गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

ये मोदी-मोदी क्या है


मनबोध मास्टर के माथा चकरा गइल, जब एगो पत्रकार भाई की सवाल पर सीएम साहब उखड़ के बोललन- ‘ ये मोदी-मोदी क्या है’? सीएम साहब के टोन ‘ ये इलू- इलू क्या है?’ टाइप के लागत रहे। मास्टर मोदी के मतलब समझावत रहलें। मोदी मतलब-नरेंद्र दामोदर दास, चाय वाला, भाजपा के मुखौटा, राजनीति में मकसद के मायने, मीडिया में दबदबा, मिशन 2014, विरोधी दलों का माथा दर्द, 56 इंच की करेजा वाला नेता, माद्दावाला मनई, गुजरात के मुख्यमंत्री.. और भी बहुत कुछ। अब भी ना समझ में आवे त सुनीं- जनता में जोश, जुनून आ जज्बा पैदा करे वाला नेतन की जमात में एगो अलग टाइप के नेता। देश में नेता भाषण सुने खातिर भीड़ जुटावला में पैसा खर्च करेले। आ मोदी मतलब पैसा वसूल। सीट बुकिंग। मोदी मतलब सत्ता की राह के रोड़ा। मोदी के रोके खातिर 11 दल एक में जोड़ा। मोदी मतलब महा मुकावला। अब भी मोदी के मतलब समझ में ना आइल होखे त नेताजी से पूछीं, पप्पू से पूछीं, बहिन जी पूछीं. 2014 के चुनाव केकरा से लड़े जात हवें। मतलब समझ में आ जाई। मोदी मतलब राजनीति के उ खिलाड़ी जवन सबकर खेल बिगाड़े के कइले बा तैयारी। चोटी-लंगोटी वाला त उनकर समर्थक पहिले से ही रहलन अब दाढ़ी-टोपी वाला जुटत हवें। नया फामरूला में खाली जै श्रीराम ना जपल जाई अब दलितन में जगह बनावे खातिर बाबा साहब, बाबू जगजीवन राम, के आर नारायण आ कांशीराम के नाम भी जपल जाई। चलत-चलत एगो उदबेगी खबर बता दीं- बॉलीवुड अभिनेत्री मेघना पटेल मोदी की समर्थन में नवहन के रिझावे खातिर अंग-अंग से कपड़ा उतार के भाजपा के चुनाव चिह्न कमल के फूल से बनल ब्रा आ बिकनी पहिन के जब फोटो ख्ंिाचवली त तरासल बदन निहार के बुढ़ऊ लोग कहलें- अइसन त ना रहल आपन संस्कृति। गोरखपुर की मानबेला में पहिले मोदी रैली कइलन अब सीएम साहब, इहे होला मतलब। उ जहां-जहां जइहे इ उहां-उहां ना जा पइहें। मोदी पूरा देश घूमत हवे आ सीएम साहब के दायरा यूपी में सिमटल बा। जब हर सभा में सब दल मोदी के ही टारगेट पर रखलें होखें , आ नेताजी आ सीएम साहब के हमला भी मोदी पर रहे त मतलब साफ बा, मोदी के मतलब रउरा सभे बुझते हई फिर काहें पूछत हई- ये मोदी-मोदी क्या है ?
अब इ कविता- 
मतलब मोदी के समझवलीं, हम ना मोदीवादी हैं।
 जो सच है वह सुना दिया, ना वादी ना प्रतिवादी हैं।। 
जै श्रीराम को जपने वाले, बाबा, बाबू कांशी जपें।
 सबका खेल बिगाड़ेंगे ये, अब कौन कहे मनुवादी हैं।।

नर्वदेश्वर पाण्डेय देहाती का यह  भोजपुरी व्यंग्य राष्ट्रीय सहारा के 13 /2 /14 के अंक में प्रकाशित है


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