गुरुवार, 31 जनवरी 2013

गोरखपुर भयो अइसन देसू, डकैत घुमैं पुलिस के भेसू

मनबोध मास्टर बिहाने-बिहाने अखबार पढ़ते चाय के चुस्की लेत बोल पड़लें- ‘ गोरखपुर भयो अइसन देसू। डकैत घुमैं पुलिस के भेसू।’ बात सहिये बा। उदरु में जइसे नुक्ता की गलती से खुदा भी जुदा हो जाला ओइसे ही वर्दी की फेर से सिपाही, डकैत आ डकैत, सिपाही लागे लागेलन। गोरखपुर आ देवरिया में डकैती डाले के समृद्ध परंपरा शुरू कइले बदमाश अब बावर्दी डकैती डालत हवें। कानून-व्यवस्था की येह अवस्था पर मनबोध मास्टर के चौपाई सोलहों आना खरा उतरत बा। झगहा और चौरीचौरा थाना क्षेत्र की आधा दर्जन घरन में डकैती पड़ल। डकैत पुलिस की वर्दी में रहलें। तलाशी की बहाने घर में समइलें। लूट सको तो लूट.. मिलल लूट के छूट..। नागरिक सुरक्षा में लगल पुलिस भी वर्दी में आ लूटे वाला डकैत भी पुलिस वर्दी में। वर्दी -वर्दी में भी भेद बा। येह सर्दी में एगो वर्दी किकुरल बा आ दूसरकी वर्दी, बावर्दी कहर ढाहति बा। झगहा आ चौरीचौरा ही ना कुछ दिन पहिले सहजनवा में भी तीन घरन में बावर्दी डकैती पड़ल रहे। देवरिया की खामपार में भी बर्दी में डकैती पड़ल रहे। वर्दी कबो बदमाशन खातिर खौफ रहे आज बदमाशन के हथियार बन गइल बा। असली वर्दी वाला लोग नकली वर्दी वाला बदमाशन के पकड़े में जाड़ा की दिन में भी पसीना बहावत हवें। व्यवस्था में भी गजब के धोंधड़ बा। रात गश्त के दावा खोंखड़ बा। सांच बात त इ बा कि पुलिस ऊंघांति बा, आ बदमाश जागि गइल हवें। पुलिस के दावा के हावा निकार के दनादन डकैती डालत हवें। पुलिस के मूलमंत्र होला लोग के डरावल। डकैत भी लोग के डरावत हवें। पुलिस की देह पर वर्दी आ हाथ में डंडा। डकैत भी अपनावत हवें इहे हथकंडा। अगर नकली वर्दी पहन के बदमाश अइसे ही डकैती डालल करिहें त असली पुलिस देख के भी लोग का शक हो सकेला कि पुलिस हवें कि डकैत। लोकतंत्र की उज्ज्वल माहौल में असली वर्दी के डंडा कई जने की पीठ पर गिरल, जीवन सुधर गइल, लोग नेता- विधायक -सांसद बन गइलें। वर्दी की इहे डंडा आ पुलिस के फंदा अगर डकैतन पर लागू हो जात, पुलिस पर विश्वास बढ़ जात, जनता के सुरक्षा के आस बढ़ जात। मौजूदा हालात पर, वर्दी की बात पर, डकैती की रात पर बस इहे कविता-
 कौन है असली, कौन है नकली, दुनों पहिनलें वर्दी।
पुलिस -डकैत का भेद मिटा, अब लूट रहे बावर्दी।।
 किकुरल पुलिस मगन भयो डकैत, पड़त बा कोहरा सर्दी।
 छह घरन में पड़ल डकैती, ‘ उस वर्दी’ ने हद करदी।।
- नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 31/1/13 के अंक में प्रकाशित है .

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