मेरा यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 7/2/13 के अंक में प्रकाशित है
आगे चलेले हल्ला गाड़ी, तोड़े -फोड़े और उखाड़ी,,,
आगे चलेले हल्ला गाड़ी, तोड़े -फोड़े और उखाड़ी,,,
अइसे भला कइसे मिली, इहां जाम से मुक्ति?
जाम-झाम की नाम पर,
नगर निगम के युक्ति।।
नगर निगम के बुलडोजर, नाम बा हल्ला गाड़ी।
शाम को फिर
गुलजार हुआ,दिन भर बहुत उखाड़ी।।
महानगर में फेल होत बा, सचमुच यातायात।
अतिक्रमण की निर्लज्जता, के क्या कहने बात।।
बलशाली है कब्जाधारक, कोई बांह
न सकै मरोड़।
सिविल लाइन्स, रेलवे, बचल ना कवनो मोड़।।
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