कहां-कहां पेवन सटब$
मनबोध मास्टर प्रदेश की दुर्दशा पर बहुत दुखी हवें। सीधा सवाल सूबा की नरेश से ही दाग दिहलन- का हो नरेश! लगता कुछऊ ना बची शेष। ‘ कहां-कहां बादर फाटी, कहां-कहां पेवन सटबù’। प्रदेश के छवि तार-तार होत बा। प्यार के बात रार के बात हो जात बा। मामला एतना खार हो जात बा की मार हो जाता। लोकतंत्र में हिंसा के जगह ना होला लेकिन रउरी राज में दु दर्जन से ऊपर त सांप्रदायिक दंगा हो गइल। सांप्रदायिक हिंसा जेतने दुर्भाग्यपूर्ण ओतने चिंताजनक। वैमनस्यता बढ़त बा। प्रदेश जरत बा। लोग राजनीति करत बा। दंगा-फसाद तù सभ्य कहाये वाला शहर में सुनल जात रहे। गांवदे हात त सामाजिक सद्भाव की मजबूत ताना-बाना से बनल रहल। बगैर एक दूसरे की सहयोग से कमवे ना चलत रहे। कबुरगाह की बगइचा में दूल्हा के परछावन,रामलीला मैदान में तजिया के मेला हमरी गांव के पहचान रहे। फगुआ की दिने करिंयाय में ढोलक बांध के सुलेमान चाचा दुआरी-दुआरी ‘ सदा आनंद रहे येही द्वारे.’ के दुआ देत रहलन। रंग-अबीर से सराबोर सुलेमान चाचा पर जब पंडीताइन छपाक से एक बाल्टी पानी फेंक दें त चचवा के कबीर शुरू हो जात रहे। एतना भद्दा..एतना फटहा. एतना गंदा..। केहु बाउर ना मानल। रमई तिवारी मोहर्रम पर जवन तासा बजावें मियां लोग का बजायी। दस दिन ले रमई तिवारी के तासा आ घरभरन सिंह के तमाशा देखे खातिर तिवारी टोला के पंडीताइन लोग अदालत मियां की बंगला पर जुटत रहे। घरभरन सिंह के गदका भांजल देखे खातिर मियांइन लोग झरोखा से बुरका हटा के झंकले बिना ना रहें। कहीं कटुता ना। कवनो द्वेष ना। ‘ माहौल अशांत, स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंतण्रमें’ अइसन शब्द शहर में रहल। गांव-देहात के लोग एकर मतलब तक ना बुझत रहे। बड़-बड़ विवाद अदालत मियां की बंगला चाहे जंगली पांड़े की घोठा पर पंचाइत में निबटा दिहल जात रहे। अब महापंचायत के जमाना आ गइल। मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली सांप्रदायिक उन्माद की आग में जरता। सेना लगावे के परता। जालीदार टोपी पहिन के मुख्यमंत्री जी मीडिया के संबोधित करत हवें। वोट बैंक के विकृत राजनीति आ तुष्टीकरण के एतना घटिया प्रदर्शन। यूपी रसातल में जाता आ लोग का मिशन 2014 लउकत बा। इ राजनीति बहुत बेह्या, बहुत बेर्शम बा। गांव-देहात, घर-परिवार में दरार डार दिहलसि। अब अदालत मियां की बंगला आ जंगली पांड़े की घोठा पर कवनो पंचाइत ना होई। अब होई ‘ महापंचायत’। सुलेमान मियां की ऊपर रंग के एको छींटा पड़ी त दंगा हो जाई। रमई तिवारी आ घरभरन सिंह अपनी दुआर से तजिया ना निकले दीहें। केहू रामलीला मैदान में तजिया मेला लगवा के देखा दे। कबुरगाह की बगइचा में परछावन ना होखे दिआई। इ सब काहे होत बा? सबकी पीछे एके कारन बा-
गांव जर जाय त जर जाय। लरिका के अल रह जाय।। -नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह भोजपुरी व्य्नग्य राष्ट्रीय सहारा के 12/9/13 के अंक मे प्रकाशित है. |
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