मनबोध मास्टर रेल बजट पर फटे बांस जस सुर निकालत हवें। बोल पड़लें- आखिर
उहे न भइल जवना के डर रहल। बजट से निराश मास्टर बंसल बाबू की बजट के बकवास
बतावत हवें। ना रफ्तार मिलल ना यात्री सुविधा। अब अगर लोग इ कहत बा कि जेब
कटा गइल त कवन बा दुविधा। माल भाड़ा एतना काड़ा भइल बा कि लोग इहे कही। रेल
के खेल जनि बुझीं। इ एगो अइसन महकमा ह जवन देश के एक छोर से दूसरका छोर के
जोड़ के रखले बा। तरह-तरह के भाषा, संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान के एके
डिब्बा में लदले दिन रात दौड़ल करेले। रेल देश के सबसे बड़वर मालवाहक तंत्र
भी ह। लोग बतावेलें की रेल में चोरी रुक जाय त सोने के पटरी बिछ जाय। एतना
कमाई ह रेल की पास। रेल मंत्री की बजट में मनबोध मास्टर बहुत कुछ तलाशत थक
गइलें। पूर्वाचल आ बिहार की उपेक्षा पर समीक्षा होखे लागल। भटनी से
औड़िहार के दोहरीकरण के कवनो बतिये ना बा बजट में। गोरखपुर से दिल्ली आ
मुंबई खातिर रोजे दस गो गाड़ी चाहीं, लेकिन मिलल का? सहजनवां-दोहरीघाट के
पुरनका र्चचा नवका बजट में भुला गइलन। आनंद नगर - घुघली आ बस्ती-कपिलवस्तु
की बीचे जवन रेल लाइन बिछावे के घोषणा भइल येह से तनिका सा मरहम लागल, घाव
ना ठीक भइल। घाव कब ठीक होई? येह पर संदेह बा। बंसल की बजट पर मनबोध मास्टर
के एगो सवाल भारी बा। बोललें- हमरा क्षेत्र के का मिलल? ठेंगा। सरकार की
गजट पर, रेल की बजट पर बस इहे कविता-
बंसल बाबू बघारù ना हेठी।
खुश खाली
बाटे रायबरेली अमेठी।।
हमरा त पहिले ही रहल आशंका।
लालू अस राउर बाजी ना
डंका।।
गोरखपुर-दिल्ली भूसे अस भराई।
मुंबई जाये वाला बइसे ठुसाई?
पवले उहे
जहां एमपी कांग्रेसी।
रउरा बुझलीं की दे दिहलीं बेसी।।
सोनिया की क्षेत्रे
में दर्जन भर गाड़ी।
एही से उ लहरावेली साड़ी।।
राहुल की अमेठी पर बहुत
मेहरबानी।
गाड़िन के लाइन लगवले बानी।।
सलेमपुर गोरखपुर बांसगांव ठेंगा।
कहिया ले आई एइजा गांगू के हेंगा।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के २८ /२ /१ ३ के अंक में प्रकाशित है .
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