मनबोध मास्टर सरकार की प्रशंसा में पुल बांध दिहलें। भाई पुल त जरुरिये बा। ‘ सियार के विआह ’ एतना बरखा में भी शहर की सड़क पर पानी जवन हिलोर मारे लागत बा। अब कई जने पढ़लिलखल कहिंहे- यह सियार का विवाह क्या होता है? अरे भाई! गांव-देहात में जब एक ओर दइब घाम कइले रहलन आ दूसरा सिवान में पानी बरसत लउकेला त ओके सियार के विआह ही कहल जाला। सरकार के प्रशंसा होखहि के चाहीं। सरकार बहुत उदार बा। छप्परफाड़ के देत बा। जे बेरोजगार बा ओके बेरोजगारी भत्ता देत बा। भइया लोग के लवलाइटिस ध लिहलसि। मोबाइल चार्ज कराके दिन-रात बैट्री डाऊन कइला की चक्कर में पड़ल हवें। लैपटॉप भी बंटे लागल। गांव में बिजुलिया अइबे ना करी त मोबाइल आ लैपटॉप चार्ज कइसे होई। लक्ष्की लोग के साइकिल बंटाइल। चलावे लगली त माई-बाप से स्कूटी मांगे लगली। गरीब मेहरारू लोग के साड़ी मिली। बुजुर्ग लोग के कंबल मिली। सत्तर वर्ष की उम्र में भी चाचा लोग डाक्टरी पढ़इहें। लाभ त बहुत भइल,बहुत होई। बहुत विकास भइल। बहुत कुछ बाकी बा। सड़क की मामला में एतना पिछुआइल बानी जा की- ‘ सड़क बीच गड़हा है कि गड़हा बीच सड़क है कि सड़किये गड़हा है कि गड़हवे सड़क है’ टाइप के संदेहालंकार हो गइल बा। हाईबे के हाल तक बेहाल बा। जब टूटता कवनो ट्रक के गुल्ला त बहुत होत बा हल्ला-गुल्ला। लागत बा जाम त तेजी पर लाग जाता विराम। एक दिन के जाम दूसरा दिने खुलत बा। सड़क पर लुटावल धन कवना जन की कामे आइल। जमाना बहुत बदलल बा। लेकिन चित्त आ चिंतन उहे पुरनके बा। रोटी-दाल-बाजार के चिंता। देश बहुत तरक्की करत बा। केंद्र के होखे चाहे सूबा के, सरकार ‘ दोऊ हाथ उलिचिए यही सयानो काम’ की लाइन पर चलति बा। अब त संसद में हंटर भी चलत बा। सीमा पाकिस्तान आ चीन बढ़त आवत बा त हंटर उठते ना बा। रुपया लगातार गिरत बा। पहिले गांव-देहात में लरिका खेलावत में लोग कहत रहे- ‘
हेले हेले बबुआ, कुरुई में ढेबुआ’। ढेबुआ के जमाना त बीत गइल। रुपया के आइल लेकिन उ केतना किकुरल जाता। रुपये पर सब दबाव बा त किकुरबे करी। पहिले रुपया के डालर से दोस्ती रहल। अब फासला 68 के बा। हे रुपया! तूं और गिर जा। एतना गिर जा कि सड़क पर गिरल रहù त केहू उठावे के चाहत ना करे। चोरी-डकैती-लूट के डर समाप्त हो जा। हाथ के मैल होजा। रुपया गिरला से सबसे बड़ा फायदा ई होई की अमीर-गरीब के खाई स्वत: ही मिट जाई। जमाखोरी, घूसखोरी, हेराफेरी, धोखाधड़ी समाप्त हो जाई। आई येह कविता के अर्थ खोजल जा-
देश होता खोंखड़, घाव होता गहीर। खूब चिंचियाइल करीं, बनल लोग बहीर।।
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