गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

चारो ओर कृपा बरसत बा , काहे राउर मन तरसत बा ...


चारों ओर किरिपा बरसत बा। टीवी पर निर्लज्ज बाबा के किरिपा बरसत बा। भक्त लोग जयकारा लगावत हवें। निर्लज्ज बाबा की जय! हे त्रिलोकदर्शी महराज विरोधियों के ऊपर अइसन किरिपा बरसावो कि मुंह करिया हो जाय। राउर बाबागिरी जिंदाबाद रहे। रउरा आबाद रहीं। कपड़ा के दुकान ना चलल, कवनो बात ना। ठेकेदारी डूब गइल, फिकिरनाट। बाबागिरी के धंधा चोख रही त सब काम टनाटन रही। संत समागम में गरीब मनई भला केइसे पहुंची, खायेके ठेकान ना रही त खाता में कहां से पइसा ट्रांसफर करिहें। पइसा ना जाई त किरिपा कइसे मिली। खैर, बाबा बहुत किरिपा कइले अब पब्लिक का चाहीं कि उनपर किरिपा करि के कीचड़ उछालल बंद करो। अपना उत्तर प्रदेश में राज-ताज बदलल त लोग का भरोसा भइल कि सब ठीक हो जाई। बहन जी गइली, भइया जी अइले। भइया जी अपनी शार्गिदन के बहुते समझवले कि भया! अइसा-वइसा काम जनि करù कि बदनामी होखे। लेकिन ‘ उ डोलें रस आपनो, उनकर फाटत अंग.’। बहन जी की राज में ट्रांसफर उद्योंग हो गइल रहे। भइया जी की राज में बगैर पइसे-पौव्वा के ट्रांसफर भइल ह, अधिकारी लोग बहुत खुश कि किरिपा बरस गइल। लगाम नेइखे कसात त कानून व्यवस्था के स्थिति पर लफंगन के ही किरिपा बरसत बा। आंतरपार लूट होता। मनई के जान तù चिरई-चुरुग, भेड़-बकरी से भी बदतर हो गइल बा। लुटेरन के लगत बा लूट के छूट मिल गइल बा। अब केहु पुछे कि भया , उनहन पर केकर किरिपा बरसत बा? अभिभावकन पर प्राइवेट स्कूलन के किरिपा बरसत बा। लक्ष्कन के नाम लिखववला में कमर टेढ़आ जाता। किसान पर भगवान मेहरवान हवें। जब पाकल-फूटल अनाज भइल त इंद्र देव के किरिपा बरसल। पाथर-पानी से जवन बचल ओपर अग्नि देवता के किरिपा बरसे लागल। खेतन में आगि नाचति बा। गांवन में बिजुलिया ओतने आवत बा कि कहीं फट्ट से फाल्ट हो जाता आ सट्ट से आग पकड़ लेत बा। अइसने कुल किरिपा कुकिरिपा के बीच एगो भक्त गोहरावत हवें-
 मेरो मन का भरम मिटाओ , बाबा इतनी किरिपा बरसाओ। मन का भरम..
 तिसर नयन खोल दो बाबा, नोट ही नोट दिखाओ। 
काला पर्स नितंब संवारे, करेंसी से अंड़सायो।।
 बैंक आ लाकर ठूंस पड़े, फिर इनकम टैक्स बचाओ। 
करिया अक्षर भैंस बरोबर, फिर भी विद्वान बनाओ।।
 पर तिरिया देखि सुघराई, लोभी मन ललचायो। 
घर की बियही बासन-पोंछा, महिला मित मौज मनायो।। 
होटल पार्क घूमे मनमौजी, चाट पकौड़ा खायो। भिनसारे जब पहुंचे घर, मेहरी मूसर ना बरसायो।। मन का भरम मिटाओ..

- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के १९ अप्रैल २०१२ के अंक में प्रकाशित है .

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