गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

सपा काला दिवस को भूली , शौर्य दिवस भाजपाई ....



मनबोध मास्टर भिनही-भिनही फटाफट अखबार के पन्ना पलटत रहलें। कहीं कुछऊ ना लउकल। ताजिया दफन आ बाबा साहेब के परिनिर्वाण दिवस , कपिल के कूटिनीतक बयान आ कुछ अवर छोट-बड़ खबर। सात दिसंबर की अखबार में सन 93 से पिछला साल ले कहीं शौर्य दिवस त कहीं काला दिवस के खबर। येही खबरन से लोकल छपसुअन के फोटू-ओटू लउक जात रहे। असों सात दिसंबर के अस करेड़ कुहासा पड़ल की इ दुनो के समर्थक भी किकुरले रहि गइलें। लगल कि दुनो की दुकानदारी मंदी की मार से घाही हो गइल बा। होखहु के चाहीं, आखिरकार कहिया ले धरम-करम की नाम पर नफरत बोअल जाई। दरअसल जेकरा पक्ष में काला दिवस मनावल जात रहे उ सजो लोग असों मोहर्रम के मातम मनावला में लागल रहे, आ शौर्य दिवस वालन के चेहरा लोग पहिचाने लिहल। झगराहे घर सही रामजी आराम से ओहमा विराजमान रहलें। इ बहादुर लोग अइसन शौर्य देखावल की सब ढहा दिहल आ अब रामजी प्लास्टिक की नीचे शीत- घाम-बरसात सहत हवें। बिना मतलब जरला पर नमक कबले छिरकाई। मास्टर के ’पर-वचन‘ सुनते मस्टराइन कउड़ा की लहास अइसन धधक गइलीं। बोलली िबहाने से राजनीति की चर्चा में दुपहरिया हो गइल, ना खइहें ना खाये दिहें। मास्टर कहलें - हम कहां तोहका रोकलें हईं, झुठों न सती होत हऊ। खा खींच के। के ना खात बा। बहुत जाने का खइला से देहिं पर चर्बी चढ़ जाता त खात-खात रोगी बनि के दवाई खात हवें। अफसर-मंत्री रिश्वत खात हवें। जब फंसत हवें त जेल के हवा खात हवें। ठेकेदार-इंजीनियर कमीशन खात हवें। संत-महंत, पंडा- पुजारी धरम की नाम पर मंदिर के चढ़ावा आ ठाकुर जी पर चढ़ावल प्रसाद खात हवें। सूदखोर व्यापारी व्याज खात हवें। कोटेदार-प्रधान-प्रधानाध्यापक मिल के लइकन के मिडडेमील खात हवें। छेड़खानी करे वाला छछुनर चौराहा पर चप्पल खात हवें। बेइमान कोर्ट-कचहरी में कसम खात हवें। बेरोजगार लोग नौकरी खातिर आ यात्री लोग रेल-बस में यात्रा खातिर धक्का खात हवें। कुर्सी की चाह में युवराज, नेताजी के पुत्तर आ स्वाभिमानी जी गांव गली चौराहा पर रथ से चक्कर खात हवें। वोटर नोट खात हवे आ नेता वोट खात हवें। येही व्यवस्था में सब चलत बा। खइला-खियावला के बात छोड़ù आज की दशा पर हमार कविता सुनù-
मन मैला उजला बसन, भासन लच्छेदार। 
शौर्य दिवस काला दिवस, दोऊ को धिक्कार।। 
प्रजातंत्र के पेड़ पर , यह गिद्धों का बोल।
मरे-कटे जनता भले, ये तो करें किलोल।। 
अबकी बारी छह दिसंबर, क्यों भूल गये है भाई।
    सपा काला दिवस को भूली , शौर्य दिवस भाजपाई .... 11
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के ८ दिसंबर ११ के अंक में प्रकाशित है .

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