परेशान मनई ऊपर से मिलावट के बाजार। जब जब कवनो त्योहार आवेला त खाद्य विभाग वाला जागेलन। गरीब आदमी का भला ये महंगी में पनीर कहां भेटाई, लेकिन देवरिया में तीन कुंतल पनीर खंता खोनि के माटी में मेरा दिहल गईल। पता चलल चालानी रहल। चालानी माने मिलावटी, अब बुझाईल। सरकार कहत बा, स्वदेशी अपनाई। त गाय भैस पालीं, खांटी दूध के पनीर खाईं।
फेरु मिलब अगिला हफ्ते, पढ़ल करीं, रफ़्ते-रफ़्ते...
✍️ एन डी देहाती
रविवार, 21 सितंबर 2025
रविवार, 14 सितंबर 2025
मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025
कुंभ में झरत अमृत : भोजपुरी व्यंग्य
कुंभ में अमृत झरत बा, त लोग काहें मरत बा
पांडे एन डी देहाती/भोजपुरी व्यंग्य
मनबोध मास्टर पूछले, बाबा! का हाल बा? बाबा बोलले - हाल त बेहाल बा। झूठ के बाजत गाल बा। सत्ता दल आ विपक्ष के आपन आपन झाल बा ,आपन आपन करताल बा। कुंभ में अमृत झरत बा। फिर भी लोग मरत बा। कुंभ त कुंभ ह,समुद्र मंथन से निकले वाला कुंभ। क्षीरसागर के देव-दानव की साझा मंथन से निकरल कुंभ। धंवंतरीरूपधारी भगवान विष्णु की हाथ में शोभायमान कुंभ। बहुत महिमा ह कुंभ के। कुंभ की येही महिमा की बीच प्रयाग में 2025 के कुंभ बहुत कुछ छोड़ जाई, सोचे, विचारे आ बतकही खातिर। कुंभ में साधु, संन्यासी, नागा, संत, महंत, नेता, सरकार सब बा। भीड़ भी आ भगदड़ भी। धर्म भी आडंबर भी। अध्यात्म भी, आस्था भी। मन चंगा त कठवति में गंगा। तरह तरह के बाबा लोग बा। कुछ सरकारी मलाई चाप के सरकार के गुणगान वाला बाबा, त कुछ सरकार के गरिया के टीआरपी बढ़ावे वाला बाबा। मीडिया भी दु प्रकार के बा। एगो सांच दिखावेवाला आ दूसर झूठ फ़ैलावे वाला। कुंभ की अमृत खातिर राहु आपन शीश कटा दिहले रहे, लोग अमृत में नहइला खातिर भीड़ आ भगदड़ में कचरा के मर गईल। अफसर लोग पाप छिपावला में लाग गईलन। लेकिन सोशल मीडिया के जमाना में सांच बहिरा के बाहर हो गइल। एगो बाबा बोलत जे संगम पर मर गइल ओके मोक्ष मिल गइल। दुसर बाबा बोलत हवें, तूहूं आवा तोहके कचार के , मार के मोक्ष दे दिहल जा। उम्मीद से अधिक आस्था में उमड़ल भीड़, कंट्रोल से बाहर रहल। सरकारी व्यवस्था वीआईवी की खातिरदारी में लागल रहे। आम आदमी साँसत में हाफ़त रहल। बाबा लोगन के चमत्कार असमय काल की गाल में समाइल श्रद्धालु के जान ना बचा पवलें। केहू के तंत्र, मंत्र, यंत्र काम कर देले रहत त उनकर जयकार जोर से करतीं। देश में अमृतकाल चलत बा। लोग के ध्यान हमेशा भटकावल गइल। करोना में लोग मरत रहे, लोग अकाल मौत का शिकार बनत रहे त हम्मन ताली आ थाली बजावत रहलीं। आज गाल बजावत हइन। जिम्मेदारी तय ना क पावत हइं । दोष के के दिहल जा।
बदतर बंदोबस्त के भी कुछ लोग राजनीतिक चश्मा से बेहतर देखत रहे। ज्यादातर पालतू आ फालतू दुनो मीडिया कुंभ में लोग के दुर्दशा देखवला की जगह अबकी कुंभ में आइल चार रत्न (मोनालिसा,आई आई टी एन बाबा, हर्षा छावरिया, ममता कुलकर्णी) पर ही आपन फोकस कईले। कुंभ में संगम की रेती पर सनातन के वैभव बिखेरत आस्था के जनसमुद्र के दर्शन से पुण्य बटोरत, मोक्ष पवले लोग की प्रति आपन श्रद्धा प्रस्तुत करत बस इहे कहब -
कुंभ में अमृत झरत रहे, नहइला खातिर लोग मरत रहे।
जे मरल मोक्ष पा गइल, परिजन की आंख से आंसू ढरत रहे।।
एतवत बड़वर भीड़ के संभालल, आसान ना रहल। व्यवस्था में लागल लोग इंसान रहल, भगवान ना रहल।।
ॐ शांति
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