बैसाख क महीना। देंहि के चाम जरावत घाम। अंधड़ आ तूफान, एही में अग्नि
देवता के तापमान। कहीं खेत जरल, कहीं खलिहान। लापरवाही के आग में जरि गइल
बहुतन के अरमान। साहब- शुब्बा लोग मना करत रह गइलन कि पंच खेत के डंठल ना
जरावें। जेकर कटा गइल, ओकर कवन चिंता। धरा दिहलें एगो माचिस के तिल्ली।
उनकर खेत साफ भइल, आस-पास के किसान के खेत के खड़ा फसल राख हो गइल।
पूर्वाचल में असो के आग लगला के कारन पर ध्यान दिहला पर पता चलल कि कहीं
देवी-देवता के जेवनार, कहीं गांजा, बीड़ी, सिगरेट, कहीं घूरा के चिंगारी,
कहीं चूल्हा के आग, कहीं कौड़ा, कहीं बिजली के फाल्ट, कहीं डांठ के फुंकाई आ
कहीं लक्ष्कन के खेलवाड़ में आग ही आग। अब आई तनीं आग बुझावे वाला विभाग
के हाल जानल जा। एकर हाल उ बा- ‘ ना सुआ ना सुतारी, बनले बड़का व्यपारी.’।
आपन देश बहुत तरक्की कइलसि। अग्नि-5 के सफल परीक्षण भइल। पांच हजार
किलोमीटर तक मारे के क्षमता वाली मिसाइल तैयार भइल। अमेरिका के छोड़ के
पूरा दुनिया हमरी अग्नि-5 की जद में बा, लेकिन आग बुझावला की मामला में हम
बहुत पीछे हई। अग्निशमन दल की नाम पर गिनल-चुनल दमकल, राह चलत हांफेवाला
सिपाही, भला अइसे में कइसे मिटे आग के तबाही, जब गांव-गांव लोग करत बा
लापरवाही। जरूरत येह बाति के बा कि हर थाना पर होखे एगो फायरब्रिगेड के
गाड़ी। गांव के गड़ही, तलाब आ पोखरा में भरल जा पानी। बंद करावल जा
लापरवाही आ नादानी। अगर अइसन ना होई त इहे कहल जाई-
ओझा की भरोसे होता,
डायन से बिआह।
जरत बा इलाका ,लोग होत बा तबाह।।
एतना लापरवाही पर भी, कम
हवें सिपाही।
धरति बा आग, त मचावति बा तबाही।।
अग्नि के परीक्षण उहां, जरे
इहां आग।
बुझावे के संसाधन नाहीं, जब जात हवे लाग।।
देश के तरक्की भइल,
मिसाइल अउरी तोप।
वाह रे! अग्निशमन दल, ना बुझावे एगो खोप।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपन विचार लिखी..