यूपी में महाभारत 2012 चालू हो गइल बा। सजो सेना सजि गइल हई।
आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू बा। एही बीच में कबीर बाबा की दरबार में कुछ
प्रत्याशी-ओरतासी पहुंचलें। कहलें बाबा! हमरा पक्ष में कुछ कवित्तई लिख
दीं। बाबा बोललें- कान खोल के सुनिलù साधो, कहते दास कबीर। ना लहै तù
तुक्का समझौ, लहि गयो तù तीर।। कबीर बाबा के इ कवित्तई देखीं कवना सेना पर
केतना सधत बा।
सेना नंबर एक- अफसरन से चोरी करववलू, कमीशनखोरी खूब मचवलू।
अब तù गद्दी छोड़ मैडम, रोंआं-रोंआं बड़ा दुखवलू।।
अफसर चोर, मंत्री दलाल, खूब तू भइलू मालोमाल।
दुहि के सबके कइलू ठठरा, अब भ्रष्टाचार के नाम हलाल।।
सेना नंबर दो- जेकरा याद गुंडई आई, उनकी पर ना मोहर लगाई।
उनकर भाई भतीजा बेटवा, आखिर कबले एकछ खाई।।
उनकी छाती चढ़ि हम हुंमचवलीं, उनके रसातल में पहुंचवलीं।
पनके देइब सभै नहि अबकी, माठा डालि के हमीं सुखवलीं।।
सेना नंबर तीन- हमरा त पता ना रहे, अइसन भी युग आई।
जन्म हमार भइल बा कहंवा? न्यायालय बतलाई।।
हमरी नावे पार उतरलें, कटलें खूब मलाई।
कुरसी पवलें हमें भुलक्ष्लें,अब जनता उन्हें भुलाई।।
सेना नंबर चार- जागù जागù बबुआ, जागù हो किसान।
यूपी के बदल द अबकी, शुरू करù अभियान।।
जाति-पाति से उपर उठù, मति अचिकौ कुम्हिलाय।
सबके न्याय सुरक्षा मिली, इ जुमला दोहराव।।
सेना नंबर पांच- छोट दल मति बुझù, बड़ बा बड़ा इरादा।
कठफोड़वा की चोंच मरले, जाला निकल बुरादा।।
छोटे-छोटे नथिया से पड़ेला नकेल।
दाव चढ़ि जइबù, देइ छोटके ढकेल।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के २८ दिसंबर ११ के अंक में प्रकाशित है .
सेना नंबर एक- अफसरन से चोरी करववलू, कमीशनखोरी खूब मचवलू।
अब तù गद्दी छोड़ मैडम, रोंआं-रोंआं बड़ा दुखवलू।।
अफसर चोर, मंत्री दलाल, खूब तू भइलू मालोमाल।
दुहि के सबके कइलू ठठरा, अब भ्रष्टाचार के नाम हलाल।।
सेना नंबर दो- जेकरा याद गुंडई आई, उनकी पर ना मोहर लगाई।
उनकर भाई भतीजा बेटवा, आखिर कबले एकछ खाई।।
उनकी छाती चढ़ि हम हुंमचवलीं, उनके रसातल में पहुंचवलीं।
पनके देइब सभै नहि अबकी, माठा डालि के हमीं सुखवलीं।।
सेना नंबर तीन- हमरा त पता ना रहे, अइसन भी युग आई।
जन्म हमार भइल बा कहंवा? न्यायालय बतलाई।।
हमरी नावे पार उतरलें, कटलें खूब मलाई।
कुरसी पवलें हमें भुलक्ष्लें,अब जनता उन्हें भुलाई।।
सेना नंबर चार- जागù जागù बबुआ, जागù हो किसान।
यूपी के बदल द अबकी, शुरू करù अभियान।।
जाति-पाति से उपर उठù, मति अचिकौ कुम्हिलाय।
सबके न्याय सुरक्षा मिली, इ जुमला दोहराव।।
सेना नंबर पांच- छोट दल मति बुझù, बड़ बा बड़ा इरादा।
कठफोड़वा की चोंच मरले, जाला निकल बुरादा।।
छोटे-छोटे नथिया से पड़ेला नकेल।
दाव चढ़ि जइबù, देइ छोटके ढकेल।।
-नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के २८ दिसंबर ११ के अंक में प्रकाशित है .
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