गर्मी से राहत मिलल, पानी से सांसत..
मनबोध मास्टर मानसून के बून गिरते गर्मी से राहत
पवलें त बड़ा इत्मीनान से टांग पसार के सुत गइलें। देवराज इन्द्र के कृपा
गरगरा के बरसत रहे।सुतला में बरखा बहार वाला सपना देखत रहलें। अचानक देहिं
पर गणोश जी के चरपहिया चढ़ि गइल। भइल इ रहे कि गणोश जी की वाहन वाला गैरेज
में पानी समा गइल रहे आ उ अफना के उ मास्टर की उपरे चढ़ि गइल। मास्टर चिहुक
के उठलें। आंख मलते पहिला पांव पलंग के नीचे उतारते छपाक.। चप्पल बहि के
ना जाने कहां चलि गइल रहे आ नाला के पानी आ प्लास्टिक के कचरा घर में समा
गइल रहे। मस्टराइन ना जाने कबे से फुफती खोंस से घर के पानी बहरा उदहला की
उपक्रम में लागल रहली। मास्टर के देखते बादर जस फाटि पड़ली- कुंभकरन अस
सुतल रहलù ह, सब सामान नुकसान हो गइल। गर्मी से राहत वाला मानसूनी बहार पर
एकाएक बज्रपात हो गइल। कमरा के सामान रेक-ओक पर फेंक-सेंक के शहर के जायजा
लेबे निकल पड़लें। सड़क पर उतरते समहुत बनि गइल। एगो चारपहिया बगल से गुजरल
आ मास्टर पवित्तर हो गइलें। चेहरा के कानो-माटी काछत, कपड़ा के गति बनल
निहारत धर्मशाला पुल की नीचे से निकरला की प्रयास में कच्छा में मेघुची समा
गइल। अनुमान लगा लिहलन की देवराज इन्द्र के पुरहर कृपा भइल बा, तीन फीट से
कम पानी ना लागल बा। मियांबाजार, घोषकंपनी, नखास, रेती, गीताप्रेस,
साहबगंज, लालडिग्गी, सुमेरसागर, रुस्तमपुर, चस्काहुसेन आदि इलाका में
मकान-दुकान में नाला के पानी समाइल रहे। शहर में नैहर के बरम बनि के जमल
फुटपाथी दुकानदार जवन प्रशासन की अतिक्रमण हटाओ वाला डंडा से कबो ना डेराइल
रहलें उ कीचड़-पानी की डरे आपन चाट-पकौड़ी, इडली-डोसा, पूड़ी-कचौड़ी,
सतुआ-भूजा लेके भाग गइल रहलें। इंन्द्र की बज्जर से बचाव खातिर पंपसेट
लगावे के व्यवस्था होत रहे। सूरजकुंड, रसूलपुर, हड़हवा फाटक, गोड़धोइया
पुल, गोपालपुर आ धर्मशाला सहित कई जगह पर पानी उदहात रहे। जे बरखा की पानी
से घेराइल रहे उ चिचियात रहे, चिल्लात रहे। नगर निगम पर भिनभिनात रहे-
सुखरख में नाला त साफे ना करा पवलें अब सड़क पर नाव चलवा दें। शहर की
दुर्दशा पर मन मसोस के मास्टर बस दु शब्द कहलें- ठेकेदारी आ हिस्सादारी नरक
बना दिहलसि। शहर के इ दशा देखि के एगो कविता लिखाइल-
गर्मी से राहत मिलल,
पानी से सांसत।
डूबत इलाका बा, लोग हवें हांफत।।
मौसम विज्ञानी लोग नापेलन
पानी।
शहर भइल कचरा बढ़ल परेशानी।।
कूड़ा से पाटल, सड़क भइल नाला।
नरक के
सुख भला केकरा सुहाला।
जनप्रतिनिधि लोग मलाई बा चांपत।
कहिया घटी पानी
मुहल्लावाला नापत।।
-नर्वदेश्वर पांडे देहाती का यह भोजपुरी व्य्न्ग्य राष्ट्रीय सहारा के 20/6/13 के अंक मे प्रकाशित है .
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपन विचार लिखी..