कट्ठा अवांसी, मंडा बोझ ना, पूरा सोझ..
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चैत के महीना। राजा महीना। कहल गइल- ‘ आइल चइतवा राजा, घुरवो पर दु दाना’। खेती-किसानी की चर्चा में ही इहो कहावत कहल गइल- ‘ चैत सुते अभागा’। एगो जमाना उहो रहे, जब पैदावार की मामला में देश बहुत पीछे रहल। जौ-गोजई बोआत रहे। ऊपज एतने होखे कि कहल गइल- ‘ कट्ठा अवांसी, मंडा बोझ’। कटिया की दिन में भोरहरी से ही खेते-खेते बनिहारिनन की चूड़ी की खनक से सिवाना गुलजार हो जात रहे। खेत से खलिहान तक चहल-पहल। पंद्रह दिन ले कटिया, ओकरा बाद दवंरी तब ओसवनी। अंखइत से पैर ( 50-100 बोझ का ढेर) उलटला में पांव के पसीना कपार चढ जात रहे। मेह की सहारे बुढ़वा बैल पाकुच-पाकुच आ दहिनवारी नाधल बछरू कुलांच मार दांवत रहलें। पीछे-पीछे हंकवइया के पांव की तरवा जाय। बैलन के पोंछि मिमोरत, हांकत- डांटत हरवाह लोग जब रात के पैर पर पसर के बिरहा, लोरकाई, गोड़ऊ, धोबियऊ की धुन गुनगुनात रहलें। गरीबी एतना की गोबरउरा ( दवंरी करते बैल का गोबर) से भी अनाज निकाल धो-बना, सुखा-पिसा के मजदूरन की घरे रोटी बनत रहे। उत्पादन की मामिला में देश बहुत तरक्की कइलसि। अब कठमन (एक कट्ठा में 40किलो) ना, पूरा कुंतल भर पैदावार होत बा। तकनीक की क्षेत्र में भी देश बहुत तरक्की कइलसि। ट्रैक्टर आइल, कंबाइन आइल, हारवेस्टर आइल। कुछ लोग कंवाइन के दानव आ दैत्य बनावल, लेकिन सांच बाति इ बा कि इ मशीन ना रहित त अब जेतना ऊपज होत बा कटावल मुश्किल हो जात। गांवन से मजूरा शहर पकड़ लिहलें। जवन गांव में हवें बगैर काम के ही प्रधान लोग की कृपा से मनरेगा के मजदूरी उठावत हवें। खेती-किसानी के मजदूरन के अभाव हो गइल। अइसन समय में कंबाइन के ही कृपा बा। जवना कटिया, दवंरी,ओसावनी में महिनन लागत रहे, अब घंटा-दु घंटा में गेंहूं घरे। जरूरत येह बात के बा कि लखटकिया कार की तर्ज पर लखटकिया ट्रैक्टर, कंबाइन, हारवेस्टर बनावल जा। देश और तरक्की करी। किसानन के मुफ्त बिजली के वादा करे वाला नेता लोग अपनी वादा पर अमल करें। खाद-बीज-डीजल पर सब्सीडी दिहल जा। अब उ जमाना ना बा कि अमेरिका से ललका गेंहूं आ सड़लका बजरी आई तब लोग खाई। अन्न उगवला में किसान रिकार्ड बनावत हवें। कट्ठा में कुंतल उपजावत हवें। अइसने कुछ माहौल में इ कवित्तई लिखल गइल-
पहिले कट्ठा अवांसी, मंडा बोझ। अब कठमन ही ना, पूरा सोझ।। अन्न से भरल बखार आ डेहरी। क्रीम लगावे किसान के मेहरी।। तब कटिया दवंरी अवर ओसाइन। अब सब संगे आइल कंवाइन।। बैल नदारद खलिहान खतम, आइल जबसे ट्रैक्टरवा। काटे दांवे ओसावे कंवाइन, भूसा बनावे हरवेस्टरवा।। -नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी लेख राष्ट्रीय सहारा के १२ अप्रेल१२ के अंक में प्रकाशित है . |
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