गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

लिपिस्टिक में गुण बहुत है, सदा राखिए जेब..


मनबोध मास्टर मैडम की लिपिस्टिक पर फिदा हवें। बहुतै काम के चीज हù मैडम कù लिपिस्टिक। समय असमय अइसन-अइसन काम चला देला कि देखवइया हैरान हो जालें। आई लिपिस्टिक से जुड़ल कुछ घटना-दुर्घटना बता देत हई। महानगर में 28 लाख की लागत से पोकलेन ( नाला साफ करे वाला मशीन) खरीदल गइल। वाह रे नगर निगम! 28 लाख के मशीन खरीद लिहलन आ पचास पैसा (चवन्नी चलित तù पच्चीस पैसा ही लिखतीं) के रोरी के व्यवस्था ना कù पवलें। उद्घाटन की अवसर पर महापौर के युक्ति काम कù गइल। पर्स से लिपिस्टिक निकरली, पोकलेन मशीन पर स्वास्तिक के निशान बनवली आ शुभ-लाभ लिखली। अब लिपिस्टिक के कमाल देखीं। प्रेमचंद पार्क से फलमंडी वाला नाला में जब मशीन पहिला पंजा लगवलसि तù नया मोटरसाइकिल निकलल।शुभे-शुभ। देखवइया गावे लगलें-‘ मेरे शहर का नाला उगले, उगले-उगले मोटरसाइकिल’। केतना भाग्यशाली हई महापौर आ केतना भाग्यशाली लिपिस्टिक। इ चर्चा होते रहे कि पड़ोसी पंडित जी आपन आप बीती बतावे लगलें। कहलें - एक बेर के बाति ह जयपुर में ब्राह्मण सभा के सम्मेलन होत रहे। हमहूं आमंत्रित रहलीं। ट्रेन लेट रहे। जयपुर पहुंचल तù सम्मेलन के समय हो गइल रहे। ना नहइला के समय ना पूजा-पाठ के। हड़बड़ी में धावत-धूपत सम्मेलन स्थल पर पहुंचत रहलीं कि देखलीं सब पंडी जी लोग लिलार पर टहकार टीका लगवले गेट से घुसत हवें। कवनो युक्ति ना रहे। टीका के बगैर चेहरा से ब्राह्मण के तेज समाप्त रहे, अचानक मोबाइल के घंटी बाजल। घर से मैडम के फोन रहे। बोलली- गलती से रउरी बैग में हमार लिपिस्टिक चलि गइल बा। मैडम के गलती हमरा खातिर जोगाड़ हो गइल। पांडाल की एगो कोने में गइलीं, सट से लिपिस्टिक से ललाट पर टीका खींचली। सम्मेलन में टीका पर लमहर व्याख्यान सुनवली। जवले टीका लगल बा, ब्राह्मण जमल बा। विद्वान लोग ताली बजावें, हमार लिपिस्टिक छाप टीका सम्मेलन में छा गइल रहे। कुछ और अतीत में गइलीं तù याद आइल। कालेज के पढ़ाई के दिन। एनुवल फंक्शन में ‘
लीप-लिपिस्टिक’ कार्यक्रम रहे। आंख पर पट्टी, हाथ में लिपिस्टिक आ सामने आज के पंडिताइन आ स्कूली समय के क्लासमैट कम गल्र्स फ्रेंड ज्यादा। लीप पर लिपिस्टिक ना लगा पवलीं, लेकिन नाक की नीचे, ओठ की ऊपर कुछ मूंछ टाइप के आकृति जरूर बना दिहलीं। पट्टी खुलल तù आपन करनी देख के हंसत-हंसत लोटि गइलीं। समय करवट फेरलसि आ उहे क्लासमेट हमरा गरे बंधा गइली। लिपिस्टिक के एगो तिसर घटना, जवना के हम दुर्घटना कहि लें। बड़की भौजी मेकअप रूम से डेंट-पेंट कù के निकरली। हम मजाक में कहलीं-भौजाई एगो किस दे दù। भौजी आव देखली ना ताव, हमरा गाल पर दे दिहली किस। तवले भइया आ गइले। गाल पर लाल रंग के ओठ वाली मुहर देखते बौरा गइलें। भइया-भौजी में भइल तकरार। छोटहन मजाक बड़वर दरार तैयार कù दिहलसि। बाद में बहुत सफाई देत शंका के बादल छंटल।
 लिपिस्टिक में गुण बहुत है, सदा राखिये जेब।
 प्रीति बढ़े भौजाइन के , जव देवर लोग देव।। 
 ओठन के लाली बढ़े, अवर भी करे कमाल।
 वहां-वहां लगाइये, जहं रंग न मिले तत्काल।।

 -नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के ५ अप्रेल २०१२ के अंक में प्रकाशित है .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपन विचार लिखी..

हम अपनी ब्लॉग पर राउर स्वागत करतानी | अगर रउरो की मन में अइसन कुछ बा जवन दुनिया के सामने लावल चाहतानी तअ आपन लेख और फोटो हमें nddehati@gmail.com पर मेल करी| धन्वाद! एन. डी. देहाती

अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद