गुरुवार, 13 जून 2013

हो गइल युद्ध विराम बोलù बचवा जै श्रीराम

मनबोध मास्टर बिहाने-बिहाने अखबार खोलते झूम-झूम के नाचे लगलन। मुंह से बस एक ही लकार- ‘ हो गइल युद्ध विराम, बोलù बचवा जै श्रीराम।’ मस्टराइन बोलली- केइसन युद्ध आ केइसन विराम। सजो सेना त अपनी-अपनी खेमा में रहल। ना तीर निकरल ना तलवार, एगो बुढ़हठ की रुठले आ मनवले के खेल के भारत में महाभारत बना दिहल गइल। मास्टर बोलले- इ द्वापर युग के महाभारत ना रहल जवना में भीष्म पितामह का छह माह ले वाण शैय्या पर सुते के परी। इ कलिकाल के महाभारत रहल। गुजराती लाल खातिर महाभारत रहल। महज 24 घंटा में ही बुढऊ भीष्म पितामह वाण शैय्या से खड़ा होके गावे लगलन- ‘ चांद ना बदलल , सुरूज ना बदलल, ना बदलल आसमान रे। केतना बदल गइल हाई कमान रे.। जेकरा के बइठवलीं गोदी, लगता उहे लोटिया डूबो दी, बुढ़ौती पर दिहलसि ना ध्यान रे. केतना बदल गइल हाई कमान रे.। गंजा कप्तान बनते मारि दिहलें छक्का, देख के हो गइलीं हम हक्का बक्का, धक्का लागल बहल दिल के अरमान रे. , केतना बदल गइल हाई कमान रे.।’
दरअसल भारत के भाग्य गोवा में रचल जात रहे। राजनीति में खेल हो गइल। सजो मामिला तेल हो गइल। शौर्य शक्ति के केंद्र बनि गइलन एगो गुजराती लाल। तबे बुढ़ऊ फुला लिहलन गाल। देश में चारो ओर मचि गइल बवाल। विरोधिन की घरे बधाई बाजे लागल। बुझाइल की पत्थर पर दूब जाम गइल। गोल भहराये लागल। गुजराती लाल की समर्थन में नवहन के खून खौले लागल, कुछ नवहा लोग बुढ़ऊ की दुआरि पर धरना-प्रदर्शन तक करे लगलें। भारत भाग्य रचे वाला दल में संकट खाड़ हो गइल विकराल। कई योद्धा, पुरोधा खटिया पकड़ लिहलन। केहू का खोंखी उपट गइल त केहू का जड़इया, केहू का निमोनिया। सेनापति जी अइसन शंख बजवले की सब सन्न रहि गइल। बेमारी के बहाना बतावे वाला लोग आपन-आपन सफाई देबे लगलन। बुढ़ऊ के मनावन शुरू हो गइल। बुढ़ऊ भी सोचलें की रूठल रहब त भागि भी रूठ जाई , चलीं मान जाई और बुढ़ऊ मान गइलन, महाभारत के पटाक्षेप हो गइल। येह घटना पर एगो कविता-
 बुजुर्गन से मुंह कबो मोड़ल ना जाला।
 लरिकन-फरिकन के दिल कबो तोड़ल ना जाला।।
 कुछ पाकल फल ढेंपी के बहुते मजबूत होलन।
 डाल तब तक ना छोड़ेलन, जबले पत्थर छोड़ल ना जाला।।
-नर्वदेश्वर पांडे देहाती का यह भोजपुरी व्य्न्ग राष्ट्रीय सहारा के 13 जून13 के अंक मे प्रकाशित है .

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