गुरुवार, 6 जून 2013

ढील बा पेंच, की मिस बा चूड़ी, की मुड़ी पर कइलें शनिचर सवारी....

मनबोध मास्टर बिहाने-बिहाने अखबार खोलते माथा पीट लिहलन। अपराध की समाचार से भरल अखबार देख के दिमाग चकरा गइल। देवरिया की एम पी साहब की मुनीब से भी दु लाख छिना गइल। कूड़ाघाट में सत्या के गहना छिना गइल। रेलवे के जीएम आफिस की समनवे बैंक से पैसा निकाल के आवत रिटायर रेलकर्मी लुटा गइलें। दिव्यनगर में रंगदारी खातिर घर पर चढ़ के बदमाश फायरिंग कइलें। रेती चौक पर रिक्शा से जात बैंककर्मी पर तमंचा तान के बदमाश नकदी लूट लिहलन। सिसवा आ कप्तानगंज की बीचे जननायक ट्रेन में जीआरपी वाला एगो व्यापारी के लूट लिहलन। बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर, कुशीनगर में लूट-छिनैती के तमाम समाचार से अखबार अंड़सल रहे। लगत बा लूट के छूट मिल गइल बा। कुशीनगर वाला स्वर्गीय धरीक्षण बाबा के कविता याद आ गइल-‘ गुंडा स्वतंत्र, गोली स्वतंत्र/ बदमाशन के टोली स्वतंत्र/ छूरा स्वतंत्र, कट्टा स्वतंत्र, हिस्ट्रीशीटर पट्ठा स्वतंत्र..।’ एतना लुटात-पिटात, मरात-कुचात मनई की मन में एक बात के संतोष बा। संतोष येह बात के की बाबुजी (नेताजी)के वयान भी आजुए की अखबार में आइल बा। वयान के लब्बोलुआब इ बा कि बाबुजी के कहनाम बा कि हम राजा रहतिन त 15 दिन में व्यवस्था सुधार देतीं। मतलब साफ बा कि राज-काज ठीक नेइखे चलत। इ बाबुजी के भलमनसहित बा कि बेटा के कसत हवें कि पुत्तर पेंच कस दें। बाबुजी के नराजगी मीडिया से बा। कहत हवें- सरकार ने अच्छा काम ना लउकत बा। बाबुजी! माफ करब, कइसे समझावल जा। सफेद चकाचक कमीज पर यदि कहीं दाग लउकी त निगाह ओहीं न पहिले जाई। येह में निगाह के कवन दोष बा। दागदार कमीज पहने वाला के चाहीं कि दाग धोआ दें। राजनीतिक दल जहां एक ओर सूचना अधिकार अधिनियम के खुल्लमखुला विरोध करत हवें वहीं बाबुजी सीना ठोंक के कहत हवें कि पुत्तर के राज-काज ठीक ना चलत बा। येह के कहल जाला पारदर्शिता, ईमानदारी से स्वीकारोक्ति। बाबुजी का ठीक से पता बा कि कानून -व्यवस्था के चुनौती देबे वालन तत्वन पर लगाम ना लगावला की चलते ही 2007 की चुनाव में उनकी पार्टी से सरकार में गइला के ही लगाम लाग गइल रहे। लेकिन एगो सवाल सीना में चुभत अइसन लागत बा, उ इ कि जब बाबुजी के पार्टी सरकार में आवेले तबे बदमाशी काहें बढ़ि जाला?
लूट के छूट मिलल जइसे, रोज लुटात हवें नर-नारी। 
अइसे ही राज चलि यदि भाय, त उत्तम प्रदेश होय गुणकारी।।
 ढील बा पेंच, की मिस बा चूड़ी, की मूड़ी पर कइलें शनिचर सवारी।
 बाप कहें हम ठीक कर देतीं, बेटवा तूहीं दिहलù ह राज बिगारी।।
-मेरा यह भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के ६ जून १३ के अंक में प्रकाशित है .

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