कातिक चढ़ल बा। बावग खातिर धरतीपुत्र लोग परेशान बा। धरती माई कs कोरव भरी, तबे देश में लउकी हरीयरी। हरीयरी खातिर उत्तम प्रजाति के बीया आ असली उर्वरक जरुरी बा। दुर्भाग्य इ बा कि दूनो के अकाल हो गइल बा। किसान भाई लोग रात-रात भर जाग के बारी आवत बा तs लाठी गिरत बा। समूचा पूर्वाचल में इहे हाल बा। प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री, जेकरा खेती से कवनो वास्ता नेइखे एसी कमरा में बइठ के रोज बयान देत हवें कि खाद-बीज के कवनो कमी हा बा। अरे मंत्री जी! इ तs उ हाल बा ‘घर में भुजी भांग ना, कोठा पपर त घम्मगूज्जर।‘ एगो सवाल बा- अनाज पैदा करे वाला किसान भगवान के लाठी से पूजा करावे के अधिकार के देले बा? पुलिस कहति बा- किसान कानून व्यवस्था बिगाड़त हवें तs लठिआवल जरुरी बा। अरे भाई! जब अभाव रही तs लोग के स्वभाव बदल जाई। पर्याप्त मात्रा में खाद-बीज रहित तs काहें लोग हगांमा करित। किसान तs वइसे ही गांव-गिरावं के सीधा-सपाट मनई होलन। किसानन के लोग बउक कहेला। कुछ लोग बोकवा कहेलन जवना परिवार खेती-बारी में अझुराइल बा उ बेकवे बा। सूखा, बाढ़, बेमारी, आग-पानी से फसल के बचावत में एड़ी के पसीना कपारे चढ़ावे के परेला। जोताई, बोआई, निराई, पटवन, कटिया, दवंरी की बाद किसान भगवान अन्न के दाना पैदा करेलन। जेकर कातिक के समहुले लाठी खइला से होई उ आगे का करी। सदा चुप्प रहे वाला बोकवा बोलता, संघर्ष करत बा, मांग करत बा, हमके खाद-बीया चाहीं। लेकिन सरकार ‘पाठी’ अइसन चुप्प मारी के पगुरी करति बा। चारो ओर हाहाकार बा। ‘कमाई धोती वालास, खाई टोपी वाला, के संस्कृति बदले के परी। हेलीकाप्टर से धरती के हरियाली निहारे वाला खद्दरधारी लोग के भगवान सदबुद्धि दें। किसान पर लाठी चलवा के जुबान बन्द करावल जा सकेला लेकिन आह निकरी तs परी।
एन डी देहाती
जोताई, बोआई, निराई, पटवन, कटिया, दवंरी की बाद किसान भगवान अन्न के दाना पैदा करेलन।
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