नगर-डगर की बात/एन डी देहाती
मन के रावन ना मरी, त का करिहै प्रभु राम
मनबोध मास्टर का चिंता बा धरम की बदलत रूप पर।पर्व-त्योहार की बदलत स्वरूप पर। दशहरा की दिन प्रभु राम निशाचर के वध कईले रहलें। उ त्रेता युग रहे। आज कपार पर कलिकाल चढ़ल बा। दशहरा के शाब्दिक अर्थ अब दश (रावण) हरा ( हरा-भरा) भी हो गइल बा। लोग जवले अपनी मन मे समाईल रावण के वध ना करी, तबले देश के दशा आ दिशा ना बदली। चारों ओर देखीं- सत्य सकुचात बा। झूठ मोटात बा। नैतिकता के पर्व के रूप में, न्याय की स्थापना की रूप में, अन्याय पर न्याय के जीत की रूप में, नास्तिकता पर आस्तिकता के विजय की रूप में दशहरा मनावला के परंपरा शुरू भइल। येही दिन त रावण के वध भइल रहे। युगन से रावण दहन होत आवता, लेकिन रावण जिंदा बा। देखला के दृष्टि चाहीं। दूसरे की दिल में ना अपने मन में झांक के देखीं। मन में रावण बैठल बा। मन के रावण मरला बगैर कागज-पटाखा की रावण के पुतला फूंकले ना शांति मिली ना संतुष्टि। प्रवृति आसुरी हो गइल बा। एगो सीता मइया की हरण में रावण साधु वेष बनवलसि। रावण त सीता मइया के खाली हरण कइलसि , आज हरण की तुरंत बाद वरण आ ना मनला पर मरण तक पहुंचवला के स्थिति बा। रामजी की नाम पर कथा, प्रवचन, भजन, राजनीति करे वालन के नजर दौड़ाई। महल -अटारी,मोटर-गाड़ी, बैंक -बैलेंस, चेला- चपाटी के लाइन लागल बा। रावण के एगो रूप नवरात्र के आखिरी दिन देखे के मिलल जब कन्या भोज खातिर मनबोध मास्टर घर-घर लड़की तलाशत रहलें। कई घर छनला की बाद बहुत मुश्किल से 21 कन्या मिलली। दरअसल लोगन की मन मे समाईल रावण की प्रभाव से एतना कन्या भ्रूण हत्या भइल की लड़की लोग के संख्या ही कम हो गइल। एकरा पीछे के कारण तलाशीं त साफ हो जाई की रावण के दुसरका रूप दहेज की आतंक से कन्या भ्रूण हत्या के संख्या बढ़त बा। आई असों की रामलीला में रावण दहन की पावन बेला में सौगंध खाइल जा की मन के रावण मार दिहल जाई। दहेज दानव के भगावल जाई। कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगावल जाई। अगर अइसन ना कइल जाई त रामजी रावण के वध ना क पइहन। आज इ कविता बा-
मन के रावन ना मरी, त का करिहै प्रभु राम।
पूजा-पाठ , प्रदर्शन हो गईल, आस्था के काम तमाम।।
भजन भूल के गन्दा गाना, बजे सुबह आ शाम।
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