अइसे ही जब कोख मराई, रंडुहा रहि जइहे कई भाई
प्रकृति की व्यवस्था में जीवन के गाड़ी
खातिर दु पहिया जरूरी बतावल गईल। समाज के लोग संतति बढ़ावला में सावधानी ना
बरती त सामाजिक संरचना गड़बड़ा जाई। जेतने लक्ष्का ओतने लक्ष्की रही त
सामाजिक ताना-बाना बनल रही। देश में चल रहल सरकारी गैर सरकारी आंकड़ा आ
गणना गवाह बा, सामाजिक संरचना के गाड़ी गड़बड़ाति बा। कारन इ बा कि लगभग हर
शहर में ‘कोखमरवन’के दुकान खुल गइल बा। दूसरका भगवान कहायेवाला लोग सेवा
की पवित्र पेशा की जगह पर कोख जंचला के दुकान चलावला के लाइसेंस ले लिहलन।
कोख जांचे लगलन, कोख मारे लगलन। कोख जंचवा के कन्या लोग के धरती पर पैदा
भइला की पहिले ही सरगे भेजवावे वाला माई-बहिन लोग भी कम दोषी ना बा।
बर-बेमारी के बाति छोड़ दिहल जा , त कवन जरूरी बा कोख जंचववला के। कुछ
प्रकृति पर कुछ भगवान पर भी भरोसा राखल जा सकेला। एगो सव्रे में खुलासा भइल
कि देश की राजधानी दिल्ली में बबुनी लोग के संख्या प्रति हजार बबुआ लोग पर
886 पहुंच गइल बा। अब बताई 134 बाबू लोग का भांवर घुमे खातिर कवनो दुलहिन
ना मिली त रंडुहे न रहिहें। सुने में त इहो आवत बा कि हरियाणा प्रांत में
लक्ष्की खरीद के आवति हई सन्। हीरो आमिर खान के एगो टीवी कार्यक्रम में
देखलीं कि उ बतावत रहलें कि सबसे ज्यादा भ्रूण हत्या गरीब आ अनपढ़ लोग
करावेलन। हम उनकी येह बात के ‘झूठमेव जयते’ बतावत हई। रउरो अपनी
आस-पास नजर दौड़ाइब त इहे पाइब कि जे सभ्य बा, शिक्षित बा, संपन्न बा उहे
ज्यादा कोख जंचवावत बा, कोखमरवावत बा। जवन महतारी लोग कोख में बेटी के
हत्या करावत हई बुढ़ौती में उनकर बड़ा गंजन होई। जब बेटा-पतोहि सेवा-टहल ना
करिहन त बेटी के अभाव बहुते खली। हम दावा की साथे कहत हई, रउरो अपनी
आसे-पासे देखि लेइब बुढ़ौती में माई- बाप के जेतना सेवा बिअहल-दानल बेटी
अपनी ससुरा से आके क दीहें ओतना उनकर उत्तराधिकारी होखे वाला, सजो संपति
लेबे वाला बेटा-पतोहू ना करिहन। एही से हम कहत हई कि कोख में बेटी के जनि
मुअवाई, सामाजिक ताना-बाना के बनल रहे दीं। अब सुनीं कविताई-
अइसे ही जब
कोख मराई।
रंडुहा रहि जइहन कई भाई।।
पढ़ल लिखल लोग हत्यारा।
सभ्य समाज में
बहल इ धारा।।
कइसे चली जीवन के गाड़ी।
पूछ रहल बा एक अनाड़ी।।
बनल रहे दीं
ताना-बाना।
कन्या भ्रूण हत्या न करवाना।।
--नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 31 मई 12 के अंक में प्रकाशित है
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